समुद्र के अंदर नौसेना की बढ़ेगी ताकत... पुतिन के दौरे से परमाणु पनडुब्बी डील को मिलेगी हरी झंडी !
रूस के राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा से पहले, दोनों देशों ने परमाणु पनडुब्बी सौदे को अंतिम रूप दिया। भारत को रूस से अकुला क्लास की परमाणु हमलावर पनड ...और पढ़ें

आइएनएस चक्र तृतीय नाम से मिलेगी पनडुब्बी
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत दौरे से पहले दोनों पक्षों ने परमाणु पनडुब्बी पर लंबे समय से अटकी डील को अंतिम रूप दे दिया। इसके बाद भारत को जल्द ही रूस से परमाणु चालित हमलावर पनडुब्बी (एसएसएन) मिलने का रास्ता साफ हो गया है।
नौसेना को मिलने के बाद इसे आइएनएस चक्र तृतीय के नाम से जाना जाएगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अकुला क्लास की ये पनडुब्बी 2027-28 में अगले 10 साल के लिए मिलेगी। इसके लिए भारत रूस को दो अरब डालर का भुगतान करेगा।
रूस से परमाणु पनडुब्बी सौदा अंतिम
डील फाइनल होने के बाद रूस के सेवेरोडविस्क शिपयार्ड में इस पनडुब्बी का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। पनडुब्बी मिलने से समंदर के नीचे देश की ताकत असीमित रूप से बढ़ जाएगी। हालांकि, इस पर अभी आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
बता दें कि अभी दुनिया में पांच देशों के पास ही अपनी परमाणु पनडुब्बी है, जिसमें अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन शामिल हैं। भारत को परमाणु पनडुब्बी ऐसे समय मिल रही है, जब देश अपनी खुद की परमाणु पनडुब्बी तैयार करने में जुटा हुआ है।
आइएनएस चक्र तृतीय नाम से मिलेगी पनडुब्बी
रूसी पनडुब्बी अत्याधुनिक तकनीक से लैस होगी और इसे ज्यादातर प्रशिक्षण पहलुओं को ध्यान में रखकर लिया जा रहा है। पनडुब्बी के नए तकनीकी पहलुओं को समझने और इसके संचालन से पहले अनुभव हासिल करने में ये काफी मददगार साबित हो सकती है।
समझौते के तहत रूस पनडुब्बी की देखरेख करेगा और लाजिस्टिकल सपोर्ट भी देगा। एसएसएन पनडुब्बी की खासियत परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियों को डीजल-इलेक्टि्रक पनडुब्बियों की तुलना में कहीं अधिक उन्नत माना जाता है, क्योंकि वे कई हफ्तों तक पानी में रह सकती हैं और अधिक शांति से काम करती हैं।
ये आकार में भी बड़ी होती हैं और ¨हद व प्रशांत महासागरों में उनका पता लगाना कठिन होता है। ये बिना सतह पर आए लंबी दूरी की सामरिक समुद्री निगरानी एवं आपरेशन संचालित कर सकती है। एसएसएन पनडुब्बी पारंपरिक (गैर-परमाणु) हथियारों से लैस होगी।
बढ़ रही है परमाणु पनडुब्बियों की मांग
हिंद महासागर में बढ़ती सामुद्रिक चुनौती को देखते हुए परमाणु पनडुब्बी अब वैश्विक जरूरत बन गई है। ब्रिटेन और अमेरिका की मदद से आस्ट्रेलिया परमाणु पनडुब्बी तैयार कर रहा है, जबकि दक्षिण कोरिया भी अमेरिका की मदद से इस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।
भारत के पास फिलहाल 17 डीजल-इलेक्टि्रक पनडुब्बियां हैं, लेकिन परमाणु पनडुब्बियों की रणनीतिक क्षमता को देखते हुए इन पर भी तेजी से काम किया जा रहा है। इन्हें देश में ही डिजाइन करके तैयार किया जा रहा है।
2019 से चल रही थी पनडुब्बी पर बात
2019 से चल रही थी पनडुब्बी पर बात मार्च 2019 में इस पनडुब्बी पर बात शुरू हुई थी, जिसके लिए रूस तीन अरब डालर मांग रहा था। हालांकि, अब दो अरब डालर में सौदा पक्का हो गया है। यह पनडुब्बी 2025 तक मिलने की उम्मीद थी, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इसमें देरी हुई है।
गौरतलब है कि रूस से पहली बार अकुला-क्लास की पनडुब्बी (आइएनएस चक्र 1988-1991) के दौरान लीज पर ली गई थी। दूसरी बार, नेरपा नामक अकुला-क्लास पनडुब्बी (आइएनएस चक्र 2012-2022) 10 साल के लिए लीज पर ली गई थी।
(न्यूज एजेंसी पीटीआई के इनपुट के साथ)

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