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    कैसी है आपकी 'मेंटल इम्यूनिटी’ और इसे कैसे बढ़ा सकते हैं आप? पढ़े एक्सपर्ट की राय

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Thu, 11 Jun 2020 03:48 PM (IST)

    Mental Immunity नकारात्मक विचारों को अनदेखा करना नहीं उन्हें अपने मन की सहज यात्रा का हिस्सा मानना उन्हें संभालना और उनके साथ चलते हुए उचित कदम बढ़ाना है।

    कैसी है आपकी 'मेंटल इम्यूनिटी’ और इसे कैसे बढ़ा सकते हैं आप? पढ़े एक्सपर्ट की राय

    सीमा झा। Mental Immunity हर दिन नया है और हर पल में छिपी है एक नई दास्तां। इस बात को केन्या के फुटबॉलर रेंडी जुआन मूलर बखूबी समझ रहे हैं। जब भारत में लॉकडाउन शुरू हुआ, उस वक्त वे मुंबई एयरपोर्ट पर थे और उनकी जिंदगी वहीं थम गई। उड़ान बंद होने के कारण वे घर नहीं जा सके। इसके बाद वह यहीं फंस गए। लोग मदद कर रहे हैं और चल रही है उनकी जीवनचर्या। एक दिन किसी ने उन्हें लामा थुबटन येशे की किताब 'बी योर ऑन थेरेपिस्ट’ भेंट की, जिसे वह अपनी खास मदद मानते हैं। खुद को योद्धा मानने वाले मूलर रोजाना यात्रियों को घर भेजने का रेस्क्यू प्लान देखते रहते हैं, इस आशा के साथ कि एक दिन सब सामान्य होगा और वे भी अपने घर लौट पाएंगे।

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    यदि मूलर जैसी घटना आपके साथ होती हो क्या होती आपकी प्रतिक्रिया? इस बारे में प्रतिक्रिया और पूर्वानुमान बहुत बुरा अथवा अतिशत सकारात्मक दोनों हो सकता है। हालांकि अधिकतर लोग नकारात्मक ख्यालों में डूब सकते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, पूर्वानुमान कभी सच नहीं हो सकता। इस बारे में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) राकेश पांडेय कहते हैं, 'जैसे लोग शुरुआती दौर में कोरोना से उबरने के लिए तमाम तर्क दे रहे थे, तमाम उपाय भी किए। पर जब संकट बढऩे लगा है तो उस प्रत्याशा पर चोट पहुंच रही है और कुछ तनाव में हैं पर सबके साथ ऐसा नहीं हैं।’ डॉक्टर पांडेय के अनुसार, पूर्वानुमान सही नहीं होने से कुछ लोगों में भारी तनाव देखा जा रहा है। पर कई लोग समान स्थिति में रहकर भी संयत हैं। यही होती है 'मेंटल इम्यूनिटी’ यानी हमारी मानसिक प्रतिरोधक क्षमता, जो संकट में ढाल बनकर खड़ी रहती है।

    कहीं अनदेखा न रह जाए मन : बेहतर खानपान को लेकर सतर्क रहना अच्छा है, पर तमाम तरह के असुरक्षा के भावों के साथ रहते हुए जो चीज आपको आगे बढऩे के लिए चाहिए वह है 'मेंटल इम्यूनिटी’। यथार्थ हॉस्‍पिटल नोएडा के न्यूरोसाइंस विभाग के निदेशक और वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डॉक्टर पंकज कुमार झा के मुताबिक, 'मेंटल इम्यूनिटी’ पर ध्यान दिए बिना आप शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर करने के उपाय में लगे हैं तो जरूरी नहीं कि इससे बीमारियां टल जाएं।’ डॉक्टर पंकज के मुताबिक, आपकी उलझी सोच या नकारात्मक विचारों में शरीर के इम्यून सिस्टम को नष्ट करने की तीव्र क्षमता होती है। यह खास हार्मोन की मदद से उसे बेहद कमजोर कर सकता है। इस बारे में वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर अरुणा ब्रूटा कहती हैं, ‘लोग अपने ही मन से डरते हैं। इससे पता चलता है कि वे खुद को लेकर कितने संवेदनशील और तनाव में हैं पर बेहतरी की इच्छा है तो देर नहीं हुई। 'मेंटल इम्यूनिटी’ अच्छा कर लें तो जाहिर है इसका सकारात्‍मक प्रभाव सिर्फ शरीर पर ही नहीं, जिंदगी पर भी आप देख सकेंगे।’

    'एंटीबॉडी’ मन की! : संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों को देखकर चिंता बढ़ जाती है या इसे सच मानकर स्वीकार करते हैं? बुरी खबरें दिन भर परेशान रखती हैं या आप जो अभी कर रहे हैं, उसे बेहतर करने की दिशा में जुटे हुए हैं? ये वे सवाल हैं, जो अच्छी या बुरी 'मेंटल इम्यूनिटी’ का संकेत है। बुरी परिस्थितियों से डील करने के जो तमाम संसाधन होते हैं वे शरीर की एंटीबॉडी की तर्ज पर मन की 'एंटीबॉडी’ होते हैं यानी वे संसाधन जो नकारात्मक विचारों रूपी सूक्ष्मजीवियों से मन की रक्षा करते हैं। इस संदर्भ में डॉक्टर राकेश पांडेय बताते हैं, 'हंगरी के पॉजिटिव साइकोलॉजी के प्रोफेसर एटिलिया ओलाह ने ऐसे 16 संसाधनों के बारे में बताया है, जो मन की एंटीबॉडी हो सकते हैं। ये संसाधन जिस मात्रा में जिनके पास होते हैं, उसी मात्रा में वे संकट का बेहतरी से सामना कर पाते हैं।’

    तब बन पाएंगे बाधाओं से बड़े : दिल्ली की वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अरुणा ब्रूटा ने बताया कि लोगों ने खुशी को भौतिक चीजों से जोड़ दिया और खुद का ख्याल रखना भूल गए। अब मुश्किल आई है तो वे भौतिक चीजें काम नहीं आ रहीं। काम आ रही है तो बस 'मेंटल इम्यूनिटी’। किसी भी तरह की मुश्किल में बस इसी बात की परीक्षा होती है कि आप कितने सहनशील हैं, कितना सब्र रख पाते हैं, औरों की भी खुशियां मायने रखती है या नहीं। पर लोग दिखावा, जलन या दूसरों की सहूलियत को कम करने या अपनी ज्यादा करने की होड़ में पड़कर अपनी ही 'मेंटल इम्यूनिटी’ को कमजोर कर लेते हैं। इसे मजबूत बना लें, तो यह तय है बाधाओं से खुद को बड़ा बना लेंगे आप।

    जो मुश्‍किलों में मुस्कुरा रहे हैं : बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) राकेश पांडेय ने बताया कि हाल ही में कोरोना के कारण होने वाली चिंता या अवसाद को लेकर अध्ययन हुआ। पता चला कि कोरोना के कारण 16-17 फीसद लोग अवसाद में हैं और बाकी लोग परिस्थिति के साथ सामंजस्य बनाने में सफल रहे हैं। ध्यान दें, सबके लिए वही हॉटस्पॉट या कंटेनमेंट जोन आदि हैं पर सब निराश नहीं हैं। पर हममें से ज्यादातर यह नहीं देख पाते। यही हमारी चिंता को बढ़ा देता है। नजरिया बदलने की बात है। ऐसा करें तो आप अपनी मेंटल इम्यूनिटी बढ़ाने की दिशा में काम कर पाएंगे, कुछ अभ्यास कर सकेंगे। हां, यदि आप खुद प्रयास नहीं कर पा रहे हैं, तो काउंसलर या इंटरनेट की मदद से सीख सकते हैं।

    यूं धीमे-धीमे बढ़ती जाएगी 'मेंटल इम्यूनिटी’

    • 'मैं चिंताओं से जूझ रहा हूं और मैं इसका आदी हूं, मैं ऐसा ही व्यक्ति हूं’ जैसी सोच सही हो, जरूरी नहीं। खुद को लेकर कोई खास विचार बनाकर आप सकारात्मक बदलाव की दिशा में नहीं बढ़ सकते। इसलिए पहले ऐसी मनोदशा में बदलाव का प्रयास करें।
    • किसी भी तरह के असुरक्षा के भाव, डर से उबरने की प्रक्रिया के बारे में न सोचें। इससे हताशा बढ़ेगी, आगे नहीं बढ़ पाएंगे। बस उन चीजों पर एकाग्र रहें जो इस प्रक्रिया या विचारों से बाहर निकलने में मदद करे। इसलिए खुद को सक्रिय रखें, छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर काम करें।
    • वर्तमान में रहने की कोशिश करें। माइंडफुलनेस का अभ्यास यानी मन को वर्तमान में केंद्रित कर पाने का अभ्यास इसमें आपकी खास मदद करेगा। इससे 'आप खतरे में हैं’ या 'सामर्थ्‍य नहीं है’, 'लोग प्यार नहीं करते’ आदि विचारों से दूर रह सकेंगे और इस तरह धीरे-धीरे बढ़ सकती है आपकी मेंटल इम्यूनिटी।

    जैसे जुकाम या बुखार आपकी सेहत ही नहीं और भी लोगों को संक्रमित कर सकता है। वैसे ही, आपकी सोच, आपके नकारात्‍मक विचार उन्हें मुश्किल में डाल सकते हैं, जिनकी 'मेंटल इम्यूनिटी’ कमजोर हैं,।

    'मेंटल इम्यूनिटी’ नकारात्मक विचारों को अनदेखा करना नहीं, उन्हें अपने मन की सहज यात्रा का हिस्सा मानना, उन्हें संभालना और उनके साथ चलते हुए उचित कदम बढ़ाना है।

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