हथियारों के बल पर ताकतवर बनने की होड़ से विश्व शांति को खतरा
रूस-यूक्रेन युद्ध का क्या परिणाम निकलेगा कहना मुश्किल है मगर दुनिया पहले जैसी नहीं रहेगी यह तय है। इसीलिए वह अपने सैन्य खर्च के द्वारा घातक हथियारों को जुटाने की होड़ में लगी है लेकिन इससे खतरनाक हालात पैदा हो रहे हैं।

डा. लक्ष्मी शंकर यादव। इन दिनों विश्व के विभिन्न देशों में सैन्य क्षेत्र में एक-दूसरे से अधिक ताकतवर बनने की होड़ मची हुई है। ये देश अपने को सैन्य क्षेत्र में इतना अधिक शक्तिशाली बनाना चाहते हैं कि कोई उन पर आक्रमण करने से पहले अनेक बार विचार करे। ताकतवर राष्ट्र बनने की इस होड़ में वैश्विक सैन्य खर्च वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार सर्वकालिक उच्च स्तर 2113 अरब डालर यानी 160 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है। देखा जाए तो पिछले सात वर्षो से वैश्विक स्तर पर सैन्य खर्च में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
स्वीडन की संस्था स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि वर्तमान में सबसे अधिक सैन्य खर्च करने वाला देश अमेरिका है। इसके बाद चीन दूसरे नंबर पर और भारत तीसरे नंबर पर हैं। उल्लेखनीय है कि चीन का सैन्य खर्च भारत के मुकाबले तकरीबन चार गुना अधिक है। इसके बाद ब्रिटेन चौथे नंबर पर और रूस पांचवें स्थान पर हैं। इन पांचों देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के कुल सैन्य खर्च का 62 प्रतिशत है। बाकी 38 प्रतिशत में दुनिया के अन्य देश हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि कोविड-19 महामारी के बीच भी विश्व का सैन्य खर्च रिकार्ड स्तर तक बढ़ा है। वर्ष 2021 में रक्षा खर्च वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 2.2 प्रतिशत रहा। वहीं 2020 में यह आंकड़ा 2.3 प्रतिशत था। अमेरिका ने वैश्विक सैन्य खर्च में पहले स्थान पर रहकर वर्ष 2021 में इस पर 801 अरब डालर खर्च किए। हालांकि उसका यह खर्च वर्ष 2020 की तुलना में 1.4 प्रतिशत कम है। अमेरिका ने वर्ष 2012 से 2021 तक की अवधि में सैन्य अनुसंधान एवं विकास के लिए धनराशि में 24 प्रतिशत की वृद्धि की है और हथियारों की खरीद पर खर्च में 6.4 प्रतिशत की कमी की है। वह नई सैन्य तकनीकों का तेजी से विकास कर रहा है।
दूसरे स्थान पर रहने वाले चीन ने अमेरिका की तुलना में अपने सैन्य खर्च में वृद्धि की है। उसने वर्ष 2021 में 293 अरब डालर खर्च किए, जो कि वर्ष 2020 की तुलना में 4.7 प्रतिशत अधिक है। वर्ष 2012 से 2021 तक की अवधि में चीन अपने रक्षा बजट में 72 प्रतिशत का इजाफा कर चुका है। गौरतलब है कि रक्षा बजट के मामले में चीन अभी भी अमेरिका से काफी पीछे है। अमेरिका का रक्षा बजट चीन के मुकाबले अभी भी लगभग चार गुना ज्यादा है। चीन का अमेरिका के साथ सैन्य एवं राजनीतिक तनाव बढ़ता ही जा रहा है। शायद इसीलिए चीन अपने रक्षा बजट में लगातार वृद्धि कर रहा है।
तीसरे स्थान पर रहने वाले भारत का सैन्य खर्च वर्ष 2021 में वृद्धि के बाद भी 76.6 अरब डालर रहा, जो कि 2020 की तुलना में 0.9 प्रतिशत ज्यादा है। वहीं वर्ष 2012 की तुलना में यह 33 प्रतिशत ज्यादा है। ज्ञातव्य है कि भारत ने अपने स्वदेशी हथियार उद्योग को मजबूत करने के लिए इस वर्ष के रक्षा बजट में एक बड़ा हिस्सा घरेलू रूप से उत्पादित हथियारों के लिए निर्धारित किया है। भारत चार साल पहले रक्षा खर्च के मामले में पांचवें स्थान पर था। तब इसका सैन्य खर्च 5.1 लाख करोड़ रुपये था। चीन जैसी शक्तियों से निपटने के लिए भारत लगातार अपनी सामरिक शक्ति को बढ़ाने में लगा हुआ है। वर्तमान में चीन के बाद भारत के पास ही सबसे बड़ी सेना है। देश में हथियारों के उत्पादन को तेज करने के लिए भी भारत सरकार ने इस बार के बजट में भारी खर्च का एलान किया है। अब हथियारों के निर्माण में आत्मनिर्भर बनने के लिए भारत पहले की तुलना में अधिक धन खर्च कर रहा है।
चीन और पाकिस्तान के साथ लगती सीमाओं पर लगातार विवादों के कारण भारत की प्राथमिकता यह है कि वह अपनी सेनाओं के आधुनिकीकरण और हथियारों के उत्पादन के मामले में मजबूत हो जाए। इसीलिए वह रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा दे रहा है। इसके लिए भारत की सशस्त्र सेनाएं देश की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के लिए कठिन हालात में भी दुश्मन की हर प्रकार की चुनौती से निपटने के लिए पूरी मुस्तैदी से डटी हुई हैं।
चौथे स्थान पर रहने वाले ब्रिटेन ने वर्ष 2021 में अपने सैन्य क्षेत्र पर 68.4 अरब डालर खर्च किए, जो वर्ष 2020 की तुलना में तीन प्रतिशत ज्यादा है। वहीं वर्ष 2021 में सैन्य क्षेत्र पर 65.9 अरब डालर खर्च करने वाला रूस पांचवें स्थान पर है। उसका यह सैन्य खर्च वर्ष 2020 की तुलना में 2.9 प्रतिशत ज्यादा है। रूस ने काफी पहले से ही यूक्रेन की सीमा पर अपनी सेना को गतिशील कर रखा था। इस कारण रूस का सैन्य खर्च उसकी जीडीपी का 4.1 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
गत वर्ष ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी ने उसके सैन्य खर्च को बढ़ाने में सहायता की है। इसके अलावा कतर, ईरान और यूक्रेन भी अपने सैन्य खर्च को बढ़ाने में आगे रहे हैं। वर्ष 2021 में कतर का सैन्य खर्च 11.6 अरब डालर था। कतर मध्य-पूर्व में पांचवां सबसे अधिक रक्षा पर खर्च करने वाला देश बन गया है। पिछले 11 वर्षो में उसका सैन्य खर्च 434 फीसद बढ़ा है। ईरान का सैन्य खर्च भी गत चार वर्षो में पहली बार बढ़कर 24.6 अरब डालर हो गया है। यदि यूक्रेन की बात की जाए तो उसने वर्ष 2021 में अपनी जीडीपी का 3.2 प्रतिशत रक्षा पर खर्च किया। इसके अलावा भी कई देश अपना सैन्य खर्च बढ़ाकर विश्व शांति को चुनौती दे रहे हैं।
इससे स्पष्ट होता है कि पूरी दुनिया अपने सैन्य खर्च के द्वारा संहारक हथियारों को जुटाने की होड़ में लगी हुई है। इससे खतरनाक हालात पैदा हो रहे हैं। विश्व में कई देश ऐसे हैं जिनके बीच वर्तमान में ऐसा तनाव है, जो कभी भी युद्ध में तब्दील हो सकता है। इसलिए दुनिया के प्रमुख देशों को चाहिए कि वे विश्व में फैली तनावपूर्ण स्थितियों को समाप्त कर वैश्विक शांति की तरफ आगे बढ़ें जिससे महाविनाश की स्थितियों को टाला जा सके।
[पूर्व प्राध्यापक, सैन्य विज्ञान]
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