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    Indian Railways: ट्रेनों का समय पालन सुनिश्चित करने की दिशा में रेलवे को उठाने चाहिए समुचित कदम

    Indian Railway News हाल में सुप्रीम कोर्ट ने लेटलतीफी को लेकर भारतीय रेल के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा कि वह ट्रेनों के लेट होने की जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है। अगर इससे किसी यात्री को आर्थिक नुकसान होता है तो रेलवे को मुआवजे का भुगतान करना चाहिए।

    By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 13 Sep 2021 09:16 AM (IST)
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    ट्रेनों में देरी के लिए किसी न किसी को जवाबदेह बनाना होगा।

    अरविंद कुमार सिंह। Indian Railway News संजय शुक्ला नामक एक यात्री ने ट्रेन लेट होने पर रेलवे द्वारा मुआवजा दिए जाने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय की शरण ली। वे अपने परिवार के साथ 11 जून 2016 को अजमेर-जम्मू एक्सप्रेस से सफर कर रहे थे, जिसे सुबह आठ बजकर 10 मिनट पर जम्मू पहुंचना था। लेकिन ट्रेन 12 बजे पहुंची जिस कारण उनकी जम्मू से श्रीनगर जाने वाली हवाई जहाज छूट गई। बाद में उन्हें जम्मू में ठहरने और फिर श्रीनगर जाने में अतिरिक्त खर्च हुआ।

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    कुछ दिनों बाद वे अलवर जिले की उपभोक्ता अदालत में पहुंचे जिसने उत्तर पश्चिम रेलवे को 30 हजार रुपये का मुआवजा देने का आदेश सुनाया। रेलवे चाहता तो मुआवजा चुका कर वहीं इस मामले का पटाक्षेप कर देता, लेकिन वह राज्य और राष्ट्रीय उपभोक्ता फोरम में गया जहां फैसला उसके खिलाफ ही गया। रेलवे ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। रेलवे की ओर से यह दलील दी गई कि उसके नियमों के मुताबिक ट्रेनों में देरी होने पर रेलवे की मुआवजा देने की कोई जिम्मेदारी नहीं है। लेकिन इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने नहीं माना और फैसला बरकरार रखा।

    बेशक ट्रेन लेट होना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सेवा की खामी ही माना जाएगा और इसके लिए यात्री के पास उपभोक्ता अदालत में जाना और मुआवजा पाने का विकल्प है। रेलवे जो ट्रेन टिकट जारी करता है, उसमें संबंधित रेलगाड़ी के प्रस्थान और गंतव्य तक पहुंचने का समय अंकित रहता है। इस आधार पर पहले रेलवे को राष्ट्रीय फोरम के आदेश पर मुआवजा देना पड़ा था। लेकिन सवाल यह है कि रेलवे ने सामान्य टिकटों की वापसी के लिए ही जो प्रक्रिया बनाई है, जब उसे हासिल करना ही आसान नहीं तो फिर मुआवजे के लिए संजय शुक्ला जैसा धैर्य, लड़ने की क्षमता और वकील तथा कचहरी के बीच भाग-दौड़ का माद्दा कितने लोगों के पास है। बेशक उपभोक्ता फोरम में भी मामले के निपटान में काफी समय लगता है।

    सवाल यह उठता है कि अगर भारतीय रेल के ही प्रशासनिक नियंत्रण में चल रही तेजस एक्सप्रेस में यात्रियों के लिए विशेष उपहार योजना के साथ लेट होने पर मुआवजे की व्यवस्था हो सकती है तो फिर लेटलतीफी के मामले में बाकी ट्रेनों में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जा सकती है। तेजस एक्सप्रेस फिलहाल नई दिल्ली-लखनऊ और अहमदाबाद-मुंबई के बीच संचालित है। इसमें गाड़ी के एक घंटा लेट होने पर यात्रियों को 100 रुपये और दो घंटे से ज्यादा की देरी होने पर 250 रुपये का मुआवजे का प्रविधान है। यात्रियों का अनिवार्य रूप से 25 लाख रुपये का बीमा है जिसमें सामान चोरी होने पर एक लाख रुपये तक का बीमा भी शामिल है।

    उल्लेखनीय है कि भारतीय रेल 109 जोड़ी रूटों पर 151 निजी ट्रेनों को चलाने की दिशा में तैयारी कर रही है जिस पर करीब 30 हजार करोड़ का निवेश होगा। वर्ष 2023 तक जब ये ट्रेनें चलने लगेंगी तो निजी कंपनियों को हर हाल में 95 प्रतिशत तक समयपालन करना होगा। आखिर ऐसी व्यवस्थाएं रेल तंत्र खुद के लिए बनाने से क्यों कतरा रहा है। रेलगाड़ियों में वर्ष 2018 में यात्रियों के सामानों की चोरी के 36834 और 2019 में 36849 मामले दर्ज किए गए। रेलवे से चोरी हुए सामान का तो मुआवजा देने का प्रविधान भी है, लेकिन कितना भी कीमती सामान चोरी क्यों न हो जाए मुआवजा तब तक नहीं मिलता जब तक यात्री यह साबित न कर दे कि रेलवे की ही कोताही से ऐसा हुआ था।

    रेल अधिनियम 1989 की धारा 124 के तहत पारिभाषित ट्रेन दुर्घटनाओं में मृत्यु या चोट के मामले में रेल यात्रियों को मुआवजा देना का प्रविधान है। लेकिन इसके लिए उनको रेल दावा अधिकरण में जाना होता है और उसके पक्ष में डिक्री देने के बाद मुआवजा तभी दिया जाता है जब रेलवे उससे संतुष्ट हो। वहीं रेलवे अधिनियम में लेटलतीफी के मामले में किसी तरह के मुआवजे का प्रविधान नहीं है। हालांकि गाड़ी के रद्द होने या तीन घंटे से अधिक देरी से चलने जैसे मामले में किराया वापसी का नियम है, लेकिन यह भी तब जब टिकट को निर्धारित अवधि यानी गाड़ी के वास्तविक प्रस्थान समय से पहले जमा करा दिया जाए। ऐसे मामले में पूरा किराया रिफंड होता है। इसके तहत वर्ष 2014-15 में रेलवे ने 8.41 करोड़ रुपये की राशि वापस की थी, जबकि 2018-19 में 40.19 करोड़ रुपये। कोरोना संकट के दौरान 4.87 करोड़ टिकट रद्द हुए जिसके लिए रेलवे को 5716 करोड़ रुपये की वापसी करनी पड़ी।

    भारतीय रेल के आंकड़े बताते हैं कि 2005-06 में ब्राड गेज यानी बड़ी लाइन पर 91.2 फीसद और मीटर गेज यानी छोटी लाइन पर 97.6 फीसद ट्रेनें समय पर चल रही थीं। वर्ष 2013-14 में 83 फीसद और 2014-15 में 79 फीसद गाड़ियां समय से चल रही थीं। वर्ष 2015-16 में 77.5 फीसद, जबकि 2018-19 में 69.23 फीसद ट्रेनें समय से चलीं। वर्ष 2018 में मई महीने में केवल 59.9 फीसद ट्रेनें समय पर चलीं। वर्ष 2017-18 में भारतीय रेल की 30 फीसद गाड़ियां लेटलतीफ रहीं जिसे लेकर संसद में तत्कालीन रेल मंत्री पीयूष गोयल पर सवालों की बौछार हुई और उन्हें आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा।

    भारतीय रेल आम आदमी के लिए सबसे भरोसेमंद परिवहन का साधन है। भारतीय रेल पर 95 फीसद से अधिक यात्री उपनगरीय, साधारण सवारी गाड़ी तथा मेल-एक्सप्रेस गाड़ी के अनारक्षित और गैर वातानुकूलित डिब्बों यानी स्लीपर डिब्बों में सफर करते हैं। रेलगाड़ियों की छतों पर बैठ कर यात्र करने से लेकर त्यौहारों की भारी भीड़-भाड़ को रेलवे संभाल नहीं पाता। रेलगाड़ियों की देरी का खामियाजा मुसाफिरों को भुगतना पड़ता है। उनकी प्रतीक्षा कर रहे लोगों के भी समय और धन की काफी बर्बादी होती है। इस नाते मुआवजे के बारे में एक ठोस नीति बना कर रेलवे को अपना ढांचा दुरुस्त करने की पहल करनी चाहिए।

    [वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व सलाहकार, भारतीय रेल]