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चौथा सर्वाधिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन देश है भारत

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में भारत की वैश्विक भागीदारी सात फीसद है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 07 Dec 2018 10:50 AM (IST)Updated: Fri, 07 Dec 2018 10:50 AM (IST)
चौथा सर्वाधिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन देश है भारत
चौथा सर्वाधिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन देश है भारत

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में भारत दुनिया में चौथे पायदान पर है। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक कार्बन डाईऑक्साइड गैस उत्सर्जन के मामले में भारत की वैश्विक भागीदारी सात फीसद है। इस सूची में चीन 27 फीसद हिस्सेदारी के साथ पहले स्थान पर है। अमेरिका 15 फीसद के साथ दूसरे, यूरोपीय संघ 10 फीसद के साथ तीसरे स्थान पर है। दुनिया के कुल उत्सर्जन में इन चार देशों की 58 फीसद हिस्सेदारी है। बाकी सभी देश समग्र रूप स 42 फीसद उत्सर्जन करते है।

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तेजी से होती वृद्धि

अध्ययन में कहा गया है कि भारत का यह उत्सर्जन वर्ष 2018 में भी औसतन 6.3 फीसद की दर से जारी है। सभी तरह के ईंधनों के इस्तेमाल में वृद्धि है। जैसे कोयला (7.1 फीसद), तेल (2.9 फीसद) और गैस (6.0 फीसद) है। वहीं 2017 में यह वृद्धि 2 फीसद अनुमानित की गई थी, क्योंकि सरकार ने अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए कई कदम उठाए थे।

पहाड़ सी चुनौती

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की ऊर्जा आवश्यकता को पूरा करने में कोयला अभी भी मुख्य भूमिका निभा रहा है और ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों को देखते हुए यह कहना मुश्किल है कि सौर ऊर्जा या पवन ऊर्जा से बिजली बनाने का काम इसकी जगह ले सकता है। भारत और चीन कोयले का काफी इस्तेमाल करते हैं। 2018 में इसकी ज्यादा खपत की उम्मीद है।

सौर उर्जा की ओर बढ़ता भारत

कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए भारत के नेतृत्व में अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन का गठन किया गया। भारत भी सौर ऊर्जा की तरफ तेजी से बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए भारत 2020 तक कोयला मुक्त ऊर्जा की रणनीति पर काम कर रहा है।

कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन करने वाले शीर्ष दस देश

चीन, अमेरिका, यूरोपीय संघ, भारत रूस, जापान, जर्मनी, ईरान, सऊदी अरब और दक्षिण कोरिया।

भारी आर्थिक नुकसान

कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन से भारतीय अर्थव्यवस्था को हर साल 210 अरब डॉलर का नुकसान होता है। अमेरिका के बाद जलवायु परिवर्तन का सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान भारत को ही झेलना पड़ा है और इसमें आर्थिक और सामाजिक नुकसान दोनों शामिल है। 


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