Diabetes के खतरे का पहले ही लग सकेगा पता, ICMR ने बनाया देश का पहला डायबिटीज बायोबैंक
आईसीएमआर ने देश का पहला डायबिटीज बायोबैंक बनाया है। इससे डायबिटीज के खतरे का पहले ही पता लग सकेगा। इस बायोबैंक में देशभर से एकत्र डायबिटीज पीडि़तों का डाटा उपलब्ध है। यह बायोबैंक ऐसे समय में स्थापित किया गया है जब देश में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक डायबिटीज के शिकार बन रहे हैं। अनुमान के अनुसार भारत में 11 करोड़ से अधिक लोग इससे पीड़ित हैं।

पीटीआई, नई दिल्ली। अब डायबिटीज के खतरे का पहले ही पता लग सकेगा। इससे इस बीमारी की रोकथाम के साथ ही इसके इलाज में भी मदद मिलेगी। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन (एमडीआरएफ) के सहयोग से एमडीआरएफ चेन्नई में देश का पहला डायबिटीज बायोबैंक स्थापित किया है। यह बायोबैंक ऐसे समय में स्थापित किया गया है जब देश में बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक डायबिटीज के शिकार बन रहे हैं।
11 करोड़ लोग पीड़ित
अनुमान के मुताबिक भारत में 11 करोड़ से अधिक लोग इससे पीड़ित हैं, जबकि 13 करोड़ से ज्यादा लोगों को डायबिटीज होने की आशंका है। डायबिटीज से दिल की बीमारियों का भी खतरा रहता है। एमडीआरएफ के अध्यक्ष डॉ. वी. मोहन ने कहा, "बायोबैंक डायबिटीज के कारणों, भारतीयों को चपेट में लेने वाले विभिन्न प्रकार के डायबिटीज और इससे संबंधित विकारों पर शोध में मदद करेगा। इस बायोबैंक में दो अध्ययनों से संबंधित रक्त के नमूने हैं। इनमें 2008 से 2020 तक कई चरणों में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयोजित आईसीएमआर इंडिया डायबिटीज और रजिस्ट्री आफ पीपल विद डायबिटीज इन इंडिया एट ए यंग एज एट द आनसेट शामिल हैं।"
डॉ. मोहन ने कहा कि युवाओं में टाइप 1, टाइप 2 और गर्भकालीन डायबिटीज जैसे विभिन्न प्रकार के डायबिटीज के रक्त के ढेर सारे नमूने भविष्य के अध्ययन और अनुसंधान के लिए संग्रहीत किए गए हैं। बायोबैंक स्थापित करने की प्रक्रिया करीब दो साल पहले शुरू हुई थी। पिछले सप्ताह इंडियन जर्नल आफ मेडिकल रिसर्च में प्रकाशित लेख में बायोबैंक का विवरण और इसे स्थापित करने के उद्देश्य को विस्तार से बताया गया है। विश्व के विभिन्न बायोबैंक में से सबसे प्रसिद्ध ब्रिटेन का बायोबैंक है। इसमें पांच पांच लाख लोगों की आनुवंशिक, जीवन शैली और स्वास्थ्य संबंधी जानकारी वाला बायोमेडिकल डाटा है।
आसान होगी नए बायोमार्कर की पहचान
बायोबैंक से डायबिटीज को लेकर शोध और नए बायोमार्कर की पहचान कर पाना आसान होगा। यह समय के साथ डायबिटीज के बढ़ने और इसकी जटिलताओं को ट्रैक करने के लिए अध्ययन में भी मदद करेगा, जिससे बेहतर प्रबंधन और रोकथाम रणनीतियां बन सकेंगी। अनुसंधान को बढ़ावा देकर बायोबैंक बीमारी के बारे में हमारी समझ को बेहतर बनाएगा इस बीमारी के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में योगदान दे सकतe है।
देश में 31.5 करोड़ लोग हाई ब्लड प्रेशर से पीडि़त
आईसीएमआर इंडिया डायबिटीज अध्ययन में भारत के हर राज्य के 1.2 लाख लोगों का डाटा है। अध्ययन से पता चला कि देश में हाई ब्लड प्रेशर से 31.5 करोड़ लोग, पेट के मोटापे से 35.1 करोड़ लोग प्रभावित हैं। अध्ययन ने यह भी संकेत दिया कि डायबिटीज का खतरा कम विकसित राज्यों में बढ़ रहा है। 10 प्रतिशत से भी कम भारतीय शारीरिक गतिविधियों द्वारा शरीर को फिट रखने के लिए प्रयास कर रहे हैं। केवल 43.2 प्रतिशत लोगों ने डायबिटीज के बारे में सुना है।
डायबिटीज को लेकर जागरूकता फैलाने पर जोर दिया गया है। "रजिस्ट्री आफ पीपल विद डायबिटीज इन इंडिया एट ए यंग एज एट द आनसेट" अध्ययन में देशभर के आठ क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों (आरसीसी) से जुड़े 205 केंद्रों से 5,546 प्रतिभागी (49.5 प्रतिशत पुरुष, 50.5 प्रतिशत महिलाएं) शामिल हुए। इस अध्ययन में टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज सामान्य तौर पर अधिक पाए गए। यह अध्ययन 2006 में शुरू किया गया था और अभी भी जारी है।
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