भारतीय न्याय व्यवस्था कानून के चलती है, बुलडोजर से नहीं, मॉरीशस यात्रा पर बोले सीजेआइ गवई
मॉरीशस में सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन विषय पर सर मौरिस राल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 का उद्घाटन करते हुए उन्होंने बुलडोजर न्याय की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया। साथ ही प्रख्यात न्यायविद सर मौरिस राल्ट 1978 से 1982 तक मॉरीशस के प्रधान न्यायाधीश थे। जस्टिस गवई मारीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं।

पीटीआई, नई दिल्ली। प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) बीआर गवई ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से चलती होती है।
मॉरीशस में 'सबसे बड़े लोकतंत्र में कानून का शासन' विषय पर सर मौरिस राल्ट स्मृति व्याख्यान 2025 का उद्घाटन करते हुए उन्होंने बुलडोजर न्याय की निंदा करने वाले अपने ही फैसले का उल्लेख किया।
प्रख्यात न्यायविद सर मौरिस राल्ट 1978 से 1982 तक मॉरीशस के प्रधान न्यायाधीश थे। जस्टिस गवई मारीशस की तीन दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं।
उन्होंने कहा कि बुलडोजर न्याय मामले में दिए गए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कथित अपराधों को लेकर अभियुक्तों के घरों को गिराना कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करता है, कानून के शासन का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आश्रय के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
उन्होंने कहा कि यह भी माना गया कि कार्यपालिका अन्य भूमिका नहीं निभा सकती। इस मौके पर मारीशस के राष्ट्रपति धर्मबीर गोखूल, प्रधानमंत्री नवीनचंद्र रामगुलाम और प्रधान न्यायाधीश रेहाना मुंगली गुलबुल आदि भी उपस्थित थे। अपने संबोधन में प्रधान न्यायाधीश ने 1973 के केशवानंद भारती मामला सहित सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों का उल्लेख किया।
जस्टिस गवई ने कहा कि सामाजिक क्षेत्र में, ऐतिहासिक अन्याय के निवारण के लिए कानून बनाए गए हैं और हाशिए पर पड़े समुदायों ने अपने अधिकारों का दावा करने के लिए अक्सर इनका और कानून के शासन की भाषा का सहारा लिया है। उन्होंने कहा कि राजनीतिक क्षेत्र में कानून का शासन सुशासन और सामाजिक प्रगति के मानक के रूप में कार्य करता है, जो कुशासन और अराजकता के बिल्कुल विपरीत है।
उन्होंने हाल के उल्लेखनीय फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें मुसलमानों में तीन तलाक की प्रथा को समाप्त करने वाला फैसला भी शामिल है। जस्टिस गवई ने उस फैसले के महत्व पर भी जोर दिया जिसमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है।
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