जानें- सेठ अब्दुल्ला से क्या है गांधी का बड़ा कनेक्शन, कैसे क्रांतिकारी बने युवा मोहनदास
डरबन यात्रा के दौरान गांधी जी खुद भी इसके शिकार हुए। उनके साथ घटित हुई दो घटनाओं ने गांधी जी के संकल्प और इरादों को और मजबूत किया।
नई दिल्ली [ जागरण स्पेशल ]। सेठ अब्दुल्ला के निमंत्रण पर 1893 में महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका गए थे। अब्दुल्ला ने गांधी को एक मुकदमा लड़ने के लिए बुलाया था। गांधी का अफ्रीका जाने का सिललिसा यहीं से शुरू हुआ। लेकिन यहां भारतीयों के साथ भेदभाव देखकर गांधी जी अंदर से विचलित हो गए। यहीं कारण रहा कि उन्होंने इस भेदभाव को समाप्त करने का संकल्प लिया। डरबन यात्रा के दौरान गांधी जी खुद भी इसके शिकार हुए। उनके साथ घटित हुई दो घटनाओं ने गांधी जी के संकल्प और इरादों को और मजबूत किया। आज की तिथि महात्मा गांधी के जीवन में काफी अहम है। आइए, हम आपको बताते हैं एक वकील मोहन दास से महात्मा गांधी बनने तक उनके सफर के बारे में।
अब्दुल्ला के निमंत्रण पर गांधी पहुंचे अफ्रीका
अब्दुल्ला के निमंत्रण पर गांधी जी पानी के जहाज पर सवार होकर दक्षिण अफ्रीका की धरती पर उतरे। वह डरबन पहुंचे और सात जून 1893 को प्रीटोरिया जाने के लिए ट्रेन पर चढ़े। गांधी जी के पास ट्रेन का फस्ट क्लास का टिकट था। प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें कोच में अपमानित होना पड़ा। ट्रेन जब पीटरमारिट्जबर्ग पहुंचने वाली थी तो उन्हें थर्ड क्लास वाले डिब्बे में जाने के लिए कहा गया। लेकिन गांधी जी ने इनकार कर दिया तो उन्हें जबरदस्ती पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर ट्रेन से धक्का देकर उतार दिया गया था। गांधी जी के समान को ट्रेन के बाहर फेंक दिया गया। ट्रेन के पायदान पर बैठकर उन्होंने अपना सफर पूरा किया। इस घटना से गांधी जी काफी आहत हुए थे। बता दें कि उस वक्त फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सिर्फ गोरे लोग ही सफर कर सकते थे।
होटल प्रबंधन व जज से हुए आहत
अत्याचार और जुल्म का यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। इस यात्रा के दौरान एक यूरोपियन यात्री द्वारा एक अन्य यात्री की पिटाई भी की गई। इस दृष्य को देखकर गांधी जी आहत हुए। उनकी इस यात्रा के दौरान गांधी को अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। प्रीटोरिया के कई होटलों में उनको अंदर प्रवेश नहीं करने दिया। होटल प्रबंधन ने उनको यहां ठहरने से मना कर दिया। इसके अलावा जब गांधी अब्दुल्ला के केस में जज के समक्ष पेश हुए तो उनकी पगड़ी पर सवाल उठाया गया। बहस के दौरान जज ने गांधी को पगड़ी उतारने का अादेश दिया। हालांकि, गांधी ने जज के आदेश को मानने से इंकार कर दिया था। गांधी जी के साथ घटित इस घटना ने गांधी जी को सत्याग्रह करने को मजबूर किया। सत्याग्रह यानी अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्वक लड़ना। कड़कड़ाती ठंड में बैरिस्टर गांधी जी पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन के वेटिंग रूम में पहुंचे थे।
1894 में गांधी जी ने नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना
एक केस के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका गए गांधी जी ने यहां रहने की अवधि बढ़ा दी। उनका मकसद था कि भारतीयों को वोट न देने वाले एक विधेयक में वे उनकी मदद कर सकें। हालांकि, इस विधेयक को गांधी जी पारित करने से नहीं रोक सके। लेकिन दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की शिकायतों के प्रति वे जनता का ध्यान आकर्षित करने में वह पूरी तरह से सफल रहे। 1894 में गांधी जी ने नेटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की और इस संगठन के माध्यम से उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय समुदाय को एक सजातीय राजनीतिक शक्ति के रूप में परिवर्तित कर दिया। महात्मा गांधी ने राजकोट में अलग दफ्तर खोला। यहां उन्हें अर्जियां लिखने का काम मिलने लगा। उनकी करीब 300 रुपये महीने की आमदनी होने लगी। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि बंबई में कमीशन नहीं देने की जो मेरी आदत थी वह राजकोट में आकर नहीं रही। उन्हें समझाया गया कि बंबई में सिर्फ दलाल को पैसे देने की बात थी लेकिन यहां पैसे वकील को देने हैं।
1906 में गांधी ने विदेशी धरती पर शुरू किया सत्याग्रह
1906 में दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने एक नया कानून बनाया। इस कानून में भारतीय मूल की आबादी को पंजीकृत कराना अनिवार्य किया गया था। उस साल 11 सितंबर को जाहान्सबर्ग में हुई एक बैठक में भारी विरोध प्रकट किया गया थ। इसमें गांधी ने अहिंसा विरोध की विचार धारा को पहली बार अपनाया गया। दक्षिण अफ्रीकी सरकार के खिलाफ लंबा समय लगा। इस संघर्ष में सात वर्ष लगे। इस सत्याग्रह में गांधी सहित हजारों भारतीयों को हड़ताल करने, पंजीकरण से इंकार करने, पंजीकरण कार्ड जलाने अथवा अहिंसक प्रदर्शन करने वाले अन्य रूपों में संलिप्त होने के लिए जेल भेज दिया गया । उन पर जमकर कोड़े बरसाए गए।
गांधी को मिला 'कैसर-ए-हिन्द' का सम्मान
1893 से लेकर 1914 तक महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रहे और नागरिक अधिकारों के लिए सत्याग्रह करते रहे। 1915 में वह भारत लौटे। इसके बाद भारत की आजादी का जो आंदोलन उन्होंने चलाया उसी ने हमें अंग्रेजों से आजाद कराया। गांधी को 1915 में सरकार की ओर से 'कैसर-ए-हिन्द' स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। भारत आगमन के बाद गांधी जी यहां देश को अंग्रेजों से आजाद कराने की दिशा में बढ़ने लगे। गांधी जी की विशेष भूमिका वाला सत्याग्रह आन्दोलन 1917 चंपारण जिले में हुआ था। गांधी जी ने न सिर्फ भारत को आजादी दिलाया बल्कि पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिए प्रेरित किया।