बर्फबारी का आनंद लेना चाहते हैं तो यह खूबसूरत पहाड़ी शहर आपकी ख्वाहिश करेगा पूरी
चीड़ और देवदार के पेड़ों, झीलों और झरनों वाले हिमाचल प्रदेश के डलहौजी शहर को कभी अंग्रेजों ने बसाया था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जब देश के सबसे पिछड़े जिलों की बात आती है, तो हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले का नाम जरूर आता है, लेकिन प्रकृति की गोद में बसे इस जिले में कई ऐसे पर्यटन स्थल हैं, जो उसे देश-दुनिया के नक्शे पर अलग पहचान दिलाते हैं। इन्हीं में एक नाम है डलहौजी का। ब्रिटिश शासनकाल में अस्तित्व में आए इस शहर के दीदार के लिए हर साल हजारों सैलानी आते हैं। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद यहां के लोगों का हौसला फौलाद की तरह मजबूत है।
देवदार और चीड़ के हरे-भरे पेड़ों से इस शहर की सुंदरता और बढ़ जाती है। पर्यटन के साथ- साथ यहां देश के बेहतरीन बोर्डिंग स्कूल भी हैं। चाहे सर्दी का मौसम हो या गर्मी का, हर मौसम में कुदरत मेहरबान है इस शहर पर। यहां आकर छुट्टियां बिताना यादगार बन जाता है। इन दिनों ठंड के साथ इस इलाके में बर्फबारी की शुरुआत भी हो चुकी है। चीड़ और देवदार के पेड़ों, झीलों और झरनों वाले हिमाचल प्रदेश के डलहौजी शहर को कभी अंग्रेजों ने बसाया था। यदि आप छुट्टियां बिताने और बर्फबारी का आनंद लेने की योजना बना रहे हैं तो चले आइए इस खूबसूरत शहर में। चलते हैं डलहौजी के सफर पर...
लॉर्ड डलहौजी कभी नहीं आए
ब्रिटिश काल में अंग्रेज अधिकारी लॉर्ड डलहौजी ने पर्यटन नगरी डलहौजी को एक सेनेटोरियम (स्वास्थ्यवर्धक स्थान) के रूप में बसाया था, लेकिन यह बात भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि डलहौजी शहर को बसाने वाले और जिनके नाम पर इस स्थान का नाम पड़ा है, वह अंग्रेज अधिकारी लॉर्ड डलहौजी कभी यहां आये ही नहीं। वर्ष 1850 में शहर को बसाने के लिए चंबा के तत्कालीन राजा व ब्रिटिश सरकार के बीच एक लीज पर हस्ताक्षर हुआ था, जिसके तहत वर्ष 1854 में पांच पहाड़ियों काठगोल, पोट्रेयन, टिहरी, बकरोटा और बेलम पर डलहौजी शहर को बसाया गया। उन दिनों अंग्रेज अधिकारी गर्मियों में यहां छुट्टियां बिताने आते थे। उसी दौरान सुभाष चौक, गांधी चौक व बैलून कैंट में कई चर्च भी बनाए गए थे।
अतीत की इबारत
यहां अंग्रेज अधिकारी पूरे रौब के साथ रहते थे। सड़कों पर अंग्रेज अधिकारियों के गुजरने पर भारतीय लोगों को दुकानों व घरों के अंदर छिपना पड़ता था। यह भी कहा जाता है कि अंग्रेजी हुकूमत के दौरान डलहौजी की सड़कों पर भारतीय लोगों को घोड़े पर सवार होकर गुजरने पर भी पाबंदी थी। शहर के सबसे पुराने रिहायशी इलाके बाजार में कई पुरानी इमारतों पर अतीत की इबारत पढ़ी जा सकती है। सदर बाजार में लाला अमीर चंद द्वारा वर्ष 1930 में स्थापित किया गया जनरल स्टोर आज भी मौजूद है। वहीं सुभाष चौक में 1939 में मास्टर मोहनलाल खोसला की हलवाई की दुकान, जो खोसला स्वीट्स के नाम से मशहूर थी, अब फ्रेंडस शेर-ए-पंजाब फूड कॉर्नर का रूप ले चुकी है।
हालांकि आधुनिकता के बीच बेशक यहां नए भवनों ने जगह ले ली है लेकिन अतीत की गूंज आज भी सुनी जा सकती है। इस शहर के साथ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद भगत सिंह के चाचा देशभक्त सरदार अजीत सिंह सहित महान लेखक व कवि गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाम भी जुड़े हैं, जिन्होंने नैसर्गिक सौंदर्य से लबरेज डलहौजी में काफी समय बिताया था। कहा जाता है कि युवावस्था में डलहौजी प्रवास के बाद बंगाल जाने पर उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी थी।
कमी नहीं नजारों की
डलहौजी से करीब सात किलोमीटर दूर बनीखेत के ईको पार्क में लगे रंग-बिरंगे फाउंटेन व झूले भी पर्यटकों को अपनी ओर बरबस आकर्षित करते हैं। बकरोटा हिल्स के समीप डलहौजी पब्लिक स्कूल के निदेशक कैप्टन जीएस ढिल्लो द्वारा अपनी माता की स्मृति में स्थापित किया गया बिजी पार्क भी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र है जो कि सभी माताओं को समर्पित है।
नजारे और भी है
पंजपुला
डलहौजी के गांधी चौक से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर स्थित पंजपुला में स्थित देशभक्त सरदार अजीत सिंह की समाधि है। यहीं आप साहसिक पर्यटन का भी आनंद ले सकते हैं। रिवर क्रॉसिंग, हाइकिंग, ट्रैकिंग के साथ-साथ बच्चों के लिए झूलों की भी व्यवस्था है। पंजपुला का नजारा बेहद हसीन है। यहां आसपास कई सुंदर रिजॉर्ट हैं जहां ठहरकर डलहौजी की खूबसरती को आप तसल्ली से निहार सकते हैं।
सुभाष बावड़ी
गांधी चौक से महज डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर सुभाष बावड़ी है। कहते हैं इस बावड़ी का जल पीने से नेताजी सुभाष चंद्र बोस को स्वास्थ्य लाभ हुआ था, जिसके चलते बावड़ी का नाम सुभाष बावड़ी रखा गया। शहर में आने वाले सैलानी यहां आना नहीं भूलते।
डैनकुंड
डलहौजी से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर डैनकुंड स्थित है। डैनकुंड के समीप ही स्थित है फ्लावर वैली। यहां खिलने वाले विभिन्न प्रकार के फूलों की प्रजाति की वजह से यह काफी विख्यात है। खज्जियार जाने वाले पर्यटक डैनकुंड व फ्लावर वैली जरूर आते हैं।
कालाटोप
डलहौजी से करीब आठ किलोमीटर की दूरी पर कालाटोप वन्यप्राणी संरक्षण क्षेत्र स्थित है। यहां पर्यटकों के ठहराव के लिए वन निगम का गेस्ट हाउस व निजी कैंपिंग साइट्स मौजूद हैं। देवदार के घने वन क्षेत्र के बीचोबीच स्थित कालाटोप में कुछ समय व्यतीत करना काफी सुकून भरा अनुभव होता है। यहां पर्यटक वन्य प्राणियों को भी करीब से निहार सकते हैं, लेकिन वन विभाग की अनुमति के बिना आप यहां नहीं जा सकते। यह अनुमति कालाटोप से पहले लक्कड़मंडी में स्थित वन विभाग के कार्यालय से यहां जाने से पहले ली जा सकती है।
यहीं है ‘मिनी स्विट्जरलैंड’
डलहौजी से करीब 22 किलोमीटर की दूरी पर विश्वविख्यात पर्यटन स्थल खजियार है। यह ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल, स्विट्जरलैंड की खूबसूरत पहाडिय़ां, चारों तरफ हरियाली, नदियां और झीलें दुनिया भर में मशहूर हैं। खुद स्विट्जरलैंड के तत्कालीन राजदूत ने यहां की खूबसूरती से आकर्षित होकर सात जुलाई, 1992 को इस जगह को हिमाचल प्रदेश के ‘मिनी स्विट्जरलैंड’ का नाम दिया था। यहां का मौसम, चीड़ और देवदार के ऊंचे-लंबे पेड़, हरियाली, पहाड़ और वादियां स्विट्जरलैंड का एहसास कराती हैं। हजारों साल पुराने इस हिल स्टेशन को, खज्जी नागा मंदिर के लिए भी जाना जाता है। यहां नागदेव की पूजा होती है।
खजियार का आकर्षण चीड़ व देवदार के वृक्षों से ढकी झील भी है। झील के चारों ओर हरी-भरी मुलायम और आकर्षक घास इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देती है। झील के बीच में टापूनुमा दो स्थान हैं। वैसे तो खजियार में तरह-तरह के रोमांचक खेलों का आयोजन किया जाता है, लेकिन गोल्फ के शौकीनों के लिए यह स्थान अधिक अनुकूल है।
तलेरू बोटिंग प्वाइंट
डलहौजी से करीब 32 किलोमीटर की दूरी पर तलेरू बोटिंग प्वाइंट है, जहां जलक्रीड़ा की गतिविधियों का आयोजन होता है। बोटिंग प्वाइंट पर पर्यटक स्पीड बोट, क्रूज आदि की सवारी का आनंद ले सकते हैं। पर्यटक यहां विशाल तलेरू झील पर बोटिंग करते हुए नैसर्गिक नजारों का आनंद लेते हैं।
गर्म सड़क
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आदमकद प्रतिमा के बिल्कुल साथ में ही गर्म सड़क स्थित है। यह सड़क गांधी चौक तक जाती है। चूंकि इस सड़क पर सूरज की पहली किरण पड़ती है और देर शाम तक यहां धूप रहती है, इसलिए इस सड़क का नाम गर्म सड़क पड़ा है। इस सड़क के कुछ स्थानों पर बौद्ध धर्म के लोगों द्वारा बौद्ध धर्म से संबंधित भित्ति चित्र भी बनाए गए हैं। जाहिर है यह काफी खूबसूरत नजर आता है।
ठंडी सड़क
सुभाष चौक की गर्म सड़क की पहाड़ी की दूसरी ओर ठंडी सड़क है। यहां सूर्य की रोशनी की किरण बहुत देर बाद पहुंचती हैं और शाम को अंधेरा भी जल्दी हो जाता है। सर्दियों के दिनों में इस सड़क पर जमी बर्फ कई दिनों तक नहीं पिघलती।
शॉपिंग भी है खास
डलहौजी आने वाले पर्यटक यहां गर्म कपड़े, चंबा चप्पल, चंबा जरीस (एक तरह की मिठाई), चंबा चुख (लाल व हरी मिर्च से तैयार मिश्रण), आर्टीफिशियल ज्वेलरी, चंबा शॉल, पीतल व तांबे से निर्मित कलाकृतियां खरीद सकते हैं।
तिब्बती मार्केट में करें खरीदारी
गांधी चौक के समीप तिब्बती मार्केट में आप हर तरह के उत्पाद खरीद सकते हैं। इस संकरे, मगर लंबे मार्केट में दोनों ओर कई दुकानें स्थित हैं, जहां पर्यटकों की भीड़ रहती है। रेडीमेड कपड़े, जूते, आर्टिफिशियल ज्वेलरी, लकड़ी के उत्पाद आदि की खरीदारी यहां से की जा सकती है। इसी तरह एक और तिब्बती मार्केट डलहौजी बस स्टैंड के समीप भी है। बस स्टैंड के करीब ही होटल माउंट व्यू परिसर में आप एंटीक शॉप में पीतल व तांबे से बनी विभिन्न प्रकार की प्रतिमाएं खरीद सकते हैं। यहीं पेंटिंग्स व लोकल हैंडमेड चॉकलेट भी उपलब्ध हैं।
चंबियाली धाम का गजब स्वाद
डलहौजी चूंकि पहाड़ी इलाका है, लिहाजा यहां के खास व्यंजन भी पहाड़ी ही हैं। उनमें चंबियाली धाम में शामिल होने वाला व्यंजन मदरा पर्यटकों को खूब पसंद आता है जबकि चंबियाली धाम में बनने वाले अन्य व्यंजन कढ़ी, मकई के लड्डू और खट्टे को भी पर्यटक चाव से खाते हैं। पर्यटकों के लिए विशेष रूप से चंबियाली धाम परोसने के लिए डलहौजी के सुभाष चौक में हरीश महाजन द्वारा चंबियाली रेस्तरां (हिमाचली फूड नाम से) भी शुरू किया गया है। हालांकि यहां चाइनीज फूड कॉर्नर भी काफी संख्या में हैं, जिनमें से बस स्टैंड के समीप तिब्बती युवक येशी के मोमोज, चाउमिन इत्यादि पर्यटकों व स्थानीय लोगों को खूब पसंद आते हैं। पंजपुला में रेहड़ी पर मिलने वाली फ्रूट चाट व न्यूट्री कुलचा का स्वाद भी खूब लुभाता है।
कैसे पहुंचें?
दिल्ली, जम्मू, अमृतसर, पठानकोट व गगल (धर्मशाला) तक हवाई मार्ग और उससे आगे बस या टैक्सी के माध्यम से पहुंचा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए पठानकोट तक ट्रेन से आ सकते हैं। दिल्ली से डलहौजी 564 किमी., चंडीगढ़ से 325 किमी., पठानकोट से 82 किमी. तथा कांगड़ा एयरपोर्ट से 120 किमी. की दूरी पर है।
कहां ठहरें?
ठहरने के लिए सरकारी विश्राम गृह उपलब्ध हैं। पर्यटकों की सुविधा के अच्छे व मध्यम दर्जे के कई होटल व लॉज भी हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार की होम स्टे योजना के तहत डलहौजी शहर व इसके आसपास के क्षेत्रों में अब कई होम स्टे भी खुल चुके हैं।
कब आएं डलहौजी घूमने?
वैसे तो वर्ष भर में कभी भी यहां घूमने आया जा सकता है, परंतु बर्फ देखने की इच्छा हो तो जनवरी में आ सकते हैं। आमतौर पर अप्रैल से दिसंबर तक डलहौजी आना बेहतर है।
इनपुट: डलहौजी से विशाल सेखड़ी, चंबा से सुरेश ठाकुर