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भारत-म्‍यांमार संबंधों के खिलाफ साजिश का हिस्‍सा था हिंदुओं की सामूहिक हत्‍या

म्यांमार में हिंदुओं की सामूहिक हत्या के चरमपंथी प्रयास वैश्विक आतंकी कूटनीति का हिस्सा हैं, जिससे देश को सजग रहने की जरूरत है। चरमपंथियों ने हिंदुओं को इसीलिए निशाना बनाया है ताकि भारत और म्यांमार के संबंध खराब हों

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 11:51 AM (IST)Updated: Sat, 16 Jun 2018 04:46 AM (IST)
भारत-म्‍यांमार संबंधों के खिलाफ साजिश का हिस्‍सा था हिंदुओं की सामूहिक हत्‍या
भारत-म्‍यांमार संबंधों के खिलाफ साजिश का हिस्‍सा था हिंदुओं की सामूहिक हत्‍या

[डॉ. ब्रह्मदीप अलूने]। कार्ल वान क्लाउजविट्स ने अपनी रचना ‘ऑन वार’ में लिखा है कि युद्ध अन्य माध्यमों द्वारा संचालित राजनीति है। म्यांमार की रोहिंग्या समस्या में चरमपंथ को वहां की सरकार प्रमुख समस्या बताती है। रोहिंग्या मुसलमान संघर्ष को मानवाधिकारों के हनन से जोड़ते हैं। दुनिया इसे मानवीय त्रसदी मानती है। यहां धार्मिक भेदभाव के आरोप भी लगते हैं। इसे सांस्कृतिक द्वंद्व भी कहा जाता है, लेकिन अब इसके राजनीतिक लक्ष्य भी उभर कर सामने आए हैं। दरअसल म्यांमार में बौद्ध मुस्लिम संघर्ष के बीच हिंदुओं की सामूहिक हत्या के तथ्य बेहद हैरान करने वाले हैं। मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की जांच के मुताबिक रोहिंग्या चरमपंथियों ने पिछले साल अगस्त में दर्जनों हिंदू नागरिकों की हत्या की थी।

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सामूहिक कब्र

एमेनेस्टी का कहना है कि रखाइन प्रांत में प्रभावशील चरमपंथी अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी ने ये हत्याएं की थी। पिछले साल म्यांमार की सेना ने भी यह दावा किया था कि उसकी देखरेख में हिंदुओं की सामूहिक कब्र से निकले 28 शवों का अंतिम संस्कार किया गया है जिनकी हत्या रोहिंग्या चरमपंथियों ने की थी। इस समय म्यांमार में तकरीबन ढाई लाख हिंदू रहते हैं जो वहां की जनसंख्या का मात्र 0.5 प्रतिशत हैं। भारतीय मूल के चेट्टियार और नागा यहां बड़ी संख्या में रहते हैं। म्यांमार के चरमपंथ प्रभावित रखाइन में करीब 10 हजार हिंदू रहते हैं। आतंकियों ने रखाइन प्रांत के रिक्ता गांव में रहने वाले हिंदुओं को निशाना बनाया है, इसके साथ ही फकीरा बाजार और चिआंगछारी में रहने वाले हिंदू भी चरमपंथी हमलों में मारे गए हैं।

हिंदुओं का पलायन

अनेक हिंदू परिवार वहां से अपना घर छोड़कर भाग खड़े हुए हैं। इस समय रखाइन राज्य की राजधानी सितवे में करीब सात सौ हिंदू परिवारों को एक सरकारी रिफ्यूजी कैंप में रखा गया है, जिसकी देखभाल का जिम्मा म्यांमार की फौज उठा रही है। म्यांमार में हिंदुओं की हत्या के पीछे धार्मिक उन्माद से ज्यादा चीन और पाकिस्तान के राजनीतिक हित नजर आते हैं। ऐसा भी लगता है कि इन हत्याओं से भारत और म्यांमार के मजबूत संबंधों को प्रभावित करने की अंतरराष्ट्रीय साजिश रची गई है। इसे आतंकवाद की वैश्विक कूटनीति भी कहा जाता है, जिसका उपयोग समयानुसार महाशक्तियां अपने हित पूर्ति के लिए करती रही हैं।

देवताओं का वास

भारतीय संस्कृति में पूर्व दिशा को बेहद शुभ माना जाता है और इसे देवताओं का वास माना जाता है। हमारे यहां शुभ कार्यो और संस्कारों के समय पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठने की परंपरा है। भारत की पूर्वी सीमा पर म्यांमार है जिसे हम ब्रह्मा की भूमि के नाम से जानते हैं। भारत और बर्मा की भूभागीय सीमा के साथ तटीय सीमा भी मिलती है। म्यांमार भारत और चीन के बीच दीवार का काम करता है और दोनों देश सुरक्षा के मामले में एक-दूसरे पर निर्भर हैं। भारत के बौद्ध प्रचारकों के माध्यम से ही वहां बौद्ध धर्म की स्थापना हुई है जो वहां की जनसंख्या का 89 प्रतिशत हैं। हिंदू और बौद्ध के बेहद आध्यात्मिक संबंध हैं, इसलिए भारत के लिए म्यांमार का आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व है। म्यांमार आसियान का एकमात्र राज्य है जिसके साथ भारत की समुद्री और भूभागीय दोनों सीमाएं मिलती हैं।

मणिपुर-म्यांमार-थाईलैंड

म्यांमार में प्राकृतिक गैस का भंडार भारी मात्रा में पाया जाता है। चीन कोको द्वीप पर अपना अड्डा स्थापित कर रहा है तथा धीरे-धीरे म्यांमार को आर्थिक और सामरिक गिरफ्त में लेता जा रहा है। वहीं म्यांमार की भौगोलिक स्थिति भारत की सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। म्यांमार भारत की पूर्व की ओर देखो विदेश नीति का प्रवेश द्वार है। भारत 1992 से अपनी पूर्व की ओर देखो नीति के अनुसार मणिपुर-म्यांमार-थाईलैंड राजमार्ग का निर्माण करने को कृतसंकल्पित है। इसके अंतर्गत भारत के मोरे से लेकर थाईलैंड के माई सोट तक राजमार्ग बनाया जाएगा तथा इसके जरिये म्यांमार होते हुए भारत से थाईलैंड का सफर सड़क मार्ग से किया जा सकेगा। दोनों देशों के बीच 16 किलोमीटर के क्षेत्र में मुक्त आवागमन का प्रावधान है। सरहदी हाट खुलने से व्यापार व्यवसाय में तेजी आने की उम्मीद बढ़ी है। यही नहीं दोनों देशों के साझा सैन्य अभियानों से पूवरेत्तर के चीन-पाक-बांग्लादेश समर्थित आतंकवाद पर गहरी चोट होती रही है।

म्‍यांमार में सैन्‍य अभियान 

1995 का गोल्डन बर्ड ऑपरेशन हो या साल 2015 में म्यांमार की सीमा में घुसकर आतंकियों को मार गिराने में मिली सफलता, म्यांमार-भारत के आपसी सहयोग की मिसाल हैं। भारत के मिजोरम राज्य तथा म्यांमार के सितवे बंदरगाह को जोड़ने के लिए कलादान मल्टी मॉडल पारगमन परियोजना को विकसित किया जा रहा है। भारत ने म्यांमार की सड़क परियोजनाओं को भी बहुत मदद की है। आने वाले समय में इन परियोजनाओं से पूवरेत्तर को बहुत फायदा होने की उम्मीद है। भारत म्यांमार सीमा आतंकियों के लिए बेहद मुफीद है। बंगाल की खाड़ी से जुड़े म्यांमार और भारत के मध्य लगभग 1600 किमी की लंबी सीमा उत्तर पूर्वी राज्यों अरुणाचल, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम से आपस में मिलती है। भारतीय सीमा के आसपास म्यांमार के सुरक्षा बलों की काफी कम तैनाती है, जिससे पूवरेत्तर के अलगाववादी तत्व म्यांमार में आसानी से कैंप स्थापित कर भारत में अलगाववादी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं।

सीमा के दोनों ओर नागा कुकी जनजातियां

भारत और म्यांमार की सीमा के दोनों ओर नागा कुकी जनजातियों की बड़ी आबादी है, जिनके बीच सांस्कृतिक एवं सामाजिक संबंध हैं। इसलिए दोनों देशों के बीच 16 किमी के क्षेत्र में मुक्त आवागमन का प्रावधान है, रोहिंग्या घुसपैठ के लिए यह रास्ता अनुकूल माना जाता है।180 के दशक में पाकिस्तान द्वारा खालिस्तान की आग भड़का कर हिंदुओं और सिखों के बीच दूरी बनाने का प्रयास किया गया था। अब म्यांमार के बहाने देश में बौद्धों और हिंदुओं के बीच दूरी बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। जाहिर है म्यांमार में प्रभावशील चरमपंथी अराकान रोहिंग्या सैलवेशन आर्मी ने सेना से युद्ध और संघर्ष की आड़ में हिंदुओं को इसीलिए निशाना बनाया है, जिससे न केवल भारत और म्यांमार के संबंध खराब हों, बल्कि बौद्धों और हिंदुओं में भी धार्मिक उन्माद फैले। बहरहाल म्यांमार में हिंदुओं की सामूहिक हत्या के चरमपंथी प्रयास वैश्विक आतंकी कूटनीति का हिस्सा हैं, जिससे देश को सजग रहने की जरूरत है।

[विक्रम विश्वविद्यालय परिसर में सहायक प्राध्यापक हैं]

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