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    वैदिक ज्ञान को विज्ञान साबित करने में जुटे भारतीय वैज्ञानिक

    By Srishti VermaEdited By:
    Updated: Tue, 27 Feb 2018 04:16 PM (IST)

    प्रथम चरण में संकलन संरक्षण और वैज्ञानिक सत्यापन का काम जारी, दूसरे चरण की कार्ययोजना तैयार, 43 लाख पांडुलिपियों का डिजिटल संरक्षण किया जा रहा है प्रथम चरण में...

    वैदिक ज्ञान को विज्ञान साबित करने में जुटे भारतीय वैज्ञानिक

    नई दिल्ली (अतुल पटेरिया)। भारतीय संस्कृति मंत्रालय के निर्देश पर राष्ट्रीय कला संस्कृति केंद्र महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। लक्ष्य है वैदिक ज्ञान को संजोना और संजोए हुए विवरण-तथ्यों का वैज्ञानिक सत्यापन करना। इस कार्य में आइआइटी (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) के विषय विशेषज्ञों सहित देश के वरिष्ठ वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं का सहयोग लिया जा रहा है। प्रथम चरण का कार्य लगभग पूरा कर लिया गया है और दूसरे की कार्ययोजना तैयार है। केंद्र द्वारा एक वेब पोर्टल वैदिकहैरीटेज.जीओवी.इन तैयार किया गया है, जिसमें इन सभी तथ्यों को डिजिटल रूप में सहेजा जा रहा है। प्रतापनंदन झा, निदेशक, सांस्कृतिक सायांत्रिक संचार, राष्ट्रीय कला व संस्कृति केंद्र (आइजीएनसीए) ने बताया कि इस प्रोजेक्ट में देश के अग्रणी आइआइटी संकायों (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान) के विषय विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया जा रहा है।

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    आइआइटी मुंबई के फिजिक्स विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. के. रामा सुब्रह्मण्यम, आइंस्टीन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के वैदिक विज्ञान में उपलब्ध विवरण पर, डॉ. एनजी डोंगरा, वैदिक गणित पर, डॉ. सुंदरनारायण झा, वेदों में जेनेटिक्स के विवरण पर, डॉ. एसबी काले वेदों में ह्यूमन एनाटॉमी संबंधित विज्ञान के विवरणों पर, डॉ. प्रज्ञा जोशी वैदिक माइक्रोबायोलॉजी पर, डॉ. चक्रधर फ्रेंद वेदों में रसायन विज्ञान संबंधी विवरणों पर, आइआइटी कानपुर के मैटलर्जी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. दुबे वेद और कॉस्मिक साइंस पर, प्रो. डॉ. शशिप्रभा कुमार ब्रह्मांडीयखगोलीय विज्ञान पर काम कर रहे हैं। आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंस द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों के वेदों में उपलब्ध विवरण पर प्रो. विजेंद्र शरण श्रीवास्तव, वेदों में निहित मेडिकल साइंस के विवरणों पर डॉ. रामा जयसुंदर, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी पर डॉ. श्रीजी कुरुप, वेदों में मनोचिकित्सा विषय पर डॉ. एस.एन. सिंह, टॉक्सिकोलॉजी (विष विज्ञान) संबंधी विवरणों पर पूर्णिमा आचार्य, वैदिक चिकित्सा विज्ञान में ध्वनि (साउंड) की उपयोगिता पर डॉ. नंद लाल चौरसिया कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा वैदिक कृषि विज्ञान सहित आधुनिक विज्ञान की तमाम शाखाओं का मूल आधार वैदिक ज्ञान भंडार में खोजा और स्थापित किया जा रहा है।

    प्रथम चरण लगभग पूरा, दूसरे की कार्ययोजना तैयार

    आइजीएनसीए के प्रतापनंदन झा के अनुसार हमें संस्कृति मंत्रालय ने 2014 में यह प्रोजेक्ट सौंपा। तीन चरणों में काम होना है। वेदों की 1131 शाखाओं में से आठ के ही साक्ष्य उपलब्ध हो सके हैं। प्रथम चरण में वैदिक साहित्य की खोजी गई करीब 43 लाख पांडुलिपियों का डिजिटल संरक्षण किया जा रहा है। पांडुलिपियों के अलावा उन परिवारों, आश्रमों, व्यक्तियों को जोड़ा जा रहा है, जो वैदिक मंत्रोच्चारण की परंपरा को यथावत बनाए रखने में सफल रहे हैं। देशभर में ऐसे चार आश्रमों की पहचान हुई है। इनके सहयोग से वैदिक मंत्रोच्चार की परंपरागत

    मौलिक प्रक्रिया, विशुद्ध लय, उच्चारण, स्वर और ध्वनि इत्यादि को ऑडियो-विजुअल रूप में संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है। इन्हें एक जगह पर संरक्षित करने के लिए वैदिकहैरीटेज.जीओवी. इन वेबपोर्टल की स्थापना की गई है। चौथा काम है, वैदिक नॉलेज और वैदिक साइंस को आधुनिक साइंस के मूल आधार के रूप में स्थापित करना।

    इसके लिए प्रमाणों की आवश्यकता है...

    साल 2007 में ऋग्वेद को यूनेस्को मैमोरी ऑफ द वल्र्ड रजिस्टर में शामिल किया गया था। जिसके बाद साल 2008 में वैदिक मंत्रोच्चारण परंपरा को यूनेस्को ने विश्व धरोहरों की सूची में अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर (लोक परंपरा) के रूप में स्थान दिया। सवाल उठना लाजिमी है कि जब वैदिक साहित्य ज्ञानविज्ञान का अमूल्य भंडार है और इसका संरक्षण श्रुति (मुखाग्र परंपरा) के रूप में ही हजारों साल से किया जाता रहा, तो इसे केवल सांस्कृतिक लोक परंपरा ही क्यों माना जाए, विज्ञान की श्रेणी में क्यों न रखा जाए। इस पर प्रतापनंदन झा कहते हैं कि इसके लिए वैज्ञानिक प्रमाणों की आवश्यकता है। हम वैज्ञानिक प्रमाणों को जुटाने का ही प्रयास कर रहे हैं।

    इस कार्य के लिए वैज्ञानिकों और विषय विशेषज्ञों का सहयोग लिया जा रहा है। दूसरे चरण की कार्ययोजना बनाकर मंत्रालय के अनुमोदन को भेजी गई है। इसमें वेदांत, उपनिषद, पुराण और अन्य ग्रंथों पर काम किया जाएगा। इस पूरे उद्देश्य की प्राप्ति में लंबा समय लगेगा, लेकिन हमें उम्मीद है कि यह सार्थक होगा।

    -प्रतापनंदन झा, निदेशक, सांस्कृतिक सायांत्रिक संचार, राष्ट्रीय कला व संस्कृति केंद