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    टीबी की जांच होगी आसान, भारत ने बनाई स्वदेशी एक्स-रे मशीन; कीमत भी आधी

    Updated: Fri, 18 Oct 2024 05:45 AM (IST)

    इंटरनेशनल कान्फ्रेंस आफ ड्रग रेगुलेटरी अथारिटीज इंडिया 2024 के दौरान आईसीएमआर के महानिदेशक ने कहा कि हाथ से पकड़ी जाने वाली एक्स-रे मशीन बहुत महंगी है लेकिन आइआइटी कानपुर के साथ साझेदारी में आइसीएमआर ने अब हाथ से पकड़ी जाने वाली स्वदेशी एक्स-रे मशीन बनाई है जिसकी कीमत विदेशी मशीन की तुलना में आधी है। इससे घर पर भी टीबी जांच की जा सकेगी।

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    टीबी का जल्द लग सकेगा पता, घर पर भी की जा सकेगी जांच

    एएनआइ, नई दिल्ली। भारत ने टीबी की जांच के लिए स्वदेशी पोर्टेबल एक्स-रे मशीन बनाकर इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के महानिदेशक डा. राजीव बहल ने कहा कि हाथ में पकड़ी जाने वाली पोर्टेबल एक्स-रे मशीन से टीबी का जल्द पता लग सकेगा और समय से इलाज भी सुनिश्चित होगा।

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    घर पर भी टीबी जांच की जा सकेगी

    इंटरनेशनल कान्फ्रेंस आफ ड्रग रेगुलेटरी अथारिटीज इंडिया 2024 के दौरान आइसीएमआर के महानिदेशक ने कहा कि हाथ से पकड़ी जाने वाली एक्स-रे मशीन बहुत महंगी है, लेकिन आइआइटी कानपुर के साथ साझेदारी में आइसीएमआर ने अब हाथ से पकड़ी जाने वाली स्वदेशी एक्स-रे मशीन बनाई है, जिसकी कीमत विदेशी मशीन की तुलना में आधी है। इससे घर पर भी टीबी जांच की जा सकेगी।

    डॉ. बहल ने बताया कि भारत ने एमपाक्स की जांच के लिए भी जांच किट विकसित की है। डेंगू के लिए वैक्सीन भी जल्द लांच होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, हम डेंगू वैक्सीन के तीसरे चरण का क्लीनिकल परीक्षण कर रहे हैं। उम्मीद है कि परिणाम एक साल में आ जाएंगे।

    न टीबी के इलाज के लिए पहली बार नाक से दवा देने की विधि विकसितआइएएनएस के अनुसार नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (आइएनएसटी), मोहाली के विज्ञानियों ने पहली बार नाक के जरिये टीबी की दवाओं को सीधे मस्तिष्क तक पहुंचाने का तरीका विकसित किया है। मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले टीबी को सेंट्रल नर्वस सिस्टम टीबी (सीएनएस-टीबी) कहा जाता है। यह सबसे खतरनाक टीबी में से एक है।

    टीबी बैक्टीरिया को एक हजार गुना तक कम कर सकती है

    नाक से दवा देने की नई विधि मस्तिष्क में टीबी बैक्टीरिया को एक हजार गुना तक कम कर सकती है। आइएनएसटी की टीम ने इसके लिए चिटोसन नामक प्राकृतिक पदार्थ से बने नैनोकणों का इस्तेमाल किया, जिसने नाक के माध्यम से सीधे मस्तिष्क तक टीबी की दवाइयां पहुंचाईं।

    नैनोस्केल (रायल सोसाइटी आफ केमिस्ट्री) पत्रिका में प्रकाशित शोध-पत्र में टीम ने कहा, टीबी से संक्रमित चूहों में, इन नैनो-एग्रीगेट्स को नाक के माध्यम से देने से मस्तिष्क में बैक्टीरिया की संख्या में अनुपचारित चूहों की तुलना में लगभग एक हजार गुना कमी आई। नई उपचार पद्धति से ब्रेन टीबी से पीडि़त लोगों के उपचार में सुधार की संभावना है। इस विधि का उपयोग अन्य मस्तिष्क संक्रमणों, अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसे रोगों, मस्तिष्क ट्यूमर और मिर्गी के इलाज में हो सकता है।