हर साल लेनी पड़ सकती है कोरोना की वैक्सीन, आइसीएमआर के महानिदेशक ने दिए संकेत
आइसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने संकेत दिया है कि कोरोना की वैक्सीन आ जाने के बाद भी इस वायरस से पूरी तरह मुक्ति की राह में कुछ अड़चनें हो सकती हैं।
नीलू रंजन, नई दिल्ली। वैक्सीन आ जाने के बाद भी दुनिया को कोरोना से पूरी तरह मुक्ति की राह में कुछ अड़चनें हो सकती हैं। इससे बचने के लिए लोगों को हर साल वैक्सीन लेनी पड़ सकती है। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने इसके स्पष्ट संकेत दिए हैं। इसके लिए उन्होंने फ्लू और इनफ्लूएंजा के वायरस का उदाहरण दिया, जिनसे बचने के लिए हर साल टीका लेना जरूरी होता है।
कोरोना एंटीबॉडी की शरीर में मौजूदगी की समय सीमा के बारे में पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए डॉक्टर भार्गव ने कहा कि अभी इस संबंध में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। चूंकि यह वायरस नया है और इसके आए अभी छह-सात महीने ही हुए हैं, इसलिए इस संबंध में बहुत वैज्ञानिक तथ्य सामने नहीं आए हैं। अलग-अलग वैज्ञानिक अध्ययन में अलग-अलग दावे किए जा रहे हैं।
एक बार संक्रमण हो जाने के बाद छह महीने से एक साल तक शरीर में एंटीबॉडी रहने की बात कही जा रही है। लेकिन स्थिति पूरी तरह साफ होने में अभी समय लगेगा। डॉक्टर भार्गव के अनुसार, श्वसन प्रणाली पर हमला करने वाले दो वायरस के बारे में अभी पूरी जानकारी उपलब्ध है। एक फ्लू है और दूसरा इनफ्लूएंजा है। इन दोनों वायरसों में तेजी से म्युटेशन होता है। इस कारण इसका एंटीबॉडी लंबे समय तक सुरक्षा करने में कारगर नहीं होता है।
अधिक उम्र के लोगों, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है, को इनसे बचने के लिए हर साल वैक्सीन लेना पड़ता है। कोरोना वायरस भी श्वसन प्रणाली पर हमला करता है। यदि कोरोना वायरस का व्यवहार भी फ्लू या इनफ्लूएंजा की तरह रहा, तो इससे बचने के लिए हर साल टीके लेने की जरूरत पड़ सकती है। वैसे कोरोना के कुछ मामलों में दोबारा संक्रमित होने की बात सामने आई है। लेकिन, सामान्य तौर पर कोरोना के वायरस में म्यूटेशन से बड़ा बदलाव देखने को मिला है। जाहिर है अभी दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।