भारत के सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर अमेरिका-ईयू के साथ अगले वर्ष व्यापार समझौते की उम्मीद, लेबर इंटेंसिव सेक्टर को होगा फायदा
Trade in 2026: वर्ष 2026 के शुरुआती महीनों में अमेरिका और यूरोपियन यूनियन के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता होने की उम्मीद है। ओमान और न्यूजीलैंड के सा ...और पढ़ें

FTA से टैरिफ को मात देने की तैयारी
प्राइम टीम, नई दिल्ली।
विश्व व्यापार के इतिहास में 2025 को ऐसे साल के तौर पर याद किया जाएगा जब ‘ओपन बॉर्डर’ ट्रेड का दौर थम गया। संयुक्त राष्ट्र की संस्था UNCTAD के अनुसार इस वर्ष विश्व व्यापार रिकॉर्ड 35 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर तक पहुंच गया, लेकिन दूसरी तरफ संरक्षणवाद की लहर ने ग्लोबल ट्रेड में बड़े पैमाने पर डी-कपलिंग का काम किया। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी से रेसिप्रोकल टैरिफ से लेकर पारंपरिक सप्लाई चेन के टूटने तक, ग्लोबल ट्रेड का नक्शा पूरी तरह से बदल गया है। हालांकि पारंपरिक ग्लोबल ट्रेड ऑर्डर खंडित होने के साथ एक नई व्यवस्था भी उभरी, जिसमें मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के रूप में द्विपक्षीय ट्रेड डील अहम हो गया। यह सिर्फ ग्रोथ के लिए नहीं, बल्कि कुछ देशों के लिए तो अस्तित्व का सवाल बन गया।
शायद ट्रंप की नीतियों का ही प्रभाव था कि विकासशील देशों के बीच साउथ-साउथ ट्रेड लगभग 8% बढ़ा है। आसियान, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों ने अमेरिका-यूरोप के भारी-भरकम टैरिफ के विकल्प के तौर पर एक-दूसरे के साथ ज्यादा ट्रेड करना शुरू कर दिया। ट्रंप के कदमों के बाद दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी चीन ने रेयर अर्थ और मैग्नेट के निर्यात पर अंकुश लगा दिया, जिससे दुनियाभर में मैन्युफैक्चरिंग को नुकसान हुआ। इस समस्या ने सभी देशों को विकल्प तलाशने पर मजबूर किया।
भारत ने 2025 में दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी इकोनॉमी का स्टेटस बनाए रखा, तो दूसरी तरफ निर्यातकों को सबसे बड़े ट्रेडिंग पार्टनर अमेरिका के 50% टैरिफ का झटका भी लगा। तिरुपुर के टेक्सटाइल हब से लेकर सूरत के डायमंड कटर तक, सबको इस टैरिफ का शॉक लगा। इससे निपटने के लिए भारत भी एफटीए के साथ साउथ-साउथ ट्रेड पर दोगुना जोर दे रहा है।
थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने जागरण प्राइम से कहा, “ग्लोबल ट्रेड में तेजी से बिगड़ते माहौल की वजह से 2026 में भारत का ट्रेड आउटलुक मुश्किल बना रहेगा। राष्ट्रपति ट्रंप के आने के बाद अमेरिका ने WTO के नियमों का बहुत कम ध्यान रखा है। इसका असर पहले से ही दिख रहा है: 50% टैरिफ के तहत, मई 2025 की तुलना में नवंबर में अमेरिका को भारत का निर्यात लगभग 20% कम हो गया है। अमेरिका के साथ जब तक व्यापार समझौता नहीं होता और वह रूसी तेल खरीद से जुड़ा 25% पेनल्टी टैरिफ वापस नहीं लेता, तब तक निर्यात पर संकट के बादल मंडराते रहेंगे।”
ट्रंप टैरिफ की शुरुआत
इस वर्ष टैरिफ वॉर की शुरूआत अप्रैल के पहले हफ्ते में हुई जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी देशों से आयात पर 10% शुल्क लगा दिया। उसके बाद ट्रंप प्रशासन ने अलग-अलग देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों के आधार पर टैरिफ लगाना शुरू किया। भारत पर पहले 25% टैरिफ लगाया गया, जिसे अगस्त में बढ़ाकर 50% कर दिया गया। साल खत्म होते-होते अमेरिका के पड़ोसी देश मेक्सिको ने भी उन देशों के आयात पर टैरिफ लगाने का घोषणा कर दी जिनके साथ उसका मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। इन देशों में भारत भी है। मेक्सिको का टैरिफ 1 जनवरी 2026 से लागू होगा।
ट्रंप के प्रकोप से अमेरिका-मेक्सिको-कनाडा एग्रीमेंट (USMCA) भी नहीं बचा। हालांकि ज्यादातर USMCA सामान ड्यूटी-फ्री रहे, लेकिन जो प्रोडक्ट रूल्स ऑफ ओरिजिन (जैसे बहुत अधिक चीनी पार्ट्स वाली कारें) सख्त नियमों को पूरा नहीं कर पाए, उन पर अमेरिका में 25% पेनल्टी लगाई गई। चीन पर शुरू में 100% से भी अधिक टैरिफ लगाया गया, जिसे जिसे बातचीत के बाद 35% किया गया। अमेरिकी नागरिकों के लिए प्रभावी टैरिफ रेट 2024 में 5% से कम था, जो 2025 के आखिर तक 14-17% हो गया।
भारत के हाल के द्विपक्षीय व्यापार समझौते
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों कहा कि “आजकल ट्रेड में टैरिफ का इस्तेमाल हथियार के तौर पर” किया जाने लगा है। दरअसल, ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी ने दुनिया भर की सरकारों को इस दिशा में सोचने पर मजबूर कर दिया है। भारत भी मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के रूप में टैरिफ का जवाब तलाश रहा है, और इसमें कुछ हद तक कामयाबी मिली भी है। वर्ष 2026 के शुरुआती महीनों में अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, ओमान और न्यूजीलैंड के साथ एफटीए पर अमल की उम्मीद है।
भारत ने अब तक श्रीलंका, भूटान, थाईलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, कोरिया, जापान, ऑस्ट्रेलिया, UAE, मॉरीशस, 10 देशों के ब्लॉक ASEAN (एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस), चार यूरोपीय देशों के ब्लॉक EFTA (आइसलैंड, लिकटेंस्टाइन, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड), इंग्लैंड और ओमान के साथ समझौते किए हैं। चिली, पेरू और इजराइल के साथ भी बातचीत चल रही है।
भारत का इंग्लैंड के साथ जुलाई 2025 में कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक एंड ट्रेड एग्रीमेंट (CETA) हुआ। यह भारत के 99% निर्यात को ड्यूटी-फ्री एक्सेस देता है। इसमें टेक्सटाइल, लेदर और जेम्स जैसे लेबर-इंटेंसिव सेक्टर भी शामिल हैं। इंग्लैंड को कोटा के तहत व्हिस्की और ऑटोमोबाइल जैसे सामान पर धीरे-धीरे टैरिफ में कमी का लाभ मिल रहा है। समझौते से वर्ष 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार 100 अरब डॉलर तक पहुंचने के आसार हैं।
भारत-ओमान CEPA
भारत का सबसे ताजा FTA गुरुवार (18 दिसंबर) को ओमान के साथ हुआ। यह द्विपक्षीय व्यापार में भारत की 17वीं डील है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल के अनुसार तीन महीने में इसके लागू हो जाने की उम्मीद है। इस समझौते के तहत ओमान, भारत के लेबर-इंटेंसिव प्रोडक्ट जैसे टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी, लेदर, फुटवियर, स्पोर्ट्स गुड्स, प्लास्टिक, फर्नीचर, कृषि उत्पाद, इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मास्यूटिकल्स, मेडिकल डिवाइस और ऑटोमोबाइल्स पर कस्टम ड्यूटी हटा देगा। दूसरी ओर ओमान को खजूर, मार्बल और पेट्रोकेमिकल्स जैसे प्रोडक्ट्स पर कोटा के साथ ड्यूटी में छूट मिलेगी।
ओमान के साथ समझौते पर मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री एसोसिएशन AiMeD के फोरम कोऑर्डिनेटर राजीव नाथ ने कहा, इससे आपसी व्यापार मजबूत होगा और भारत की मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री के लिए नए रास्ते खुलेंगे। यह एग्रीमेंट सिरिंज, डायलाइजर और सिंगल-यूज डिवाइस जैसी सस्ती लेकिन अच्छी क्वालिटी की टेक्नोलॉजी तक पहुंच बढ़ाएगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग पार्टनरशिप को भी बढ़ावा मिलेगा। राजीव नाथ के अनुसार, CEPA ऐसा समझौता है जो खाड़ी क्षेत्र में हेल्थकेयर की पहुंच बढ़ाने में एक भरोसेमंद पार्टनर के रूप में भारत की भूमिका को मजबूत करता है।
वर्ष 2024-25 में ओमान को भारत ने 4.1 अरब डॉलर का निर्यात किया, जिसमें सबसे ज्यादा नैफ्था (74.76 करोड़ डॉलर) और पेट्रोल (56.11 करोड़ डॉलर) थे। ओमान से 6.6 अरब डॉलर के आयात में कच्चा तेल, तरल प्राकृतिक गैस (LNG) और उर्वरकों तीनों का हिस्सा 1.1-1.1 अरब डॉलर का था। भारत ने 2,789 संवेदनशील वस्तुओं को निगेटिव लिस्ट में रखा है। इसमें डेयरी, चाय, कॉफी, रबर और तंबाकू प्रोडक्ट्स जैसे खेती के प्रोडक्ट, सोने-चांदी की ज्वेलरी, चॉकलेट, जूते, स्पोर्ट्स के सामान और कई बेस मेटल स्क्रैप भी शामिल हैं।
भारत के निर्यात पर टैरिफ का असर
भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत के कुल 433.56 अरब डॉलर के वस्तु निर्यात में से 19.95 प्रतिशत यानी 86.51 अरब डॉलर का निर्यात अमेरिका को हुआ। पूरे यूरोप को निर्यात तो 98.34 अरब डॉलर का था, लेकिन इंग्लैंड (14.55 अरब डॉलर) को छोड़ दें तो भारत के निर्यात में बाकी यूरोप (83.79 अरब डॉलर) का हिस्सा 19.32 प्रतिशत था।
अमेरिका ने पहले भारत पर 25% टैरिफ लगाया। रूस से कच्चा तेल खरीदने के कारण ट्रंप प्रशासन ने अगस्त में इसमें और 25% टैरिफ जोड़ दिया। इस तरह 50% टैरिफ के साथ भारत अमेरिका को निर्यात करने वाले सबसे अधिक टैरिफ वाला देश बन गया।

इसका सबसे ज्यादा असर टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी और मरीन प्रोडक्ट्स पर पड़ा जिनका मार्जिन रातों-रात खत्म हो गया। अकेले अक्टूबर में इन सेक्टर के निर्यात वॉल्यूम में 11-15% तक गिरावट आई, क्योंकि भारतीय सामान वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों के मुकाबले कम प्रतिस्पर्धी हो गए। हालांकि इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स इससे बचे रहे। अमेरिका को मोबाइल फोन निर्यात रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष 2025-26 में अप्रैल से नवंबर के दौरान भारत का वस्तु निर्यात सिर्फ 2.62 प्रतिशत बढ़कर 292.07 अरब डॉलर तक पहुंचा है। केयर-एज रेटिंग्स के मुताबिक हाल के महीनों में वस्तु निर्यात कमजोर हुआ है। इसका अनुमान है कि 2025-26 में भारत का वस्तु निर्यात लगभग एक प्रतिशत घटेगा। हालांकि 2024-25 में भी इसमें सिर्फ 0.1 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। केयर-एज के मुताबिक वस्तु निर्यात में यह कमी अमेरिकी टैरिफ की वजह से है। अप्रैल-अक्टूबर 2024-25 के दौरान कुल वस्तु निर्यात 3.3 बढ़ा था, लेकिन इस साल इसी अवधि में ग्रोथ गिरकर सिर्फ 0.5 प्रतिशत रह गई।
केयर-एज के अनुसार, सर्विसेज निर्यात को मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर और बिजनेस सर्विसेज से सपोर्ट मिला है, लेकिन हाल के महीनों में ग्रोथ की रफ्तार धीमी हो गई है। अप्रैल-अक्टूबर 2024 में सर्विसेज निर्यात 216.4 अरब डॉलर का हुआ था और इसमें 12.7 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन अप्रैल-अक्टूबर 2025 में यह 8.2 प्रतिशत वृद्धि के साथ 234.2 अरब डॉलर पहुंचा है। पिछले पूरे वित्त वर्ष में सर्विसेज निर्यात 13.6 प्रतिशत बढ़ा था, लेकिन इस साल सिर्फ 8.5 प्रतिशत ग्रोथ का अनुमान है।
FTA पर कई देशों के साथ बातचीत
अमेरिकी टैरिफ से बचने के लिए भारत ने निर्यात में डायवर्सिफिकेशन का फॉर्मूला अपनाया। इससे 2025 के आखिर में चीन को एक्सपोर्ट लगभग 90% बढ़ गया, जिसकी वजह सीफूड और नेफ्था में अचानक आई तेजी थी। भारत की दीर्घकालिक स्ट्रैटजी एफटीए में है। ये समझौते अलग-अलग सेक्टर में नए मौके खोलने के साथ ग्लोबल वैल्यू चेन में भारत के जुड़ाव को भी मजबूत करेंगे। अभी जिन देशों या समूहों के साथ द्विपक्षीय व्यापार पर बात चल रही है, उनमें अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, चिली, दक्षिण कोरिया (अपग्रेडेड बातचीत), पेरू, यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन शामिल हैं। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि अमेरिका के साथ वार्ता एडवांस स्टेज में है और कनाडा के साथ टर्म्स ऑफ ट्रेड पर जल्दी बात शुरू होगी।
अमेरिका के साथ जल्द समझौते के आसार
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल की शुरुआत में जब अमेरिका गए तो 13 फरवरी 2025 को दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार 2030 तक 500 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य तय हुआ था। इसके लिए नवंबर तक द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA) होना था। लेकिन सरकार के आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन के मुताबिक अब यह समझौता मार्च 2026 तक होने की उम्मीद है। माना जा रहा है कि इसके बाद भारत पर अमेरिकी टैरिफ 50% टैरिफ घटकर 15% हो सकता है।
वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने पिछले दिनों बताया कि भारत और अमेरिका प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौता (FTA) फ्रेमवर्क को अंतिम रूप देने के बहुत करीब हैं। अमेरिका के डिप्टी ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव रिक स्विट्जर हाल ही अग्रवाल से बात करने नई दिल्ली आए थे। अग्रवाल ने कहा, “हम फ्रेमवर्क के बहुत करीब हैं, लेकिन मैं कोई समय सीमा नहीं लगाना चाहूंगा।”
यूरोपियन यूनियन के साथ वार्ता अंतिम चरण में
यूरोपियन यूनियन के साथ एफटीए भी अंतिम चरण में बताया जा रहा है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल बातचीत के लिए 8-9 जनवरी को बेल्जियम की राजधानी ब्रुसेल्स जाएंगे। दोनों देशों के बीच 16वें दौर की बातचीत 3-9 दिसंबर 2025 को हुई थी। ईयू के साथ 2024-25 में भारत का 136.53 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। इसमें भारत का निर्यात 75.85 अरब डॉलर का था।
एक अहम मुद्दा कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मेकैनिज्म (CBAM) या कार्बन टैक्स का है। इसके तहत ईयू स्टील, एल्युमिनियम और सीमेंट पर 20-35 प्रतिशत टैरिफ लगाने जा रहा है। अग्रवाल के अनुसार, CBAM पर बात हो रही है। हालांकि ईयू के क्लाइमेट कमिश्नर वोपके होकेस्ट्रा ने कहा है कि यूरोपियन यूनियन किसी भी देश को कार्बन बॉर्डर लेवी से छूट नहीं देगा।
GTRI के श्रीवास्तव के अनुसार, “CBAM से कार्बन-इंटेंसिव इंडस्ट्री की लागत बढ़ जाएगी। ईयू में कार्बन टैक्स लागू होने से पहले ही CBAM रिपोर्टिंग और कम्प्लायंस की जरूरतों के कारण भारत का स्टील निर्यात 24% तक कम हो गया है।”
भारत और EU के बीच एक व्यापक FTA, निवेश सुरक्षा और जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) पर जून 2022 में बातचीत फिर से शुरू हुई। बाजार खोलने के स्तर पर मतभेदों के कारण 2013 में यह रुक गई थी। अगर यह समझौता हो जाता है, तो EU को भारत से रेडीमेड कपड़े, फार्मास्यूटिकल्स, स्टील, पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स और इलेक्ट्रिकल मशीनरी का निर्यात प्रतिस्पर्धी हो सकता है। ईयू ऑटोमोबाइल और मेडिकल डिवाइस पर आयात शुल्क में बड़ी कटौती के अलावा, वाइन, स्पिरिट, मीट, पोल्ट्री जैसे दूसरे प्रोडक्ट्स पर शुल्क में कमी और एक मजबूत इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी सिस्टम चाहता है।
सबसे कम समय में समझौता न्यूजीलैंड के साथ
न्यूजीलैंड के साथ एफटीए पर मार्च 2025 में बात शुरू हुई और दिसंबर में इसे अंतिम रूप दे दिया गया। मार्च तक समझौते पर दस्तखत होने और अप्रैल से लागू हो जाने की उम्मीद है। समझौते के तहत न्यूजीलैंड 15 वर्षों में भारत में 20 अरब डॉलर का निवेश करेगा। वर्ष 2024-25 में न्यूजीलैंड को भारत का निर्यात 71.11 करोड़ और आयात 58.71 करोड़ डॉलर था। अभी न्यूजीलैंड का औसत टैरिफ 2.3 प्रतिशत जबकि भारत का 17.8 प्रतिशत है। लेकिन न्यूजीलैंड से आने वाली 58.3 प्रतिशत वस्तुएं ड्यूटी-फ्री हैं।
न्यूजीलैंड के साथ एफटीए की घोषणा के बाद वाणिज्य मंत्री गोयल ने कहा, “पिछले चार वर्षों में यह सातवां एफटीए है। उन्होंने कहा कि बढ़ते संरक्षणवाद के दौर में भारत अधिक से अधिक एफटीए कर रहा है, जिससे निर्यात बढ़ रहा है तथा किसान, ट्रेडर, निर्यातक एवं एमएसएमई संपन्न हो रहे हैं।”
न्यूजीलैंड को भारत मुख्य रूप से ईंधन, टेक्सटाइल और दवाओं का निर्यात करता है। बाकी वस्तुओं में कपड़े, होम टेक्सटाइल, ऑटो-ऑटो मार्ट्स, श्रिंप, बासमती चावल और ज्वैलरी शामिल हैं। न्यूजीलैंड से मुख्य रूप से लकड़ी के सामान और वुड पल्प (कागज उद्योग में इस्तेमाल), स्टील और एल्युमिनियम स्क्रैप, कोकिंग कोल, टर्बोजेट, शॉर्न ऊन, मिल्क एल्बुमिन, सेब और कीवी फल आदि का आयात होता है। न्यूजीलैंड से डेयरी आयात पर टैरिफ में कोई रियायत नहीं दी गई है। न्यूजीलैंड दुनिया के सबसे बड़े डेयरी निर्यातकों में एक है। वर्ष 2024-25 में उसने भारत को 10.7 लाख डॉलर का डेयरी निर्यात किया था।
चीन के साथ बढ़ सकता है व्यापार घाटा
चीन के साथ भारत का व्यापार बहुत ज्यादा असंतुलित है। GTRI के अनुसार मौजूदा वित्त वर्ष में चीन के साथ रिकॉर्ड व्यापार घाटे के आसार हैं। भारत से चीन को निर्यात 2021 के 23.0 अरब डॉलर से गिरकर 2024 में 15.1 अरब डॉलर रह गया। 2025 में इसके 17.5 अरब डॉलर होने का अनुमान है। इस दौरान आयात बहुत तेजी से बढ़ा है। यह 2021 में 87.7 अरब डॉलर था, जिसके 2025 में 123.5 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इससे मौजूदा वर्ष में घाटा 106 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
GTRI के अजय श्रीवास्तव का कहना है, प्रतिस्पर्धी मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने, खास सेक्टर में आयात पर निर्भरता कम करने और ट्रेड मॉनिटरिंग को मजबूत करने की स्ट्रैटेजी के बिना भारत-चीन व्यापार में असंतुलन को दूर नहीं किया जा सकेगा।
रूस के साथ व्यापार एकतरफा, पर संभावनाएं भी
अभी रूस के साथ भारत का व्यापार लगभग एकतरफा है और व्यापार घाटा 59 अरब डॉलर का है। रूस के कुल आयात में भारत का हिस्सा सिर्फ 2.53 प्रतिशत है। रूस से भारत का आयात वर्ष 2020 में सिर्फ 5.54 अरब डॉलर का था जो 2024 में 64.24 अरब डॉलर तक पहुंच गया। हालांकि इसमें सबसे अधिक योगदान कच्चे तेल का है जिसका आयात दो अरब डॉलर से बढ़कर 57 अरब डॉलर हो गया।
रूस के साथ द्विपक्षीय कारोबार वर्ष 2030 तक 100 अरब डॉलर तक ले जाने का लक्ष्य है। इसके लिए भारत ने इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मा, कृषि और केमिकल इंडस्ट्री के करीब 300 प्रोडक्ट की पहचान की है, जिनका रूस को निर्यात किया जा सकता है। अभी भारत से रूस को इन वस्तुओं का निर्यात करीब 1.7 अरब डॉलर का है जबकि रूस में इनका 37.4 अरब डॉलर का आयात होता है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हाल के भारत दौरे में रेसिप्रोकल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक्स सपोर्ट (RELOS) समझौता हुआ। इस समझौते से दोनों देश हथियारों के क्षेत्र में तो साझेदारी करेंगे ही, रूस के आर्कटिक क्षेत्र में भी भारत को पहुंच मिलेगी। यह क्षेत्र तेल, गैस और महत्वपूर्ण खनिजों के उन सबसे बड़े भंडारों में है जिनका अभी तक दोहन नहीं हुआ है। अनुमान है कि यहां 35,700 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस और 230 करोड़ टन तेल एवं कंडेंसेट है।
पूर्व फॉरेक्स ट्रेडर और बैंक ऑफ मॉन्ट्रियल में फॉरेक्स विभाग के डायरेक्टर साइमन वाटकिन्स के अनुसार, इस समझौते से भारतीय जहाजों को रूस के मरमंस्क और व्लादिवोस्तोक बंदरगाहों पर ईंधन भरने की सहूलियत मिल जाएगी। इसका फायदा यह होगा कि यूरोप तक शिपिंग की दूरी लगभग 40% कम हो जाएगी। इससे नौसेना को तो मदद मिलेगी ही, ट्रेड बढ़ाने में भी सहूलियत होगी।
अमेरिकी दबाव में मेक्सिको ने भी लगाया टैरिफ
मेक्सिको 1 जनवरी 2026 से उन देशों पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाने जा रहा है जिनके साथ उसका मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। इससे भारत, चीन, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और इंडोनेशिया जैसे देशों का निर्यात प्रभावित होगा। इस टैरिफ के दायरे में 1,400 से ज्यादा प्रोडक्ट आएंगे। इनमें ऑटोमोबाइल, स्टील, टेक्सटाइल और प्लास्टिक प्रोडक्ट भी शामिल हैं। वाणिज्य मंत्रालय के निर्यात पोर्टल के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष भारत से मेक्सिको को 5.75 अरब डॉलर का निर्यात हुआ। ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (ACMA) के अनुसार पिछले साल मेक्सिको को 83.4 करोड़ डॉलर के ऑटो पार्ट्स का निर्यात किया गया। इस साल पहली छमाही में इनका 37 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है।
दरअसल, अमेरिका- मेक्सिको- कनाडा समझौते (USMCA) के तहत रूल्स ऑफ ओरिजिन सख्त हुए हैं। मेक्सिको पर यह दिखाने का दबाव बढ़ा है कि वह एशिया में बने सामान के लिए पास-थ्रू नहीं, बल्कि एक असली मैन्युफैक्चरिंग बेस है। उदाहरण के लिए, कारों और इलेक्ट्रिक गाड़ियों को अब ड्यूटी-फ्री ट्रेड में क्वालिफाई करने के लिए अमेरिका से ज्यादा पार्ट्स और लेबर का इस्तेमाल करना होगा। मेक्सिकन निर्यातकों को यह साबित करने के लिए ज्यादा सख्त चेकिंग और पेपरवर्क का सामना करना पड़ता है कि उनकी गाड़ियां सच में वहीं बनी हैं।
एफटीए से WTO का घट रहा महत्व
फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTAs) के दौर में वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन (WTO) की अहमियत कम हो रही है। यह बदलाव डब्लूटीओ के अनेक काम ठप होने और संरक्षणवाद तथा प्रेफरेंशियल ट्रेड डील्स बढ़ने की वजह से हुआ है। सबसे बड़ी चुनौती 2019 से WTO की अपीलेट बॉडी का काम न करना है, क्योंकि अमेरिका नए जजों की नियुक्ति में रुकावट डाल रहा है। इससे वैश्विक ट्रेड नियमों को लागू करना कमजोर हो गया है।
वर्ष 2001 में शुरू हुए दोहा डेवलपमेंट राउंड की वार्ता पर सदस्य देशों के बीच गहरे मतभेद (जैसे कृषि सब्सिडी पर) सामने आए हैं। नए नियमों पर आम सहमति न बन पाने की नाकामी ने सदस्य देशों को निराश किया है और उन्हें छोटे, अलग एग्रीमेंट के लिए मजबूर किया है। द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार समझौतों का बढ़ना सीधे तौर पर WTO के मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) के बुनियादी सिद्धांत को कमजोर करता है। यह सिद्धांत सभी सदस्यों के बीच बिना भेदभाव वाले ट्रेड की गारंटी देता है।
कैसा रह सकता है साल 2026, क्या करे भारत
कई अर्थशास्त्री मानते हैं कि विश्व स्तर पर 2026 में स्टैगफ्लेशन की स्थिति रहेगी, अर्थात कीमतों पर दबाव के साथ मामूली ग्रोथ। बिजनेस अब टैरिफ की लागत नहीं उठा सकते, इसलिए वे इसका बोझ उपभोक्ताओं पर डालेंगे। इससे विश्व स्तर पर महंगाई दर लगभग 3.5% रहेगी। वर्ष 2025 में जो फ्रंडलोडिंग हुई, वह 2026 में नहीं दिखेगी। इसलिए वर्ष 2026 में ट्रेड वॉल्यूम ग्रोथ के काफी धीमा होकर 0.5%–0.6% होने की उम्मीद है। सप्लाई चेन की नई व्यवस्था में फ्रेंड-शोरिंग को बढ़ावा मिलेगा। टैरिफ का जोखिम कम करने के लिए कंपनियां चीन से भारत, वियतनाम और मेक्सिको में अपनी मैन्युफैक्चरिंग शिफ्ट करना जारी रखेंगी।
भारत के लिहाज से देखें तो अमेरिका के साथ ट्रेड डील से 50% टैरिफ घटकर 15% हो सकता है। इससे MSME सेक्टर में बड़ी रिकवरी हो सकती है। चाइना प्लस वन स्ट्रैटेजी आगे बढ़ने के साथ भारत की PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) स्कीमें रफ्तार पकड़ेंगी, खासकर सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) में। डॉलर की तुलना में रुपया फिलहाल 90–91 पर स्थिर होने की उम्मीद है। बिजनेस के लिए यह एक बफर के तौर पर काम करेगा और टैरिफ ज्यादा होने पर भी भारतीय निर्यात को सस्ता बनाएगा।
GTRI के अजय श्रीवास्तव के अनुसार, “भूराजनीति या विकसित अर्थव्यवस्थाओं के संरक्षणवादी रवैये को प्रभावित करने की क्षमता सीमित होने के कारण 2026 में भारत को अपनी निर्यात रणनीति में कुछ बदलाव करने होंगे। सबसे भरोसेमंद रास्ता प्रोडक्ट की क्वालिटी में सुधार, वैल्यू चेन में ऊपर जाना और एक्सपोर्ट बास्केट तथा मार्केट में विविधता लाना है। जाहिर है कि इसके लिए पॉलिसी सपोर्ट बहुत जरूरी होगा। सरकार को एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन को तत्काल शुरू करना पड़ेगा, नियमों को आसान बनाना होगा, प्रोडक्शन लागत कम करनी होगी और बिजनेस करने में आसानी को बेहतर बनाना होगा। ऐसे समय जब बाहरी माहौल उपयुक्त नहीं है, देश में प्रतिस्पर्धी माहौल तय करेगा कि भारत का निर्यात सिर्फ बचेगा या बढ़ेगा।”

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