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चंद्रयान-1 से भारत की अंतरिक्ष में धाक, दुनिया के वैज्ञानिकों ने माना लोहा, चांद पर पानी के दिए संकेत

इसके पूर्व अमेरिका रूस और जापान ही ऐसा करने में कामयाब हो सके थे। इसी डिवाइस ने चांद की सतह पर पानी की खोज की। यह इतनी बड़ी खोज थी कि अमेरिकी नासा ने भी पहले ही प्रयास में यह खोज करने के लिए भारत की पीठ थपथपाई थी।

By Ramesh MishraEdited By: Published: Sun, 14 Nov 2021 04:16 PM (IST)Updated: Sun, 14 Nov 2021 08:44 PM (IST)
चंद्रयान-1 से भारत की अंतरिक्ष में धाक, दुनिया के वैज्ञानिकों ने माना लोहा, चांद पर पानी के दिए संकेत
चंद्रयान-1 से भारत की बढ़ी धाक, दुनिया के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने माना लोहा।

नई दिल्‍ली, आनलाइन डेस्‍क। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपना अतंरिक्ष कार्यक्रम शुरू करने के 45 साल बाद मिशन मून फतह किया था। भारत ने 22 अक्टूबर, 2008 को चंद्रयान लांच किया था, जो 30 अगस्त 2009 तक चंद्रमा के चक्कर लगाता रहा। इसी चंद्रयान में एक डिवाइस लगा था- मून इम्पैक्ट प्रोब यानी MIP, जिसने 14 नवंबर 2008 को चांद की सतह पर उतरकर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत का दबदबा बढ़ाया। ऐसा करने वाला भारत चौथा देश बन गया। इसके पूर्व अमेरिका, रूस और जापान ही ऐसा करने में कामयाब हो सके थे। इसी डिवाइस ने चांद की सतह पर पानी की खोज की। यह इतनी बड़ी खोज थी कि अमेरिकी नासा ने भी पहले ही प्रयास में यह खोज करने के लिए भारत की पीठ थपथपाई थी।

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चंद्रयान-1 इसरो के चंद्रमा मिशन का पहला यान

गौरतलब है कि चंद्रयान-1 इसरो के चंद्रमा मिशन का पहला यान था। चंद्रयान-1 को चांद तक पहुंचने में पांच दिन और उसका चक्कर लगाने के लिए कक्षा में स्थापित होने में 15 दिन लग गए थे। एमआइपी की कल्पना पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम ने की थी। उनके सुझाव पर ही इसरो के वैज्ञानिकों ने एमआइपी को बनाया था। पूर्व राष्‍ट्रपति चाहते थे कि भारतीय वैज्ञानिक चांद के एक हिस्से पर अपना निशान छोड़ें और इसरो के भारतीय वैज्ञानिकों ने उन्हें निराश नहीं किया।

18 नवंबर, 2008 को चांद से टकराया इंपैक्‍टर

चंद्रयान-1 के तहत चांद पर भेजा गया इंपैक्‍टर शोध यान 18 नवंबर, 2008 को आर्बिटर से अलग होकर चांद की सतह से टकराया था। यह चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास स्थित गड्ढे के पास उतरा था। चांद के जिस हिस्‍से पर यह टकराया था, उसे जवाहर प्‍वाइंट नाम दिया गया है। इम्‍पैक्‍टर ने चांद की सतह से टकराने के दौरान उसकी मिट्टी को काफी बाहर तक खोद दिया था। इसी में पानी के अवशेष खोजे जाने थे।

चांद पर मिले पानी के संकेत, चंद्रयान 1 के डेटा से मिली बड़ी कामयाबी

इसरो को चंद्रयान-1 मिशन भले ही अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब न हो पाया हो। मगर उसके डेटा से रिसर्चर्स आज भी नए तथ्‍य पता लगा पा रहे हैं। चंद्रयान-1 के मिनरोलाजी मैपर इंस्‍ट्रुमेंट के डेटा का यूज करके साइंटिस्‍ट्स ने पाया कि चांद में जंग लग रहा है। इस रिसर्च से चांद के ध्रुवों पर पानी की मौजूदगी का एक और संकेत मिला है। चांद पर भारी मात्रा में लोहा मौजूद है, लेकिन आक्सिजन और पानी होने की पुष्टि नहीं है। नासा के रिसर्चर्स का मानना है कि यह जंग लगने के पीछे धरती का वायुमंडल हो सकता है।

चंद्रयान-1 का कुल वजन 1,380 किग्रा

चंद्रयान-1 का कुल वजन 1,380 किग्रा था। इसमें हाई रेजोल्‍यूशन रिमोट सेंसिंग उपकरण थे। इन उपकरणों के जरिए चांद के वातावरण और उसकी सतह की बारीक जांच की गई थी। इनमें रासायनिक कैरेक्‍टर, चांद की मैपिंग और टोपोग्राफी शामिल थे। इसी का नतीजा था कि 25 सितंबर 2009 को इसरो ने घोषणा की कि चंद्रयान-1 ने चांद की सतह पर पानी के सबूत खोजे हैं। चंद्रयान-1 में 11 विशेष उपकरण लगे थे।

सौर मंडल के सबसे बड़े गड्ढों में से एक यहां है मौजूद

इसरो ने चांद के जिस दक्षिणी ध्रुव पर अपना लैंडर विक्रम उतारा था, वह कई मायनों में खास है। यहां कई बड़े गड्ढे हैं। इसी हिस्‍से पर सौर मंडल में मौजूद बड़े गड्ढों में से एक बड़ा गड्ढा यहीं मौजूद है। इसका नाम साउथ पोल आइतकेन बेसिन है। इसकी चौड़ाई 2500 किमी और गहराई 13 किमी है। चांद के इस हिस्‍से के सिर्फ 18 फीसद भाग को पृथ्‍वी से देखा जा सकता है। बाकी के 82 फीसद हिस्‍से की पहली बार फोटो सोवियत संघ के लूना-3 शोध यान ने 1959 में भेजी थी। तब इस हिस्‍से को पहली बार देखा गया था।


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