नेपाल से श्रीलंका तक सियासी उथल-पुथल, क्यों दुनिया भारत के लोकतंत्र से सीखने को कह रही है?
भारत के पड़ोसी देश राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रहे हैं। वहीं हमारा लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है। 1947 से अब तक भारत ने अपनी साक्षरता दर बढ़ाकर 70% से अधिक कर ली है। औसत आयु 40 से 70 वर्ष हो गई है और हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं। समावेशी राजनीति और गरीबी में कमी ने...

जागरण टीम, नई दिल्ली। पहले बांग्लादेश अब नेपाल। भारत के पड़ोसी देश एक-एक करके राजनीतिक उथल-पुथल से गुजरते रहे हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार कोई भी देश स्थिर शासन और लोकतंत्र का पर्याय नहीं बन सका है। इन पड़ोसी देशों में से कई तो भारतीय भूभाग के ही अंग रहे हैं। ऐसे में भूराजनैतिक विशेषज्ञों की यह चिंता गैरवाजिब नहीं है कि आखिर इनके डीएनए में अप्रत्याशित बदलाव कैसे आ गया।
हाल ही में एक संवैधानिक मामले की सुनवाई के दौरान भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इन पड़ोसी देशों को सीख दी कि इन्हें भारत के लोकतंत्र से सीखना चाहिए। आखिर ऐसा क्या है भारतीय लोकतंत्र और यहां के जनमानस के सोच-संस्कार में, जिससे दिनोंदिन लोकतंत्र न सिर्फ मजबूत हो रहा है बल्कि पुष्पित-पल्लवित भी हो रहा है। जीवंत लोकतंत्र के इस मर्म की पड़ताल ही आज सबसे बड़ा मुद्दा है।
भारत कैसे बना 1.4 अरब लोगों का देश?
1947 में आजाद भारत की आबादी करीब 32 करोड़ थी। करीब सात दशकों में हम आज 140 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश हैं। अधिक आबादी संसाधनों पर बोझ बढ़ाती लेकिन अगर आबादी शिक्षित,कुशल और उत्पादक है तो यह किसी समाज और देश के वरदान साबित हो सकती है।
बढ़ती गई भारतीयों की औसत आयु
देश की आजादी के समय भारतीयों की औसत आयु 40 वर्ष से कम थी। स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता बहुत कम थी। समय के साथ स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार हुआ। लोगों का जीवन स्तर बेहतर हुआ और आज भारतीयों की औसत आयु 70 वर्ष से अधिक है।
साक्षरता को लेकर कैसा है देश का हाल?
समावेशी है देश का लोकतंत्र
सात दशक से अधिक समय के सफर में भारत में लोकतंत्र अधिक समावेशी होकर उभरा है। शिक्षा और जागरूकता के साथ देश की राजनीति में पिछड़ी और वंचित जातियों का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित हुआ है। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राजनीतिक दल अपेक्षाकृत कमजोर जातियों को सत्ता में भागीदारी मिले, यह सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं।
इसको लेकर जातियों- वर्गों में जागरूकता भी है। आज देश की राजनीति में उच्च जातियों का वर्चस्व नहीं है जैसा कि आजादी के बाद के अगले कुछ दशकों में हुआ करता था। इसने भी भारत को जीवंत लोकतंत्र बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
समावेशी विकास से घटी गरीबी
1947 में देश की आजादी के समय भारत में गरीबी और असमानता का बोलबाला था। जरूरतें पूरी करने के लायक अनाज का उत्पादन भी नहीं होता था। भूमि सुधार, हरित क्रांति और उदारीकरण के साथ आज देश में गरीबी अपने न्यूनतम स्तर पर है।
बड़ी आर्थिक ताकत बन गया भारत
आजादी के बाद करीब चार दशक तक भारत की अर्थव्यवस्था सरकारी नियंत्रण में थी। 1990 में उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज हुई। निजी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर नौकरियां पैदा हुईं।
इससे एक बड़ा मध्य वर्ग पैदा हुआ, जिसने मांग और खपत के चक्र को तेज किया। इसी का नतीजा है कि 4 ट्रिलियन डॉलर के साथ आज हम दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं और अगले कुछ वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होंगे।
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