रक्षा क्षेत्र से लेकर कूटनीतिक समर्थन... आजादी से अब तक ऐसे बहुआयामी बने भारत-रूस संबंध
भारत और रूस के प्रगाढ संबंध सात दशकों से भी पुराने हैं। बीसवीं सदी के छठें और सातवें दशक में चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत को ...और पढ़ें

आजादी से अब तक ऐसे बहुआयामी बने भारत-रूस संबंध (फोटो- रॉयटर)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत और रूस के प्रगाढ संबंध सात दशकों से भी पुराने हैं। बीसवीं सदी के छठें और सातवें दशक में चीन और पाकिस्तान के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच भारत को अमेरिका और पश्चिमी देशों से वह सहयोग और समर्थन नहीं मिला, जिसकी उसे जरूरत थी।
इस कमी को तत्कालीन सोवियत संघ ने पूरा किया। उसने भारत को हथियार और रक्षा उपकरण दिए और वैश्विक मंचों पर भी कश्मीर के मसले पर भारत का समर्थन दिया। हालांकि लंबे समय तक भारत और रूस के संबंधों में रक्षा क्षेत्र का प्रभुत्व रहा, जिसमें भारत खरीदार था और रूस विक्रेता।
इस बीच चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत के उभार के साथ दोनों देशों के बीच सहयोग का दायरा बहुआयामी हो गया है। अब भारत का रूस से रिश्ता सिर्फ खरीदार के तौर पर नहीं बल्कि भागीदार के तौर पर है। आइये नजर डालते हैं इस बदलाव पर..
औद्योगिक विकास में सहयोग
1947 में जब भारत आजाद हुआ तो सोवियत संघ एक महाशक्ति के तौर पर उभर चुका था। दूसरी महाशक्ति अमेरिका था। सोवियत संघ ने भारी उद्योग लगाने और बड़े बांध बनाने में भारत की मदद की। सोवियत संघ की मदद से स्टील, खनन और ऊर्जा और मैन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में बड़े सार्वजनिक उपक्रम स्थापित किए गए। पंच वर्षीय योजना पर आधारित आर्थिक मॉडल भी सोवियत संघ से प्रेरित था।
रक्षा के क्षेत्र में सहयोग की शुरुआत
1962 में चीन के साथ युद्ध और पराजय के बाद भारत ने सेनाओं के आधुनिकीकरण पर जोर दिया। इस दौर में अमेरिका और पश्चिमी देशों ने आधुनिक लड़ाकू विमान और रक्षा साजो सामान देने में आनाकानी की।
ऐसे समय में सोवियत संघ ने भारत को सुपरसोनिक लड़ाकू विमान मिग- 21 दिया। यह लड़ाकू विमान अगले कई दशकों तक भारतीय वायुसेना की आक्रामक क्षमताओं का प्रमुख हिस्सा बना रहा।
कूटनीतिक समर्थन
रक्षा संबंधों में मजबूती के साथ सोवियत संघ ने वैश्विक मंचों पर भारत को कूटनीतिक समर्थन दिया। सदी के सातवें दशक में पाकिस्तान की सेना के अत्याचारों की वजह से करोड़ों लोग पलायन करके भारत आ गए थे।
इससे भारत पर आर्थिक दबाव बढ़ गया। भारत ने इस मसले पर पूर्वी पाकिस्तान की मुक्त वाहिनी का समर्थन किया और 1971 के युद्ध के बाद एक स्वतंत्र देश बांग्लादेश बना। अमेरिका सहित पश्चिमी देश पाकिस्तान के पक्ष में खड़े थे।
ऐसे समय में सोवियत संघ ने न सिर्फ कूटनीतिक मोर्चे पर भारत का समर्थन किया बल्कि अमेरिका के सैन्य हस्तक्षेप की धमकी पर बंगाल की खाड़ी में परमाणु पनडुब्बियां भेज कर सैन्य मोर्चे पर भी भारत का समर्थन किया।
प्रमुख रक्षा आपूर्तिकर्ता बना रूस
1990 में सोवियत संघ के विघटन के बाद भी रूस और भारत के संबंध मजबूत बने रहे। हालांकि यह संबंध काफी हद तक रक्षा के क्षेत्र तक सीमित रह गए। रूस भारत की रक्षा जरूरतों के लिए प्रमुख आपूर्तिकर्ता बना रहा। रूस ने भारत को लीज पर परमाणु पनडुब्बियां दीं।
बीच में दोनों देशों ने मिल कर बह्मोस मिसाइल का संयुक्त उत्पादन किया। भारत और रूस के बीच रक्षा के क्षेत्र में संयुक्त उत्पादन का यह पहला मामला था। सदी नवें दशक में भारत ने रूस से अत्याधुनिक लड़ाकू विमान सुखोई 30 एमकेआइ खरीदा।
रक्षा आपूर्ति में विविधता
2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार बनने के बाद नीतिगत मोर्चे पर बदलाव आया और सरकार ने रक्षा आपूर्ति में विविधता लाने का फैसला किया। भारत ने रूस के अलावा, अमेरिका, फ्रांस और इजरायल से हथियार और रक्षा उपकरण खरीदे। एक समय भारत अपनी जरूरतों का 80 प्रतिशत सैन्य साजोसामान रूस से खरीदता था, जो अब घट कर 36 प्रतिशत पर आ गया है।
बहुआयामी सहयोग का दौर
2022 में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू हुआ और रूस ने भारत को छूट के साथ तेल आपूर्ति की पेशकश की। भारत ने अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए रूस से बड़े पैमाने पर तेल खरीदा। भारत ने ऐसा करते हुए अमेरिका और पश्चिमी देशों के विरोध को नजरअंदाज किया।
आज भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में रूस भी अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में भारत के साथ सहयोग बढ़ाना चाहता है।
राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के इस दौरे में दोनों देशों के बीच हुए समझौते इस बात को साबित करते हैं कि दोनों देश रिश्तों को बहुआयामी बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों स्वास्थ्य,शिक्षा, वर्कफोर्स, शिपिंग,बंदरगाह के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमत हुए हैं।
व्यापार असंतुलन दूर करने पर जोर
भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2024-25 में 68.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। इसमें रूस का निर्यात 63 अरब डालर से अधिक है और भारत का निर्यात 5 अरब डालर से कम है। ऐसे में भारत का व्यापार घाटा काफी अधिक है। इस व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए रूस भारत से चावल, समुद्री उत्पाद और यात्री विमान खरीदने के लिए बातचीत कर रहा है।

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