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    हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को SC से 2 सप्ताह तक राहत, मणिपुर में धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने का आरोप

    By AgencyEdited By: Sonu Gupta
    Updated: Tue, 15 Aug 2023 12:23 AM (IST)

    उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आदेश दिया कि हिंसाग्रस्त मणिपुर में हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग के खिलाफ दर्ज दो शिकायतों पर उनके खिलाफ दो सप्ताह तक कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा। जहां एक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने मणिपुर में धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर काम किया ।

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    हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को SC से राहत।

    नई दिल्ली, पीटीआई। उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को आदेश दिया कि हिंसाग्रस्त मणिपुर में हैदराबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर खाम खान सुआन हाउजिंग के खिलाफ दर्ज दो शिकायतों पर उनके खिलाफ दो सप्ताह तक कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा। जहां एक शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उन्होंने मणिपुर में धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाने के इरादे से जानबूझकर काम किया, वहीं दूसरी शिकायत राज्य के मतदाता के रूप में नामांकन में कथित गलत कृत्य के संबंध में है।

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    दो सप्ताह तक नहीं उठाया जाएगा कोई दंडात्मक कदम

    प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उचित उपाय के लिए सक्षम अदालत तक पहुंचने में हाउजिंग की सुविधा के लिए कहा कि आज से दो सप्ताह तक, उनके खिलाफ कोई दंडात्मक कदम नहीं उठाया जाएगा। 

    दो मामले किए गए हैं दायर

    पीठ में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे। पीठ इन शिकायतों में गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग करने वाली प्रोफेसर की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाउजिंग की ओर से पेश वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कहा कि उनके खिलाफ दो मामले दायर किए गए हैं और इंफाल की एक मजिस्ट्रेट अदालत ने उनमें से एक में उन्हें समन भी जारी किया है।

    मणिपुर की स्थिति गंभीर

    मणिपुर में स्थिति बहुत गंभीर होने की ओर ध्यान दिलाते हुए ग्रोवर ने कहा कि शिकायतों में से एक समाचार पोर्टल को दिए गए साक्षात्कार से संबंधित है। उन्होंने कहा कि प्रोफेसर ने कोई भाषण नहीं दिया था और उन्हें सुरक्षा की जरूरत है ताकि वह इन शिकायतों में उचित उपाय ढूंढ सकें।

    मणिपुर की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि मजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश को संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में सीधे शीर्ष अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। संविधान का अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों को लागू करने के उपायों से संबंधित है और 32 (1) कहता है कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को लागू करने के लिए उचित कार्यवाही द्वारा शीर्ष अदालत में जाने का अधिकार की गारंटी है।

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