भारत ने बनाई पहली स्वदेशी सुपर एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन, डायबिटीज से होनेवाले सांसों की दिक्कच पर होगा कारगर
भारत ने चिकित्सा विज्ञान में बड़ी सफलता हासिल करते हुए पहली स्वदेशी सुपर एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन विकसित की है। यह दवा उन संक्रमणों पर प्रभावी है जिन पर अन्य एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं करती हैं, खासकर कैंसर और डायबिटीज के मरीजों में। इस एंटीबायोटिक को विकसित करने में 14 साल लगे और परीक्षणों में 97% रोगियों में सकारात्मक परिणाम मिले।
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डायबिटीज से होनेवाले श्वसन संक्रमणों पर कारगर नेफिथ्रोमाइसिन (फाइल फोटो)
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। भारत ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए पहली स्वदेशी सुपर एंटीबायोटिक नेफिथ्रोमाइसिन विकसित की है। यह दवा उन संक्रमणों पर प्रभावी पाई गई है, जिन पर अब तक उपलब्ध एंटीबायोटिक काम नहीं कर रहीं।
खासतौर पर कैंसर और डायबिटीज के गंभीर मरीजों में संक्रमण के खिलाफ इस एंटीबायोटिक ने उल्लेखनीय असर दिखाया है।केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक राज्य मंत्री डा. जितेंद्र ¨सह ने बताया कि यह भारत में विकसित पहला स्वदेशी एंटीबायोटिक मालिक्यूल है, जो पूरी तरह चिकित्सकीय रूप से मान्य है।
कितने सालों की मेहनत लगी?
स्वास्थ्य क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में इसे एक बड़ी छलांग माना जा रहा है। नेफिथ्रोमाइसिन को विकसित करने में 14 वर्षों की लगातार मेहनत लगी। वैज्ञानिक परीक्षणों में यह एजिथ्रोमाइसिन से 10 गुना ज्यादा प्रभावी साबित हुई।
दावा किया गया है कि यह दवा गंभीर निमोनिया जैसे संक्रमणों के इलाज में केवल तीन दिन में परिणाम देती है।इस एंटीबायोटिक का ट्रायल भारत, अमेरिका और यूरोप के मल्टी-ड्रग रेजिस्टेंट मरीजों पर किया गया, जिसमें 97 प्रतिशत मरीजों में सकारात्मक परिणाम मिले।
विशेषज्ञों ने क्या कहा?
यह दवा स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया पर अत्यधिक प्रभावी है, जो निमोनिया के 33 प्रतिशत मामलों का कारण होता है। नेफिथ्रोमाइसिन को मुंबई स्थित वाकहार्ट लिमिटेड ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) तथा बीआइआरएसी के सहयोग से तैयार किया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस खोज से न केवल गंभीर संक्रमणों से लड़ाई आसान होगी बल्कि भारत का स्थान वैश्विक फार्मा अनुसंधान में और मजबूत होगा।जीनोम सीक्वेंसिंग में भी बढ़ते कदम डा. सिंह ने बताया कि भारत ने अब तक 10,000 से अधिक मानव जीनोम सीक्वेंसिंग कर ली है और दस लाख जीनोम सीक्वेंसिंग का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
उन्होंने बताया कि जीन थेरेपी ट्रायल में भी शून्य रक्तस्त्राव मामलों के साथ 60-70 प्रतिशत सुधार दर दर्ज किया गया। ये भी भारत के चिकित्सा अनुसंधान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है। ट्रायल के निष्कर्षों को न्यू इंग्लैंड जर्नल आफ मेडिसिन में प्रकाशित किया गया है।
मिली बड़ी सफलता
जीन थेरेपी में भी बड़ी सफलता डा. जीतेंद्र सिंह ने बताया कि भारत ने जीन थेरेपी में भी बड़ी सफलता हासिल की है। हीमोफीलिया के उपचार के लिए इसके जरिये पहला सफल स्वदेशी क्लिनिकल ट्रायल किया गया। सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से क्रिश्चियन मेडिकल कालेज, वेल्लोर में इसका ट्रायल किया गया।

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