नई दवाओं की खोज के रास्ते होंगे आसान, क्लिनिकल ट्रायल के नियमों में होगा संशोधन
भारत अब नई दवाओं की खोज का केंद्र बनने की ओर अग्रसर है। स्वास्थ्य मंत्रालय नई दवाओं और क्लिनिकल ट्रायल नियमों में बदलाव करने की तैयारी में है। कम खतरे वाली दवाओं के ट्रायल के लिए लाइसेंस का इंतजार नहीं करना होगा और क्लिनिकल ट्रायल का लाइसेंस 45 दिन में मिल जाएगा। इन सुधारों का उद्देश्य नई दवाओं की खोज और स्वीकृति को बढ़ावा देना है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। दुनिया का फार्मेसी हब माने जाने वाला भारत अब नई दवाओं की खोज का भी केंद्र बन सकेगा। इसके लिए स्वास्थ्य मंत्रालय नई दवाओं और क्लिनिकल ट्रायल से जुड़े नियमों में बड़े बदलाव की तैयारी है। नए नियमों के लागू होने के बाद एक तरफ कम खतरे वाली दवाओं के ट्रायल के लिए लाइसेंस मिलने का इंतजार नहीं करना होगा, वहीं दूसरी तरफ क्लिनिकल ट्रायल का लाइसेंस 45 दिन में मिल जाएगा, जिसमें अभी 90 दिन लग जाते हैं।
ध्यान देने की बात है कि 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से भारत में नई दवाओं की खोज सुनिश्चित करने और इसके लिए अनुकूल वातावरण बनाने का आह्वान किया था। स्वास्थ्य मंत्रालय के आधिकारिक सूत्रों के अनुसार इसके लिए 2019 के नई दवा व क्लिनिकल ट्रायल नियमों में संशोधन किया जाएगा।
नई दवाओं की खोज और स्वीकृति के अनुकूल माहौल बनाना
मंत्रालय ने संशोधनों के मसौदे की गजट अधिसूचना 28 अगस्त को जारी कर दी है और इस पर सभी हितधारकों का सुझाव मांगा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन सुझावों के आधार पर प्रस्तावित सुधारों में और भी बदलाव किये जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य देश में नई दवाओं की खोज और स्वीकृति के अनुकूल माहौल बनाना है ताकि नई दवाओं की खोज और पेमेंट में भी भारत अग्रणी साबित हो। इस समय भारत जेनेरिक दवाओं का उत्पादन में दुनिया में तीसरे नंबर पर है।
शोध करने वालों को सेंट्रल लाइसेंसिंग अथारिटी को सूचित करना होगा
नियमों में प्रस्तावित बदलावों के तहत कुछ प्रकार की बायोएवैबिलिटी और बायोइक्वीवैलेंस स्टडीज के लिए जरूरी लाइसेंस को खत्म करना शामिल है। इन मामलों में शोध करने वालों को सिर्फ सेंट्रल लाइसेंसिंग अथारिटी को सूचित करना होगा।
इसी तरह से कम खतरे वाली दवाओं का क्लिनिकल ट्रायल सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) में लाइसेंस के लिए आवेदन के साथ शुरू किया जा सकता है। इसके लिए लाइसेंस मिलने का इंतजार नहीं करना होगा।
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन बदलावों से दवाओं के क्लिनिकल ट्राइल के लिए लाइसेंस के आने वाले आवेदन आधे रह जाएंगे। जिससे सीडीएससीओ पर काम का बोझ भी कम होगा और उसके क्षमताओं का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा।
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