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    भारतीय फार्मा उद्योग कैसे बढ़ेगा? डॉ. संजय अग्रवाल ने बताया 2030 तक का प्लान

    Updated: Tue, 25 Nov 2025 09:59 PM (IST)

    डॉ. संजय अग्रवाल ने भारतीय फार्मा उद्योग के 2030 तक के विकास की योजना बताई। उन्होंने नवाचार, अनुसंधान और सरकार-निजी क्षेत्र के सहयोग पर जोर दिया। गुणवत्ता नियंत्रण और लागत प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है।

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    नई दिल्ली। डॉ. संजय अग्रवाल ने भारतीय फार्मा उद्योग के 2030 तक के विकास की योजना बताई। उन्होंने नवाचार, अनुसंधान और सरकार-निजी क्षेत्र के सहयोग पर जोर दिया। गुणवत्ता नियंत्रण और लागत प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियों का सामना करने की आवश्यकता है। डॉ. संजय अग्रवाल से बातचीत के प्रमुख अंश...

    2026–2030 तक भारतीय फ़ार्मा उद्योग कैसे बढ़ेगा? कौन-से प्रोडक्ट सबसे ज्यादा तेजी दिखाएंगे?
    भारत का फ़ार्मा बाज़ार 8–10% की वार्षिक दर से बढ़ते हुए 2030 तक लगभग 120–130 बिलियन डॉलर पहुंच सकता है। सिर्फ सामान्य जेनरिक दवाइयों से आगे, अब complex generics, biosimilars, injectables और oncology, diabetes जैसी विशेष बीमारियों की दवाइयों में सबसे ज़्यादा संभावनाएं हैं। चीन-निर्भरता कम करने वाली APIs और chronic diseases की value-added formulations पर भी ज़्यादा फोकस रहेगा।

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    भारत पहले ही दुनिया के 20% जेनरिक सप्लाई करता है। आगे क्या?
    अब भारत को "वॉल्यूम" से "वैल्यू" की ओर बढ़ना है। हमें सिर्फ ज्यादा दवाइयां बनाने के बजाय, complex generics, biosimilars, advanced drug delivery और CDMO सेवाओं में आगे बढ़ना होगा। कम लागत, उच्च गुणवत्ता और मजबूत अनुपालन (compliance) भारत की सबसे बड़ी ताकत है।

    कीमतों में दबाव के बीच आने वाले वर्षों में लागत और मार्जिन सुधार सकता है?
    फिलहाल US मार्केट में कीमत गिरावट, रेग्युलेटरी कॉस्ट और कच्चे माल की बढ़ी लागत से मार्जिन दबाव में रहेंगे। लेकिन मध्यम अवधि में मार्जिन बेहतर हो सकते हैं अगर कंपनियां:

    API का स्रोत सिर्फ एक देश पर निर्भर न रखें
    complex products और CDMO में आगे बढ़ें
    PLI जैसी योजनाओं का फायदा उठाएं
    सिर्फ खर्च कम करने से नहीं, बल्कि प्रोडक्ट पोर्टफोलियो और तकनीकी क्षमता बढ़ाने से मार्जिन सुधार होगा।

    API के लिए चीन पर निर्भरता कैसे कम होगी?
    भारत की लगभग 70% API इम्पोर्ट चीन से होता है। निर्भरता कम करने का रास्ता है:
    Bulk drug parks को तेजी से शुरू करना
    PLI के जरिए fermentation और complex chemistry वाले APIs को बढ़ावा देना
    continuous manufacturing और green chemistry अपनाना
    पूरी तरह निर्भरता खत्म करना जरूरी नहीं, लेकिन रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण APIs में आत्मनिर्भर बनना आवश्यक है।

    व्यापारिक तनाव और टैरिफ बढ़ने की स्थिति में भारतीय फ़ार्मा को निर्यात कैसे संभालना चाहिए?
    US एक बड़ा बाज़ार रहेगा, लेकिन सिर्फ एक देश पर निर्भर रहना खतरनाक है। अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और यहां तक कि चीन में भी एक्सपोर्ट बढ़ रहा है।

    कंपनियों को बहु-बाज़ार रणनीति अपनानी चाहिए—
    ज्यादा रेग्युलेटेड मार्केट्स में complex products और semi-regulated देशों में branded generics व tender-based बिज़नेस।

    अगले 5–10 साल में फ़ार्मा उद्योग में किस तरह की स्किल्स की जरूरत होगी?
    रसायन (chemistry), formulation और quality की बुनियादी स्किल्स के साथ-साथ—
    Biologics और biosimilars
    Digital/AI/ML
    Global regulatory understanding
    अब सिर्फ synthesis या QC जानना काफी नहीं, GMP, data integrity और बिज़नेस की समझ भी जरूरी है।

    डिजिटल टेक्नोलॉजी और AI भारत की फ़ार्मा इंडस्ट्री को कैसे बदल रहे हैं?
    तीन मुख्य क्षेत्रों में बदलाव हो रहा है:
    AI से टार्गेट पहचान, formulation screening, toxicity prediction
    Manufacturing: automation, PAT और डेटा एनालिटिक्स से बेहतर गुणवत्ता और कम deviation
    Commercial: मांग का बेहतर अनुमान और सप्लाई चेन की पारदर्शिता
    जो कंपनियां डेटा को केवल "compliance" नहीं, बल्कि "asset" मानेंगी, वही आगे बढ़ेंगी।

    भारतीय फ़ार्मा प्लांट्स पर रेग्युलेटर्स की कड़ी नजर रहती है। जमीन स्तर पर क्या बदलना होगा?
    गुणवत्ता को खर्च नहीं, बल्कि रणनीतिक ताकत मानना होगा। इसका मतलब:
    Right-first-time संस्कृति
    ऑपरेटर स्तर पर बेहतर ट्रेनिंग
    डेटा इंटीग्रिटी मजबूत करना
    खुलकर कमियों की रिपोर्ट करने की संस्कृति बनाना
    भारत को दुनिया का भरोसेमंद सप्लायर बने रहना है।

    APIs और intermediates के लिए sustainability कितनी जरूरी होती जा रही है?
    अब sustainability “मर्ज़ी” नहीं, बल्कि “जरूरी” हो गई है। उम्मीद है कि—
    ग्लोबल खरीदार कार्बन फुटप्रिंट और कचरे प्रबंधन पर ज़ोर देंगे
    Green chemistry और continuous processing बढ़ेगी
    ESG मीट्रिक्स लंबे कॉन्ट्रैक्ट्स का हिस्सा बनेंगे
    जो कंपनियां जल्दी निवेश करेंगी, वे भविष्य में ज्यादा मजबूत जगह पकड़ेंगी।

    फ़ार्मा छात्रों के लिए सबसे अच्छे करियर अवसर कहाँ हैं?
    तीन मुख्य क्षेत्र:
    1. एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग और क्वालिटी — स्टेराइल, इंजेक्टेबल्स, बायोलॉजिक्स
    2. R&D और क्लिनिकल — फॉर्मूलेशन, बायोइक्विवेलेंस, बायोस्टैटिस्टिक्स, फार्माकोविजिलेंस
    3. क्रॉस-फंक्शनल रोल्स — रेगुलेटरी अफेयर्स, मार्केट एक्सेस, मेडिकल राइटिंग, डेटा एनालिटिक्स
    विज्ञान + डिजिटल स्किल + अच्छी कम्युनिकेशन = टॉप 10–15% प्रतिभाओं में जगह।

    क्या भारत formulations में ही मजबूत रहेगा या API में भी नेतृत्व कर सकता है?
    formulations में भारत पहले से ही दुनिया का लीडर है। API बेज़ को फिर से मजबूत किया जा रहा है। Bulk drug parks, PLI और तकनीक अपग्रेड से भारत महत्वपूर्ण और complex APIs में नेतृत्व हासिल कर सकता है। अंततः—
    भारत formulations और APIs दोनों में मजबूत भूमिका निभाएगा।

    CPHI दिल्ली में API निर्माताओं, formulations कंपनियों और छात्रों के लिए आपका संदेश?
    अगला दशक उन लोगों का है जो सहयोग करके काम करेंगे—API, intermediates, formulations, devices, digital सभी एक साथ। अगर हम लागत, प्रतिभा और पैमाना को innovation, compliance और sustainability के साथ जोड़ दें, तो भारत सिर्फ “दुनिया की दवा की दुकान” नहीं, बल्कि विश्वस्तरीय हेल्थकेयर पार्टनर बन सकता है।

    हेल्थकेयर इकोसिस्टम में nutraceuticals की भूमिका क्या है?
    Nutraceuticals अब “optional supplements” नहीं, बल्कि chronic diseases और preventive care का एविडेंस-बेस्ड हिस्सा बन रहे हैं। सही indications, वैज्ञानिक डेटा और पारदर्शी लेबलिंग इनके भविष्य को मजबूत बनाते हैं।

    Nutraceuticals भोजन और दवा के बीच grey zone में आते हैं। इसका क्या असर होता है?
    इससे नवाचार में तेजी मिलती है, लेकिन डॉक्टरों और उपभोक्ताओं में भ्रम भी होता है। स्पष्ट नियम, defined claims, बेहतर लेबलिंग और निगरानी जरूरी है।
    जो कंपनियां pharma-grade गुणवत्ता बनाए रखेंगी, वे लंबी दौड़ में जीतेंगी।

    API और formulations कंपनियां nutraceutical ब्रांड्स के साथ कैसे सहयोग कर सकती हैं?
    जवाब:
    Pharma-grade प्लांट्स का उपयोग
    condition-based combo packs बनाना
    बड़े वैश्विक ब्रांड्स के लिए CDMO सेवाएं देना
    Nutraceuticals को प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि value-adding विस्तार की तरह देखना चाहिए।
    क्या भारत nutraceuticals में भी दुनिया का प्रमुख निर्यातक बन सकता है?
    जवाब: हाँ, बिल्कुल। भारत के पास:
    Botanical raw material
    कम लागत में निर्माण
    मजबूत formulation क्षमता


    अगर हम standardized extracts, quality control, देश-विशिष्ट formulations और digital branding पर काम करें, तो भारत एशिया, अफ्रीका, मध्य-पूर्व और कुछ पश्चिमी देशों में nutraceuticals का प्रमुख सप्लायर बन सकता है।