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    चीन और पाकिस्तान की खैर नहीं! कंधे पर रखकर दागे जाने वाली मिसाइलों पर चल रहा काम

    Updated: Sun, 21 Apr 2024 09:36 PM (IST)

    चीन और पाकिस्तान से लगती सीमाओं पर हवाई खतरों से निपटने के लिए भारतीय सेना बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (वीएसएचओआरएडी) स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए 6800 करोड़ रुपये से अधिक की दो योजनाओं पर काम कर रही है। सेना की स्वदेशी माध्यम से 500 से अधिक लॉन्चर और लगभग 3000 मिसाइलें विकसित करने व खरीदने की योजना है।

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    स्वदेश में विकसित करने के लिए चल रहीं 6,800 करोड़ रुपये की दो योजनाएं। (प्रतीकात्मक तस्वीर)

    एएनआई, नई दिल्ली। चीन और पाकिस्तान से लगती सीमाओं पर हवाई खतरों से निपटने के लिए भारतीय सेना बहुत कम दूरी की वायु रक्षा प्रणाली (वीएसएचओआरएडी) स्वदेशी रूप से विकसित करने के लिए 6,800 करोड़ रुपये से अधिक की दो योजनाओं पर काम कर रही है। सेना की स्वदेशी माध्यम से 500 से अधिक लॉन्चर और लगभग 3,000 मिसाइलें विकसित करने व खरीदने की योजना है।

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    इसके साथ ही सेना पूर्व में रद्द एक टेंडर की संभावना पर भी विचार कर रही है जिसमें पुरानी इग्ला-1 एम मिसाइलों का रिप्लेसमेंट तलाशने में देरी के मद्देनजर रूसी इग्ला-एस का चयन किया गया था। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि भारतीय सेना और भारतीय वायुसेना में वर्तमान वीएसएचओआरएडी मिसाइलें इंफ्रारेड होमिंग गाइडेंस सिस्टम वाली हैं और इग्ला-1एम वीएसएचओआरएडी मिसाइल प्रणाली को 1989 में शामिल किया गया था और 2013 में इसे पुन: शामिल करने की योजना बनाई गई थी।

    लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों से सुरक्षा में होगा इस्तेमाल

    सैन्य अधिकारियों ने बताया, 'वर्तमान में 4,800 करोड़ रुपये की एक परियोजना है जिसमें हैदराबाद मुख्यालय वाली सार्वजनिक क्षेत्र की एक इकाई और निजी क्षेत्र की पुणे स्थित एक कंपनी को लेजर बीम पर आधारित वीएसएचओआरएडी विकसित करने में लगाया गया है जिसका प्रयोग सीमाओं की दुश्मन के ड्रोन, लड़ाकू विमानों और हेलीकॉप्टरों से सुरक्षा करने में किया जाएगा।'

    परियोजना में होंगे 200 लॉन्चर और 1,200 मिसाइलें विकसित

    उन्होंने कहा कि यह परियोजना भारतीय सेना एवं वायुसेना को आपूर्ति के लिए 200 लॉन्चर और 1,200 मिसाइलें विकसित करने के लिए होगी। इस परियोजना का नेतृत्व भारतीय सेना के पास है जो इन मिसाइलों की सबसे बड़ी उपयोगकर्ता है। इन 1,200 मिसाइलों में से 700 मिसाइलें सेना को और बाकी वायुसेना को मिलेंगी।

    सिस्टम का प्रोटोटाइप तैयार करना होगा

    अधिकारियों ने बताया कि दोनों कंपनियों को रक्षा खरीद प्रक्रिया के भारतीय डिजायन, विकास एवं उत्पादन खंड के तहत सिस्टम का प्रोटोटाइप तैयार करना होगा। उद्योग के सूत्रों ने बताया कि इस कार्यक्रम में हुई प्रगति बहुत उत्साहजनक नहीं रही है। एक अन्य कार्यक्रम जिस पर प्रगति हो रही है, वह है इंफ्रारेड होमिंग आधारित वीएसएचओआरएडी बनाने के लिए रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा चलाई जा रही डिजायन एवं विकास परियोजना है।

    डीआरडीओ, अदाणी डिफेंस और आई-कॉम के साथ कर रहा काम

    डीआरडीओ वीएसएचओआरएडी के उत्पादन के लिए अपने दो विकास सह उत्पादन साझीदारों अदाणी डिफेंस और आई-कॉम के साथ काम कर रहा है। अधिकारियों ने कहा कि डीआरडीओ ने ट्राइपोड पर आधारित प्रणाली का परीक्षण कर लिया है और अब उन्हें कंधे से दागी जाने वाली हथियार प्रणाली बनाने के लिए इसे छोटा करने की उम्मीद है। इस बीच, भारतीय सेना और वायुसेना ने रूसी इग्ला के लगभग 96 लांचरों की खरीद के लिए आपात खरीद शक्तियों का इस्तेमाल किया जिनमें से 48 पहली किस्त के रूप में आ चुके हैं और बाकी 48 की निकट भविष्य में आपूर्ति किए जाने की संभावना है।

    रद्द किए गए अनुबंध को रिवाइव करने का सुझाव

    इस बीच पांच वर्ष पहले रद्द किए गए उस अनुबंध को रिवाइव करने का सुझाव है जिसमें रूस अपने इग्ला-एस सिस्टम की पेशकश के साथ सबसे कम बोली लगाने वाले के रूप में उभरा था। इस परियोजना को 'मेक इन इंडिया' के तहत आगे बढ़ाने के तरीकों का पता लगाने के लिए हितधारकों की बैठक जल्द होने की उम्मीद है।

    परियोजना की लागत 4,800 करोड़ रुपये होने की उम्मीद

    रक्षा मंत्रालय द्वारा रद्द इस परियोजना की लागत 4,800 करोड़ रुपये होने की उम्मीद थी। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध सहित विभिन्न युद्धों में वीएसएचओआरएडी मिसाइलों का महत्व नियमित रूप से साबित हुआ है। भारतीय सेनाएं अपनी पुरानी वीएसएचओआरएडी प्रणाली को ही बदलने के मामलों को आगे बढ़ा रही

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