व्यापारिक तनाव के बीच अमेरिका से एलपीजी खरीदेगा भारत, ट्रंप के दबाव पर सरकार का मास्टरस्ट्रोक?
भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सहयोग बढ़ रहा है। भारत पहली बार अमेरिका से एलपीजी खरीदेगा, जिसके लिए सरकारी तेल कंपनियों ने 2026 के लिए 22 लाख टन प्रति वर्ष का अनुबंध किया है। पेट्रोलियम मंत्री ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि बताया है। यह सौदा ऐसे समय पर हुआ है जब दोनों देशों के बीच व्यापारिक तनाव है, और अमेरिका भारत पर रूसी तेल की खरीद कम करने का दबाव बना रहा है।

भारत के कुल वार्षिक एलपीजी आयात का लगभग 10 प्रतिश (फाइल फोटो)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग और मजबूत हो गया है। सोमवार को भारत ने बताया है कि वह अमेरिका से पहली बार एलीपीजी की खरीद करने जा रहा है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार भारत पर रूस से इनर्जी खरीद कम करने और अमेरिका बढ़ाने को लेकर दबाव बना रहे थे।
पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने 17 नवंबर को इसकी घोषणा करते हुए बताया कि सरकारी क्षेत्र की तेल कंपनियों (इंडियन ऑयल, बीपीसीएल और एचपीसीएल) ने अमेरिका की खाड़ी तट से 2026 कैलेंडर वर्ष के लिए करीब 22 लाख टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) एलपीजी आयात का एक साल के अनुबंध को अंतिम रूप दे दिया है। यह भारत के कुल वार्षिक एलपीजी आयात का लगभग 10 प्रतिशत है।
एलपीजी बाजार अब अमेरिका के लिए खुला
पेट्रोलियम मंत्री पुरी ने इसे “ऐतिहासिक उपलब्धि'' करार देते हुए कहा कि दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से बढ़ता एलपीजी बाजार अब अमेरिका के लिए खुल गया है। जुलाई 2025 में तीनों पीएसयू कंपनियों के अधिकारियों की अमेरिका यात्रा और वहां प्रमुख अमेरिकी उत्पादकों के साथ हुई बातचीत के बाद यह सौदा पूरा हुआ है। यह सौदा ऐसे समय में हुआ है जब भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव चरम पर है।
अमेरिका लंबे समय से भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपनी पेट्रोलियम जरूरतों के लिए रूसी तेल एवं उत्पादों की खरीद कम करे और इसके बदले अमेरिकी कंपनियों से ज्यादा क्रूड ऑयल, एलपीजी और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद खरीदे। ट्रंप प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने कई मौकों पर भारत को रूस से तेल खरीदने पर अप्रत्यक्ष रूप से चेतावनी दी है। इससे दोनों देशों के बीच संबंधों पर उल्टा असर भी पड़ा है।
रूसी क्रूड की खरीद में उल्लेखनीय कमी
वैसे आधिकारिक तौर पर भारत ने तो यह कहा कि वह अपनी ऊर्जा जरूरत के हिसाब से जहां से जरूरत होगी वहां से तेल खरीदेगा। लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय रिफाइनरियों ने रूसी क्रूड की खरीद में उल्लेखनीय कमी शुरू कर दी है। तकरीबन दो वर्षों तक रूस भारत के शीर्ष तीन तेल आपूर्तिकर्ता देशों में शामिल रहा लेकिन अब फिर से खाड़ी के देश (सऊदी अरब, ईराक, यूएई आदि) शीर्ष पर लौट आए हैं।
माना जा रहा है कि अमेरिका ने कई द्विपक्षीय बैठकों में यह प्रस्ताव रखा था कि यदि भारत रूसी तेल पर निर्भरता कम करता है तो अमेरिकी एलपीजी और क्रूड के लिए बेहतर कीमत और लंबी अवधि के अनुबंध उपलब्ध कराए जाएंगे।विश्लेषकों का मानना है कि यह एलपीजी सौदा दोनों देशों के बीच लंबित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (बीटीए) की राह प्रशस्त कर सकता है। अमेरिका भारत से कृषि उत्पाद, दवाइयों और स्टील-एल्यूमिनियम पर आयात शुल्क कम करने की मांग कर रहा है, जबकि भारत अमेरिकी वीजा नीति, डेयरी उत्पाद और पेट्रोलियम क्षेत्र में ज्यादा बाजार पहुंच चाहता है।
एलपीजी समझौते को दोनों देशों के बीच बीटीए को लेकर बढ़ती समझ-बूझ को बताता है। पेट्रोलियम मंत्री पुरी ने याद दिलाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले साल वैश्विक एलपीजी कीमतों में 60 प्रतिशत से अधिक की बढ़ोतरी के बावजूद उज्ज्वला लाभार्थियों को 500-550 रुपये में ही सिलेंडर उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार ने 1,100 रुपये से ऊपर की वास्तविक कीमत का बोझ उठाते हुए 40,000 करोड़ रुपये से अधिक की सब्सिडी पिछले साल दी थी। नया अमेरिकी सौदा भी ऊर्जा सुरक्षा मजबूत करने और आम घरों तक सस्ती रसोई गैस पहुंचाने की दिशा में एक और कदम है।

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