नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। चीन की वार्षिक विधायी बैठक नेशनल पीपुल्स कांग्रेस पर दुनिया भर की निगाह थी। इसके पीछे कई बड़ी वजह थी। बीते कई दशकों तक चीन की अर्थव्यवस्था बहुत अधिक विकास का पर्याय थी। लेकिन तीन साल के सख्त महामारी उपायों का असर पड़ा और गहराते रियल एस्टेट संकट के कारण दर्जनों डेवलपर्स का पतन हो गया। 2021 के चरम के बाद से चीन के शेयर बाजार का मूल्य लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर कम हो गया है, विदेशी निवेश देश को छोड़ रहा है और शेष दशक के लिए सकल घरेलू उत्पाद में 1% की कमी आने का खतरा है। चीन के नेताओं द्वारा कार्रवाई में कमी के कारण, विशेषज्ञ चीन की ग्रोथ पर संदेह करने लगे। चीन के गणतंत्र की स्थापना का 75वां साल होने की वजह से भी इस बैठक पर दुनिया के देश टकटकी लगाए हुए थे।

इस बैठक के मजमून को समझें तो एक्सपर्ट्स कहते हैं कि ली कियांग का भाषण, जो नए लक्ष्यों और लक्ष्यों को निर्धारित करते हुए देश के आर्थिक स्वास्थ्य की समीक्षा करता है, अपने पूर्ववर्ती के पिछले वर्ष की लगभग कार्बन कॉपी साबित हुआ, जो कि "लगभग 5%" के समान अनुमानित विकास लक्ष्य से भी कम था। हालांकि उन्होंने सैन्य खर्च में 7.2% की वृद्धि, "अल्ट्रा लॉन्ग-टर्म" विशेष बांड में 139 बिलियन डॉलर और उद्योगों के उन्नयन और विनिर्माण के आधुनिकीकरण के लिए 1.4 बिलियन डॉलर की घोषणा की।

आर्थिक मंदी और कमजोर पड़ती कारोबारी धारणा से जूझ रहे चीन ने इस साल पांच प्रतिशत की मामूली आर्थिक वृद्धि का लक्ष्य तय किया है। इसके साथ ही पड़ोसी देश ने बढ़ती बेरोजगारी पर चिंताओं के बीच 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करने का वादा भी किया है। ली ने अपनी 39 पेज की कार्य रिपोर्ट में कहा कि सरकारी घाटा 2023 के बजट आंकड़े से 180 अरब युआन (26 अरब अमेरिकी डॉलर) बढ़ जाएगा। पिछले साल चीन ने 5.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। वहीं ताइवान के मुद्दे पर चीन के रुख में कड़वाहट दिखाई दी। जानकारों का मानना है कि इस पूरी बैठक का लब्बोलुआब यह है कि चीन अपनी गिरती इकोनॉमी और वैश्विक तनावों के बीच विकास की रफ्तार में पिछड़ता दिखाई दे रहा है। ऐसे में भारत के लिए अवसरों की भरमार बढ़ेगी।

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास कहते हैं कि चीन में 2024 नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) पर इस बात पर बारीकी से नजर रखा जा रहा है कि देश अपनी मौजूदा आर्थिक चुनौतियों से निपटने की योजना कैसे बना रहा है। ऐसा लगता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग का प्रशासन चीन के सामने आने वाली आर्थिक बाधाओं से पूरी तरह अवगत है। अर्थव्यवस्था को स्थिर और बेहतर करने के लिहाज से कई नीतियों को लागू कर रहा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से देश का कायाकल्प करने पर शी जिनपिंग का जोर है। इसके साथ ही स्टेट काउंसिल के ऑर्गेनिक लॉ में भी सुधार की बात है जिसके तहत कैबिनेट का रोल बड़ा अहम हो जाता है। इसके साथ ही आर्थिक चुनौतियों से निपटने के लिए घरेलू नवाचार और गर्वनेंस के पुनर्गठन की बात कही गई है। प्रधानमंत्री ली केकियांग ने अपने संबोधन में प्रवासी श्रमिकों के लिए शहरी निवास को प्राथमिकता के रूप में रेखांकित किया है। इससे घरेलू मांग को प्रोत्साहन मिलेगा। इसके अतिरिक्त, 'नए प्रकार' की कूटनीति यह दर्शा रही है कि चीन अपने अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करने के लिए प्रयास कर रहा है।

यूनिवर्सिटी में एसओएएस चाइना इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग कहते हैं, "जिस तरह से चीजों को संभाला जा रहा है, उससे पता चलता है कि शी जिनपिंग को एहसास है कि अर्थव्यवस्था अच्छा नहीं कर रही है, चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन उन्हें कोई संकट नहीं दिख रहा है।

ताइपे में एक थिंक टैंक, इंस्टीट्यूट फॉर नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी रिसर्च में एक शोधकर्ता ओउ सी-फू कहते हैं कि चीन द्वारा अपनी सेना पर भारी खर्च जारी रखने से पता चलता है कि देश के शीर्ष नेता शी जिनपिंग संभावित संघर्ष के लिए कमर कसना जारी रखेंगे। चूंकि अमेरिका के साथ चीन के संबंध अच्छे नहीं हैं, इसलिए निश्चित रूप से चीन बहुत अधिक कमजोरी नहीं दिखा सकता है।

चीन के सामने चुनौतियों का अंबार

प्रॉपर्टी संकट से जूझ रहे चीन ने 2024 में 5% ग्रोथ का लक्ष्य रखा है। लेकिन कंज्यूमर कॉन्फिडेंस गिरा हुआ है, स्थानीय सरकारों पर कर्ज का भारी-भरकम बोझ है। केंद्र सरकार ने स्थानीय सरकारों को मदद के लिए खर्च बढ़ाने की कोई घोषणा भी नहीं की। न ही प्रॉपर्टी मार्केट या कंज्यूमर कॉन्फिडेंस में सुधार के उपाय किए। अर्थशास्त्रियों को लगता है कि बिना किसी उपाय के इतनी ग्रोथ दर्ज कर पाना मुश्किल होगा।

दिसंबर 2023 से फरवरी तक चीन का औसत मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 49.1 और नॉन-मैन्युफैक्चरिंग पीएमआई 50.8 रहा है। कंपोजिट पीएमआई 50.7 है जो 2018 के बाद सबसे कम है। इस आधार पर ग्लोबल रिसर्च फर्म नेटिक्सिस का अनुमान है कि चीन की विकास दर पहली तिमाही में 4.2% होगी। इस वर्ष 5% ग्रोथ के लिए बाकी हर तिमाही में विकास दर 1.3% बढ़ना जरूरी है।

नेटिक्सिस की मुख्य अर्थशास्त्री एलिसिया गार्सिया हेरेरो का कहना है कि खपत की तुलना में निवेश में तेजी से गिरावट के चलते चीन में निगेटिव आउटपुट गैप है, यानी क्षमता से कम उत्पादन हो रहा है। उनका आकलन है कि 2022 की दूसरी तिमाही से यह स्थिति है, बस 2023 की पहली तिमाही में जीरो कोविड पॉलिसी खत्म करने के बाद कुछ समय के लिए यह पॉजिटिव हुआ था।

तमाम अंर्तविरोधों के बाद भी धीमी अर्थव्यवस्था और सेमी-कंडक्टर जैसे कई तकनीकी-संबंधित उद्योगों पर अमेरिकी निर्यात नियंत्रण के बावजूद, ली ने अपनी रिपोर्ट में आत्मविश्वास की झलक दिखाई। उन्होंने कहा, "चीनी लोगों के पास किसी भी कठिनाई या बाधा को दूर करने का साहस, ज्ञान है।" "चीन का विकास निश्चित रूप से तूफानों को सहन करेगा और लहरों को पार करेगा, (और) भविष्य आशाजनक है।"

आर्थिक बदलाव और सुधार के लिए उठाए कदम

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि आर्थिक रूप से, चीन एक महत्वपूर्ण स्थिति में है। एनपीसी ने लड़खड़ाते संपत्ति बाजार और बढ़ते स्थानीय सरकारी ऋण के दबाव को दूर करने की योजना को मंजूरी दे दी है। एक प्रमुख उपाय में आर्थिक स्थिरीकरण के उद्देश्य से 1 ट्रिलियन-युआन संप्रभु ऋण योजना शामिल है। यह आर्थिक मंदी का मुकाबला करने के लिए चीन के दृष्टिकोण को दिखाती है। संप्रभु ऋण योजना के साथ-साथ, एनपीसी ने स्थानीय सरकारों को अपने 2024 बांड कोटा के हिस्से को फ्रंट-लोड करने की अनुमति देने वाले कानून को मंजूरी दे दी है। इसका उद्देश्य बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को वित्त पोषित कर स्थिर निवेश बनाए रखना और घरेलू मांग का विस्तार करना है।

ताइवान को लेकर रूख

रक्षा और विदेश नीति के संदर्भ में, रक्षा खर्च में वृद्धि और एकीकरण के संबंध में भाषा में बदलाव के साथ, चीन का रुख विशेष रूप से ताइवान के संबंध में अधिक मुखर दिखाई देता है। लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि चीन का शांति शब्द हटाना यह दर्शाता है कि चीन ताइवान पर हमला करने की फिराक में है। पिछले साल अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए के डाइरेक्टर विलियम बर्न्स ने बयान दिया था कि अमेरिका और चीन का युद्ध ताइवान को लेकर 2027 में हो सकता है। यही वजह है कि साल भर से चीन और अमेरिका के अधिकारियों की बैठक हो रही है ताकि तनाव को उच्च स्तर पर ले जाने से टाला जा सके।

ताइवान के सेंट्रल पुलिस यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और क्रॉस-स्ट्रेट्स संबंधों के विशेषज्ञ आर्थर झिन-शेंग वांग ने कहा, कुल मिलाकर, इस वर्ष भाषा अधिक कठिन थी। वांग ने कहा, "शांति" शब्द को "ताइवान की स्वतंत्रता का दृढ़ता से विरोध" वाक्यांश के साथ हटाना एक मजबूत रुख का संकेत देता है। पिछले वर्ष, कार्य रिपोर्ट में दोनों पक्षों की समृद्धि को बढ़ावा देने के बारे में अधिक भाषा थी, जबकि इस वर्ष केवल संक्षिप्त सहमति थी।

ताइवान ने जनवरी में राष्ट्रपति चुनाव कराए और लाई चिंग-ते को अपना अगला राष्ट्रपति चुना, जिससे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी को तीसरा कार्यकाल मिला। पार्टी के मंच का कहना है कि ताइवान पहले से ही चीन से स्वतंत्र है। 1949 से ताइवान और चीन पर अलग-अलग शासन किया गया है, जब चियांग काई-शेक की राष्ट्रवादी सरकार माओत्से तुंग की कम्युनिस्ट ताकतों से मुख्य भूमि पर गृहयुद्ध हारने के बाद द्वीप पर वापस चली गई थी।

ताइवान से तनाव का सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर पड़ेगा असर

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास के अनुसार ताइवान वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, टीएसएमसी (ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी) दुनिया की सबसे बड़ी चिप निर्माता है। तनाव या संघर्ष में कोई भी वृद्धि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को बाधित कर सकती है, जिससे दुनिया भर में सेमीकंडक्टर घटकों की कमी और लागत में वृद्धि हो सकती है। अपने सेमीकंडक्टर उद्योग के विस्तार करने के लिए चीन कई तरह के प्रयास कर रहा है। वह इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिए शिद्दत से लगा हुआ है। वहीं ताइवान के साथ लगातार बढ़ता तनाव इन प्रयासों में तेजी ला सकता है, क्योंकि चीन ताइवानी सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर सकता है। इससे घरेलू चिप निर्माण क्षमताओं और प्रौद्योगिकी में निवेश बढ़ सकता है।

चीन दे रहा धोखा

लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि चीन इकोनॉमी के नाम पर दुनिया को धोखा दे रहा है। चीन ने तीन ट्रिलियन डॉलर अपने बहीखाते में नहीं दिखाए हैं। इसका एक बड़ा प्रमाण यह है कि उन्होंने अपने रक्षा बजट में बढ़ोतरी की है। कई संकेत बता रहे हैं कि चीन के पास काफी छिपा पैसा है जिसे चीन दुनिया को दिखा नहीं रहा है। चीन में 64 मिलियन घर खाली पढ़े हैं। इन्हें घोस्ट हाऊस कहा जा रहा है। इनमें अमेरिका का पैसा लगा हुआ है। चीन एक दो रिएल इस्टेट कंपनी को आर्थिक स्तर पर बेहद कमजोर दिखा सकता है। चीन निर्माण कंपनियों को दिवालिया दिखा कर अमेरिका का पैसा वापस नहीं करेगा। चीन के दो बड़े लक्ष्य हैं ताइवान और अरुणाचल प्रदेश। इसके लिए वह हरसंभव प्रयास कर रहा है।

सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में भारत के लिए मौका

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास के मुताबिक सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने की वैश्विक आवश्यकता भारत को विनिर्माण और निवेश के लिए एक अनुकूल देश के रूप में स्थापित कर सकती है। भारत वैश्विक खिलाड़ियों को सेमीकंडक्टर विनिर्माण और डिजाइन के लिए आकर्षित कर सकता है। भारत के पास सॉफ्टवेयर और इंजीनियरिंग में एक मजबूत आधार है। इसका लाभ सेमीकंडक्टर क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास और नवाचार को आगे बढ़ाने के लिए उठाया जा सकता है। ऐसी कंपनियां भारत को एक विकल्प के तौर पर देख सकती है जो ताइवान में अस्थिरता की वजह से काम नहीं करना चाहती है। सेमीकंडक्टर्स पर ध्यान केंद्रित करने से भारत में प्रतिभा और कौशल विकास में महत्वपूर्ण निवेश हो सकता है। यह न केवल घरेलू उद्योग को समर्थन देगा बल्कि भारत को सेमीकंडक्टर विशेषज्ञता के तौर पर वैश्विक स्तर पर स्थापित करेगा।

भारत चीन में निवेश करने से बच रही विदेशी कंपनियों को आकर्षित कर सकता है। भारत का बढ़ता तकनीकी क्षेत्र, कुशल कार्यबल और बड़ा बाजार इसे प्रौद्योगिकी, विनिर्माण और सेवाओं में निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य बनाता है।

नई पहल का एलान

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि 2024 की नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) ने शेयर बाजार के मूल्यों में गिरावट, विदेशी निवेश आउटफ्लो, रियल एस्टेट संकट, उच्च युवा बेरोजगारी पर चिंताओं के बीच, चीन की अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के उद्देश्य से कई प्रमुख उपाय अपनाए हैं। चीन ने लड़खड़ाते संपत्ति बाजार और बढ़ते स्थानीय सरकारी ऋण दबाव के बीच आर्थिक स्थिरीकरण के उद्देश्य से 1 ट्रिलियन-युआन संप्रभु ऋण योजना पेश की है। एनपीसी ने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और रियल एस्टेट बाजार अस्थिरता जैसी स्थायी आर्थिक चुनौतियों पर चिंता व्यक्त की। रिपोर्ट में माना गया कि आर्थिक स्थिरता, नवाचार को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए जाएं।

सरकार ने प्राथमिकता के रूप में प्रवासी श्रमिकों के लिए शहरी निवास पर जोर दिया है। इस कदम से प्रवासियों के लिए बेहतर सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच बढ़ेगी। इससे घरेलू मांग को बढ़ावा मिलेगा। वहीं संभावित रूप से सकल घरेलू उत्पाद को बढ़ाने में भी सहायता मिलेगी। गौरतलब है कि चीन की ग्रामीण और शहरी आबादी लंबे समय से हुकोउ द्वारा विभाजित है, एक पंजीकरण और पहचान प्रणाली जिसके माध्यम से स्वास्थ्य बीमा और स्कूलों जैसे सामाजिक लाभ आवंटित किए जाते हैं। शहरों और शहरी क्षेत्रों में आम तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में बेहतर सामाजिक लाभ होते हैं। हाल के वर्षों में पहली बार, सरकार की कार्य रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि वह ग्रामीण हुकू पंजीकरण वाले प्रवासी श्रमिकों के लिए अपने हुकू को शहरी में बदलने में सक्षम बनाना आसान बनाना चाहेगी। जबकि हुकू सुधार पर लंबे समय से चर्चा हो रही है, सरकारी रिपोर्ट में उल्लेख से संकेत मिलता है कि यह केंद्रीय अधिकारियों के एजेंडे में उच्चतर हो सकता है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाने की कोशिश

चीन ने खुद को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमकाने की कोशिश की है। "कम्युनिटी ऑफ कॉमन डेस्टिनी" बनाने की प्रतिबद्धता और पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के बजट में मामूली वृद्धि चीन की अंतरराष्ट्रीय स्थिति में रणनीतिक को दर्शाता है। इसका उद्देश्य विदेशी विश्वास और निवेश को बढ़ावा देने के लिए आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित करते हुए वैश्विक भागीदारों को आश्वस्त करना है।

युवाओं के बीच बेरोजगारी को कम करने की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार करते हुए, शहरों में लगभग 12 मिलियन नई नौकरियां पैदा करने के प्रयासों की घोषणा की गई है।

चीन का तकनीक पर जोर, बढ़ेगी प्रतिस्पर्द्धा

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास का कहना है कि प्रौद्योगिकी में निवेश बढ़ाने और अनुसंधान एवं विकास खर्च को 10% तक बढ़ाने पर एनपीसी का जोर नवाचार, उच्च तकनीक उद्योगों और मुख्य प्रौद्योगिकियों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की दिशा में चीन की रणनीतिक सोच को दर्शाता है। यह कदम चीन और वैश्विक मंच दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, जो चुनौतियों और अवसरों का मिश्रण पेश करता है। चीन द्वारा अनुसंधान एवं विकास में निवेश बढ़ाने से कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग, नवीकरणीय ऊर्जा और जैव प्रौद्योगिकी जैसे उभरते उद्योगों की ओर वैश्विक तकनीकी बदलाव में तेजी आने की संभावना है। इसके परिणामस्वरूप तेजी से तकनीकी प्रगति और नवाचार हो सकते हैं। प्रौद्योगिकी पर चीन का ध्यान प्रतिस्पर्धा बढ़ा सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उसका लक्ष्य वैश्विक नेतृत्व हासिल करना या बनाए रखना है। यह अन्य देशों को प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए अपने स्वयं के अनुसंधान एवं विकास निवेश को बढ़ाने के लिए प्रेरित कर सकता है। जैसे-जैसे चीन अधिक घरेलू प्रौद्योगिकियाँ विकसित करता है, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की गतिशीलता बदल सकती है।

अनुसंधान एवं विकास में तेजी के साथ, आईपी और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के मुद्दे अधिक स्पष्ट हो सकते हैं, जिससे संभावित रूप से चीन और आईपी अधिकारों और साइबर सुरक्षा को लेकर चिंतित देशों के बीच तनाव बढ़ सकता है।

भारत के लिए चुनौती

भारत के तकनीकी उद्योगों को चीनी कंपनियों से बढ़ते प्रतिस्पर्धी दबाव का सामना करना पड़ सकता है, खासकर इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार और सॉफ्टवेयर जैसे क्षेत्रों में, जहां दोनों देश महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं। चीन और भारत के बीच अनुसंधान एवं विकास खर्च में अंतर बढ़ सकता है, जिससे संभावित रूप से अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में प्रतिस्पर्धा करने की भारत की क्षमता प्रभावित हो सकती है। लेफ्टिनेंट कर्नल जे.एस. सोढ़ी कहते हैं कि चीन का सैन्य ताकत बढ़ाना भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। चीन लैंड बॉर्डर से घेर रहा है। समुद्री रास्ते से भी चीन ने घेरने की शुरुआत की है। पाकिस्तान का ग्वादर पोर्ट, श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट और बांग्लादेश बाजार का नया पोर्ट हर जगह से चीन एक नया घेरा बना रहा है। चीन के साथ व्यापार करने से चीन की सेना ताकतवर हो रही है। अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन ने भी चीन के साथ व्यापार बढ़ाया जिससे चीन मजबूत हुआ। यह अमेरिका की गलती थी।

सोढ़ी कहते हैं कि भारत को चीन के साथ व्यापार कम करना होगा और रक्षा बजट को बढ़ाना होगा। भारत ने मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियान चलाए हैं जिसका असर देखने में आ रहा है। उसे अधिक मजबूती प्रदान करनी होगी।

भारत के लिए अवसर

पारले पॉलिसी इनीशिएटिव के साउथ एशिया के सीनियर एडवायजर नीरज सिंह मन्हास बताते हैं कि भारत उन क्षेत्रों में सहयोग के अवसर तलाश सकता है जहां दोनों देशों के पास पूरक ताकतें हैं। उदाहरण के लिए, सॉफ्टवेयर विकास में भारत की प्रगति तकनीकी परियोजनाओं में चीन की हार्डवेयर और विनिर्माण क्षमताओं की पूरक हो सकती है। जैसा कि चीन अपनी घरेलू क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करता है, अपने निवेश और आपूर्ति श्रृंखला में विविधता लाने की इच्छुक वैश्विक कंपनियां एक विकल्प के रूप में भारत की ओर रुख कर सकती हैं, खासकर आईटी सेवाओं, फार्मास्यूटिकल्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में। चीन का प्रतिस्पर्धी दबाव भारत के लिए अपने स्वयं के अनुसंधान एवं  नवाचार प्रयासों को बढ़ाने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में काम कर सकता है, जिससे संभावित रूप से प्रौद्योगिकी में सफलता मिलेगी और वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धात्मकता में सुधार होगा।