Indian Railways: अब कोहरे में भी नहीं लेट होंगी ट्रेनें, सरकार ने बना लिया ये प्लान
ठंड के दिनों में अक्सर ट्रेने लेट होती हैं जिससे यात्रियों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इन सब के बीच रेलवे की ओर से ट्रेन यात्रा को सहज-सरल बनाने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। रेलवे का प्रयास चार-पांच वर्षों में ही सभी ट्रेनों में कवच सिस्टम लगा देने का है। भारत स्वदेसी तकनीक से कवच का निर्माण कर रहा है।

अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। ट्रेन यात्रा को सहज-सरल बनाने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। कोहरे के चलते ट्रेनों का देर से चलना आम बात हो गई है, लेकिन अब कवच प्रणाली के जरिए ट्रेनों की लेटलतीफी की शिकायतें लगभग जल्द खत्म हो जाएंगी। कवच लगने के बाद सिर्फ ट्रेन हादसे ही नहीं रुकेंगे, बल्कि कोहरे में ट्रेनों के पहिये भी नहीं थमेंगे। रेलवे का प्रयास चार-पांच वर्षों में ही सभी ट्रेनों में कवच सिस्टम लगा देने का है। भारत स्वदेसी तकनीक से कवच का निर्माण के साथ-साथ उसे लगातार अपग्रेड भी कर रहा है।
पता चलेगी सिग्नल की दूरी
कवच प्रणाली तीन हिस्से में लगाया जाता है। इनमें रेल ट्रैक, इंजन और सिग्नल सिस्टम शामिल हैं। नए वर्जन को इस तरह बनाया गया है कि डैशबोर्ड पर रेड और ग्रीन दोनों सिग्नल दिखेंगे। इससे सिग्नल की वास्तविक दूरी और स्थिति पता चल जाएगी। अभी एंटी फाग डिवाइस से करीब आठ सौ मीटर पहले सिर्फ सिग्नल की दूरी का ही पता चल पाता है। यह नहीं पता चलता है कि सिग्नल ग्रिन है या रेड है। ऐसे में कोहरे की स्थिति में ट्रेनों की गति 75 किमी प्रतिघंटा से अधिक नहीं रखी जाती है।
ट्रैक पर भी कवच
पायलट के नजदीक पहुंचने पर ही सिग्नल की स्थिति पता चल पाती थी, किन्तु नए वर्जन में ग्रीन सिग्नल दिखने पर ट्रेन को धीमी करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस तरह वक्त की काफी बचत होगी और ट्रेनें समय से पहुंच सकेंगी। प्रारंभिक चरण में दस हजार इंजनों में कवच प्रणाली लगाने के लिए निविदा निकाल दी गई है। इसके अलावा लगभग 15 हजार किलोमीटर ट्रैक पर भी कवच लगाना है। मुंबई से बड़ौदा और दिल्ली से मथुरा-पलवल ट्रैक पर लगा भी दिया गया है। हालांकि यह प्रणाली पुराने वर्जन की है। इसलिए इसे भी नए वर्जन से बदला जाना है।
भारत की कवच प्रणाली दूसरे देशों की तुलना में काफी सस्ती भी है और आसान भी। पहले इस सिस्टम को लगाने में कम से कम दो हफ्ते लग जाते थे, लेकिन नई प्रणाली में सिर्फ 22 घंटे में ही पूरी तरह सेट कर दिया जा रहा है। कवच के जिस हिस्से को रेल ट्रैक पर लगाया जाएगा, उसमें कापर का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इससे चोरी की चिंता भी शून्य हो जाएगा।
क्या है कवच प्रणाली
कवच स्वचालित ट्रेन प्रोटेक्शन तकनीक है, जिसे चलती ट्रेनों को हादसे से बचाने के लिए स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है। लोको पायलट की लापरवाही, नींद या ब्रेक लगाने में विफल होने की स्थिति में कवच अपना काम दिखाता है। चलती ट्रेन में ब्रेक लगाकर खतरे को टाल देता है। यह दो स्थिति में अपना काम खुद करता है। पहला एक ही पटरी पर दो ट्रेनें आमने-सामने से आ रही हैं तो करीब चार सौ मीटर के फासले पर दोनों में अपने आप ब्रेक लग जाएगा एवं दूसरा पीछे से आ रही ट्रेन ने अगर सुरक्षित दूरी का उल्लंघन किया है तो कवच उसे भी आगे नहीं बढ़ने देता है।
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