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    Road Accidents: भारत है सबसे ज्यादा रफ्तार का शिकार, देश में दुनिया की सिर्फ 1 फीसदी गाड़ियां लेकिन 11% हादसे

    By Babli KumariEdited By: Babli Kumari
    Updated: Tue, 11 Jul 2023 03:59 PM (IST)

    Deaths in Road Accidents in India वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हैं इसके बावजूद पूरे विश्व में होने वाले हादसों का 11 फीसदी देश में ही घटित होते हैं। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में हादसे कम करने के लिए सड़क सुरक्षा संबंधी उपाय बढ़ाने के लिए भी कहा गया है।

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    भारत हो रहा सबसे ज्यादा रफ्तार का शिकार (फोटो- शुभम मिश्रा /जागरण ग्राफिक्स)

    नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। Road Accidents in India: सड़क दुर्घटनाएं भारत के लिए हमेशा से एक चिंता का विषय रही हैं। भारत में होने वाली सड़क दुर्घटनाओं में हर साल लाखों की संख्या में लोग अपनी जान गवां देते हैं। भारत में सड़क हादसे अपने आप में एक गंभीर समस्या है। अभी हाल ही में भारत में कई सड़क दुर्घटनाएं हुई हैं, जिनमें कई लोगों की जान चली गई।

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    वर्ल्ड बैंक के आंकड़ों के अनुसार भारत में दुनिया के केवल एक फीसदी वाहन हैं, इसके बावजूद पूरे विश्व में होने वाले हादसों का 11 फीसदी देश में ही घटित होते हैं। विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में हादसे कम करने के लिए सड़क सुरक्षा संबंधी उपाय बढ़ाने के लिए भी कहा गया है।

    अगर आपको भारत में हुए हाल के सड़क हादसों से अवगत कराएं तो पिछले ही हफ्ते हैदराबाद में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई, जहां सुबह टहलने निकलीं तीन महिलाओं को एक तेज रफ्तार कार ने पीछे से टक्कर मार दी। इस दौरान एक महिला और उसकी बेटी की मौत हो गई। मुख्य सड़क पर हुई यह घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई। इस फुटेज को जिसने भी देखा उसके रोंगटे खड़े हो गए।

    हैदराबाद के अलावा महाराष्ट्र के बुलढाणा में भी कुछ दिन पहले एक भयंकर हादसा हुआ। बारिश के कारण एक बस के फिसल जाने से बस का डीजल टैंक फट गया और उसमें आग लग गई। बस में आग लगने से 26 लोगों की जिंदा जलकर दर्दनाक मौत हो गई। ये बस एक शादी के लिए जा रही थी। इस हादसे में 26 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। जबकि 8 लोग बुरी तरह से घायल हुए। बताया जा रहा है कि उस इलाके में हुआ यह अब तक का सबसे बड़ा हादसा है।

    ऐसे हादसों की कड़ी में एक और दिल दहला देने वाली घटना घटी जो कि गाजियाबाद मेरठ एक्सप्रेस-वे की है। इस हादसे में एक तेज रफ्तार बस और एसयूवी की भयंकर टक्कर हुई जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई तो वहीं 2 लोग गंभीर रूप से घायल हुए जिनका एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा है। घटनास्थल से प्राप्त सीसीटीवी फुटेज में देखा जा सकता है कि बस रॉन्ग साइड से आ रही थी जिसकी वजह से ये हादसा हुआ। एसयूवी दिल्ली–मेरठ एक्सप्रेस वे पर गाजियाबाद के विजय नगर चौक को पार कर रही थी, तभी एक्सप्रेस वे पर रॉन्ग साइड से आती स्कूल बस से उसकी जोरदार भिड़ंत हो गई। टक्कर इतनी खतरनाक थी कि गाड़ी के परखच्चे उड़ गए।

    ये हादसे सिर्फ भारत ही नहीं विश्व के लिए भी चिंता का विषय बनते जा रहे हैं। इसीलिए वर्ष 2020 में कई देशों ने साथ मिलकर सड़क हादसों में मृत्यु दर को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया था। हाल ही में फिर से स्टॉकहोम में आयोजित विज़न ज़ीरो पर ग्लोबल मीट और राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों के नेटवर्क की ग्लोबल मीटिंग हुई, जिसमें साल 2020 के निर्धारित लक्ष्य का जमीनी स्तर पर आंकलन किया गया।

    सड़क सुरक्षा को लेकर क्यों है विश्वभर को चिंता ?

    दुनिया भर में हर साल 13.5 लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में मरते हैं। यह एक बहुत बड़ी संख्या है। दुनियाभर में हर दिन लगभग 3,000 लोग सड़कों पर दम तोड़ते हैं। इन आंकड़ों को देखते हुए वैश्विक नेताओं और प्रतिनिधियों ने इस मीटिंग में कहा कि सड़क दुर्घटनाओं को भी ग्लोबल वार्मिंग या महामारी के समान माना जाना चाहिए। सभी देशों की लगातार कोशिशों के बावजूद दुर्घटनाओं की संख्या में उतनी कमी नहीं आई है, जितनी की उम्मीद की जा रही थी।

    • साल 2010 में, इस संकट ने विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जब संयुक्त राष्ट्र ने घोषणा की कि 2020 तक मौतों की संख्या में 50 प्रतिशत की कमी लाने के लिए दुनिया भर में प्रयास किए जाने चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।
    • साल 2020 में, विश्व के नेताओं और प्रतिनिधियों ने एक और लक्ष्य निर्धारित किया और 2030 तक सड़क हादसे में मौतों की संख्या को 50 प्रतिशत तक कम करने का निश्चय किया। इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में भारत भी शामिल था। चीज़ें बड़े पैमाने पर शुरू हुईं, लेकिन मौतों की संख्या अभी भी कम नहीं हो पायी है। इसका कारण खराब बुनियादी ढांचा या खराब वाहन हो सकते हैं, लेकिन ज्यादातर बार इसका कारण खराब मानवीय व्यवहार माना गया है।
    • भारत, श्रीलंका, मैक्सिको और बांग्लादेश जैसे देशों को वैश्विक संख्या को कम करने में बड़ी भूमिका निभानी होगी क्योंकि इन देशों में सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या अधिक है।

    स्वीडन ने कायम की मिसाल

    वहीं, स्वीडन का लक्ष्य सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या को शून्य पर लाना है। पिछले साल करीब 250 मौतें ही स्वीडन में हुईं, लेकिन देश इस आकड़ें से भी दुखी है और वह आने वाले सालों में इन आंकड़ों को भी वो खत्म करना चाहता है। यही कारण है कि विज़न ज़ीरो का सपना स्वीडन ने देखा। इस विजन से देश ने दूसरे देशों के लिए मिसाल कायम की है।

    2025 में 2030 तक मौतों की संख्या 50 प्रतिशत करने के लक्ष्य की प्रगति की मध्यावधि समीक्षा होगी।

    सड़क सुरक्षा के मामले में भारत कहा खड़ा है?

    दुर्भाग्य से, भारत में सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या बहुत अधिक है। दुनिया भर में सड़क पर होने वाली हर 100 मौतों में से 11 लोग भारतीय सड़कों पर मारे जाते हैं। यह बहुत बड़ी समस्या है। इनमें से लगभग 60 प्रतिशत युवा हैं। हम सड़क दुर्घटनाओं में होनहार युवा जिंदगियां खो रहे हैं। यह बहुत बड़ी क्षति है।

    साल 2017 और 2018 में सड़क दुर्घटनाओं में हुई मौतों की संख्या में गिरावट आई। साल 2020 में भी कोविड महामारी के कारण संख्या में गिरावट आई थी। लेकिन 2021 में यह संख्या फिर से बढ़कर 1.53 लाख हो गई। वहीं, 4.5 लाख लोग घायल हुए थे। दुर्भाग्य से, सड़क दुर्घटनाओं में घायलों पर कोई ध्यान नहीं है। भारत जैसे देश को गंभीर चोटों पर भी ध्यान देने की जरूरत है।

    भारत सड़क पर होने वाली मौतों की संख्या कम करने में क्यों विफल रहा है?

    अन्य देशों ने भारत के लिए अच्छे उदाहरण प्रस्तुत किये हैं। वे सड़क दुर्घटनाओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं। जब कोई सड़क दुर्घटना होती है, तो वे उचित जांच करते हैं। भारत में मोटर वाहन अधिनियम है जो कहता है कि हर दुर्घटना की उचित जांच होनी चाहिए। इसके बावजूद जब कोई दुर्घटना होती है तो पुलिस एफआईआर दर्ज करती है जो ज्यादातर ड्राइवर के खिलाफ होती है। हमने दुर्घटना में मरने वालों को निर्दोष माना। हम अपनी सड़क पर होने वाली मौतों का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण नहीं करते हैं।

    दूसरे, दुर्घटना के कारणों के संबंध में सही आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनाई जा सकेंगी। उदाहरण के तौर पर, महाराष्ट्र में हाल ही में हुई दुर्घटना को एजेंसियों को विस्तृत विश्लेषण करने के लिए प्रेरित करना चाहिए था। क्या ड्राइवर के पास उचित लाइसेंस था? क्या वह गाड़ी चलाते समय थक गया था? क्या वाहन अच्छी स्थिति में था? क्या सड़क का बुनियादी ढांचा मौजूद था? इन सबकी ठीक से जांच होनी चाहिए। 

    हमारा डेटा पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर द्वारा लिया गया है। हमें लक्षण का नहीं बल्कि बीमारी का इलाज करने की जरूरत है।

    साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस सिस्टम भी मजबूत होना चाहिए। व्यवसायिक चालकों के लिए नियम लागू नहीं किये जा रहे हैं। बुनियादी ढांचे में भी सुधार की जरूरत है।