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    राजस्थान के डूंगरपुर में है संस्कृति का अनोखा संसार, जानें- 750 साल पुराने महल का रोचक इतिहास

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 28 Feb 2019 01:40 PM (IST)

    बांगड़ अंचल के इस जिले में हाल ही में ‘आदिवासियों का कुंभ’ कहा जाने वाला वेणेश्वर मेला संपन्न हुआ है। आइए आज चलते हैं डूंगरपुर के रोचक सफर पर... ...और पढ़ें

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    राजस्थान के डूंगरपुर में है संस्कृति का अनोखा संसार, जानें- 750 साल पुराने महल का रोचक इतिहास

    [श्यामसुंदर जोशी]। दूर-दूर तक फैली हैं पहाड़ियां। इनकी हरियाली, खेत-खलिहान, सीधे-सरल लोग...। डूंगरपुर पहुंचकर आप एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करते हैं, जो आधुनिक जीवन में अब दुर्लभ हो गई है। आप जिधर भी नजर दौड़ाएंगे, आपको कुछ न कुछ रोचक नजर आएगा। शहर हो या गांव, यहां भील आदिवासियों की टोलियां विचरण करती हुई नजर आ जाएंगी। दरअसल, यहां भीलों की संख्या काफी है। यहां रंग-बिरंगी लुभावनी प्राकृतिक छटा व राजस्थान के अन्य प्रदेशों की तरह अचंभित कर देने वाले महल और झील ही नहीं हैं, बल्कि इस शहर की समृद्ध संस्कृति भी आपका दिल लुभा लेगी।

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    खासतौर पर भीलों की दुनिया को देखना आपके लिए नया और अनोखा अनुभव होगा। दक्षिणी राजस्थान में बसे डूंगरपुर को पहाड़ियों का शहर कहा जाता है। यहां बसा है भील आदिवासियों का सुंदर संसार, जिन्होंने पुरानी संस्कृति को आज भी जीवित रखा है। बांगड़ अंचल के इस जिले में हाल ही में ‘आदिवासियों का कुंभ’ कहा जाने वाला वेणेश्वर मेला संपन्न हुआ है। आइए आज चलते हैं डूंगरपुर के रोचक सफर पर...

    बांगड़ का जीवन-आधार सोम और माही नदियां
    अरावली पर्वत श्रेणियों के बीच बसा है डूंगरपुर शहर। पहाड़ी ढलानों पर हरियाली और घास के मैदान दूर से ही लुभा लेते हैं। यहां की टेकरियों यानी छोटी पहाड़ियों पर बसी भीलों की बस्तियां इसकी सुंदरता को और बढ़ा देती हैं। टेढ़े-मेढ़े रास्ते, पगडंडियां, बरसाती झरने, नदी-नाले और सागवान, महुआ, आम व खजूर के पेड़ इसका गहना हैं। इन सबके साथ इसकी सुंदरता में चार चांद लगाने का काम करती हैं यहां की सोम और माही नदियां। इन्हें बांगड़ अंचल के जीवन का आधार कहा जाता है।

    भगोरिया पर्व पर जीवनसाथी का चुनाव
    भील आदिवासी नृत्य-गीतों के खूब शौकीन होते हैं और अपने सामाजिक उत्सवों में तरह- तरह के नृत्य करते हैं। इनके नृत्यों में ‘गवरी नृत्य’ प्रमुख है, जो वर्षा ऋतु में किया जाता हैं। अप्रैल महीने में भगोरिया नामक त्योहार मनाया है। इस अवसर पर भी मेला लगता है। आदिवासी कुंभ मेले यानी बेणेश्वर मेले के अलावा भगोरिया त्योहार के मौके पर भी स्थानीय युवक-युवतियां अपने पसंदीदा जीवनसाथी का चुनाव कर सकते हैं।

    गैब सागर जलाशय
    शहर की सुंदरता को और भी खूबसूरत बनाता है यहां का गैब सागर जलाशय। इसे स्थापत्य कला के मर्मज्ञ महारावल गोपीनाथ ने बनवाया था। इसके तट पर ही स्थित है महाराव उदयसिंह द्वारा बनवाया गया उदयविलास महल और विजय राज राजेश्वर मंदिर। ये दोनों ही इमारतें स्थापत्य कला की अद्भुत उदाहरण हैं। गैब सागर के भीतर बादल महल और इसकी पाल पर महारावल पुंजराज द्वारा निर्मित श्रीनाथजी का विशाल मंदिर है, जिसके प्रांगण में अन्य कई छोटे-छोटे मंदिर बने हुए हैं।

    भित्तिचित्रों से अलंकृत जूना महल की दीवारें
    डूंगरपुर शहर में धनमाता पहाड़ी की ढलान पर बना जूना महल तकरीबन 750 वर्ष पुराना है। इसे ‘पुराना महल’, ‘बड़ा महल’ या फिर ‘ओल्ड पैलेस’ भी कहते हैं। रावल वीरसिंह देव ने इस महल की नींव विक्रम संवत् 1339 में कार्तिक शुक्ल एकादशी को रखी थी। सात मंजिले इस महल में रहने की माकूल सुविधा के साथ-साथ आक्रमणकारियों से सुरक्षा का भी समुचित प्रबंध था। इस महल ने 13वीं से 18वीं शताब्दी तक कई उतार-चढ़ाव देखे। महल के चौकोर खंभे, सुंदर पच्चीकारी के तोड़े, छज्जे, झरोखे तथा सुंदर जालियां राजपूती स्थापत्य कला का सुंदर नमूना पेश करती हैं। यहां की सभी दीवारें भित्तिचित्रों से अलंकृत हैं। इन पर कांच की बेजोड़ कारीगरी की गई है।

    डूंगरिया भील के नाम पर बसा डूंगरपुर
    डूंगरपुर की स्थापना के बारे में एक किंवदंती प्रचलित है। इसके अनुसार, इस क्षेत्र में डूंगरिया नामक एक शक्तिशाली भील सरदार रहता था। उसकी दो पत्नियां थीं, लेकिन वह एक संपन्न व्यापारी की पुत्री से भी विवाह करना चाहता था। व्यापारी को यह बात स्वीकार नहीं थी। उसने बांगड़ प्रदेश के तत्कालीन रावल वीरसिंह देव से मदद की गुहार की। इसके बाद एक युद्ध में डूंगरिया मारा गया। उसकी विधवाओं को वीरसिंह ने वचन दिया कि वह उनके पति के नाम का स्मारक बनाकर उसे अमर कर देंगे। उन्होंने एक पहाड़ी पर डूंगरिया भील की स्मृति में मंदिर बनवाया और उसी के नाम पर डूंगरपुर नगर की स्थापना सन् 1282 में की गई थी। शिलालेखों में इसे डूंगरगिरि भी लिखा जाता था। सन् 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। बाद में यह जगह डूंगरपुर प्रिंसली स्टेट की राजधानी भी रहा।

    आसपास के आकर्षण
    12वीं सदी का देवसोमनाथ मंदिर डूंगरपुर शहर से 24 किमी. दूर देव गांव में सोम नदी के तट पर स्थित ‘देवसोमनाथ’ नामक शिव मंदिर पर्यटन की दृष्टि से भी दर्शनीय है। श्वेत पत्थरों से बने इस भव्य शिवालय की शोभा देखते ही बनती है। स्थापत्य शैली के आधार पर इसे 12वीं शताब्दी का माना जाता है। मंदिर के पूर्व, उत्तर तथा दक्षिण में एक-एक द्वार तथा प्रत्येक द्वार पर दोमंजिले झरोखे निर्मित हैं। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर एक ऊंचा शिखर तथा गर्भगृह के सामने आठ विशाल स्तंभों से निर्मित एक आकर्षक सभा-मंडप बना हुआ है। सभा-मंडप से मुख्य मंदिर में प्रवेश करने के लिए आठ सीढ़ियां नीचे जाती हैं। मुख्य मंदिर में स्फटिक से निर्मित शिवलिंग स्थापित है। मंदिर के कलात्मक सभा- मंडप में बने तोरण अपने समय की स्थापत्य कला के सुंदर नमूने हैं। मंदिर में अनेक शिलालेख हैं, जिनसे इसके प्राचीन वैभव की जानकारी मिलती है।

    अद्भुत उदय विलास महल
    डूंगरपुर शहर की पूर्वी सरहद को छूता हुआ एक और आकर्षण है ‘उदय विलास पैलेस’। गैब सागर के किनारे हरे-भरे बाग-बगीचों से सजा उदय विलास पैलेस पाषाण कारीगरी का नायाब नमूना है। महल का केंद्रीय भाग अहाते के मध्य निर्मित है, जो एक विशाल टॉवरनुमा और चारों ओर से सुंदर मूर्तिकला व नक्काशी तथा जाली वाले झरोखों से सुसज्जित है। पौराणिक दृश्यों को भी इसकी दीवारों पर करीने से उकेरा गया है। बस आपको एक नजर में ही भा जाएगा उदय विलास महल।

    भविष्यवक्ता संत मावजी का मंदिर
    डूंगरपुर से 55 किलोमीटर दूर साबला ग्राम में अपनी भविष्यवाणियों तथा भजनों के लिए प्रसिद्ध संत मावजी महाराज का मंदिर है। इस मंदिर की स्थापत्य कला भी दर्शनीय है।

    देवेंद्रकुंवर राज्य संग्रहालय
    डूंगरपुर शहर में राजमाता देवेंद्रकुंवर राज्य संग्रहालय है, जिसे वर्ष 1988 में आम जनता के लिए खोला गया था। संग्रहालय की दीर्घा में तत्कालीन बांगड़ प्रदेश के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। संग्रहालय शुक्रवार छोड़कर बाकी दिनों में प्रात: 10 से सायं 4.30 बजे तक खुला रहता है।

    गलियाकोट में है सैय्यद फखरुद्दीन की मजार
    डूंगरपुर जिले में दाउदी बोहरा संप्रदाय का प्रसिद्ध धर्मस्थल गलियाकोट है। यहां सैय्यद फखरुद्दीन नामक पीर की मजार पर जियारत करने के लिए दूर-दूर से उनके अनुयायी आते हैं, जिनके ठहरने के लिए आरामदायक धर्मशालाएं बनी हुई हैं। यहां मुहर्रम के 27वें दिन उर्स मनाया जाता है। डूंगरपुर से 37 मील दूर बसा यह प्राचीन नगर कभी परमारों की राजधानी भी रहा था।

    आदिवासियों का कुंभ
    बेणेश्वर मेला बेशक इन दिनों प्रयाग कुंभ अपनी समाप्ति की ओर है, पर क्या आप जानते हैं कि राजस्थान के डूंगरपुर जिले में भी एक कुंभ लगता है। जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर माही, सोम और जाखम नदियों के पवित्र संगम स्थल पर स्थित है बेणेश्वर धाम। तीनों नदियों के संगम स्थल पर एक टापू है, जिसे ‘आबूदरा’ कहते हैं। इस आबूदरा टापू को स्थानीय बोलचाल की भाषा में ‘बेण’ कहते हैं। शायद इसी कारण इस स्थान का नाम बेणेश्वर पड़ा। यहां हर वर्ष माघ पूर्णिमा के अवसर पर सात दिवसीय विशाल मेला लगता है, जो आदिवासियों के कुंभ के रूप में प्रसिद्घ है। यह मेला 15 दिनों तक चलता है। मेले में लाखों की तादाद में भील आदिवासी परंपरागत ढंग से बड़े उत्साह एवं उमंग के साथ भाग लेते हैं।

    यह देश में सबसे बड़े आदिवासी मेले के रूप में विख्यात है। माघ पूर्णिमा के दिन यहां श्रद्धालु स्नान करते हैं और दिवंगत परिजनों की अस्थियां जल में प्रवाहित करते हैं। मेले में राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं गुजरात के अलावा अन्य स्थानों से भी बड़ी तादाद में श्रद्धालु आते हैं। यह मेला भील युवक-युवतियों को जीवनसाथी चुनने का भी अवसर देता है। मेले में हाथों में तीर-कमान, तलवार व लाठी लिए युवक होते हैं तो परंपरागत गहनों-कपड़ों में सजी भील कन्याएं खास आकर्षण का केंद्र होती हैं।

    लजीज लापसी और कुरकुरी जलेबी
    यहां स्थानीय लोगों द्वारा अपने खानपान में अन्य भारतीय घरों की तरह ज्यादातर दालों, सब्जियों, गेहूं-मक्का आदि का उपयोग किया जाता है। पर यदि आप डूंगरपुर के खास खानपान के बारे में जानना चाह रहे हैं तो बता दें कि आपको यहां मिलने वाली गुड़ से बनी लापसी का स्वाद कभी नहीं भूलेगा। यहां के लोग शादी समारोह, त्योहार आदि हर तरह की खुशी के मौके पर लापसी बनाना पसंद करते हैं। वैसे, यहां के हाट बाजार और क्षेत्रीय मेलों की दुकानों में जलेबी की दुकानें भी खूब सजती है। यहां की जलेबी बड़ी रसभरी और कुरकुरी होती है।

    हाट में खरीदारी का आनंद
    सदर बाजार और घुमटा बाजार यहां खरीदारी के प्रमुख केंद्र हैं। ये शहर के पुराने बाजार माने जाते हैं। जिले के सीमलवाड़ा, सागवाड़ा, कुआं, चितरी, आसपुर आदि बाजार भी खरीदारी के लिए उपयुक्त हैं। डूंगरपुर के सोने और चांदी के कारीगर अपनी दक्षता के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां से आप पिक्चर फ्रेम और रंग-बिरंगे खिलौने भी ले जा सकते हैं। सागवाड़ा व डूंगरपुर शहर में सोने-चांदी का प्रमुख बाजार भी है। यदि आप राजस्थानी वस्त्रों की खरीदारी करना चाहते हैं तो आपको यहां सीमलवाड़ा, सागवाड़ा, आसपुर आदि में शॉपिंग के लिए आना होगा। ये बाजार शहर के ही अंदर हैं। विभिन्न कस्बों में आयोजित होने वाले मेले व हाट बाजार स्थानीय लोगों की जरूरत का सामान उपलब्ध कराते हैं। यहां से आपको ग्रामीण हाट-बाजार में खरीदारी का आनंद मिल सकता है। आप यहां से मिट्टी के बर्तन, मूर्तियां और लकड़ी के खिलौने व औजार खरीद सकते हैं।

    कैसे और कब जाएं?
    हवाई मार्ग से डूंगरपुर जाने के लिए निकटतम एयरपोर्ट डबोक (उदयपुर) में है। यह शहर से 110 किलोमीटर दूर है। निकटतम रेलवे स्टेशन रतलाम (म.प्र.) यहां से तकरीबन 180 किमी. की दूरी पर है। यह रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। डूंगरपुर को राजस्थान एवं उत्तरी भारत के शहरों से जोड़ने वाले अनेक सड़क मार्ग हैं। राजस्थान राज्य पथ परिवहन की बसों के अलावा निजी बसें भी डूंगरपुर के लिए चलती हैं। आप यहां वर्ष भर आ सकते हैं, लेकिन सर्दी का मौसम यहां आने के लिए ज्यादा अनुकूल है।