कैसा हो सपनों का शहर, रैंकिंग में 118वें व 119वें पायदान पर फिसले दिल्ली और मुंबई
भारी आबादी का बोझ ढो रहे शहर बिजली पानी आवागमन पर्यावरण खुली जगह और हरियाली...तमाम मानकों पर बदहाल हो चले हैं। आइये जानतें है एक सपनों का शहर कैसा होना चाहिए...
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। ज्यादा पुरानी बात नहीं है... जब लोग शहर देखने-घूमने आया करते थे। शहर उन्हें लालायित करते थे। शहरों की गगनचुंबी इमारतें, यहां की चमकदार सड़कें, उस पर दौड़ती-भागती गाड़ियां... रहन-सहन... रात में जगमगाती लाइटें। लेकिन अब लोग शहरों से दूर भागने लगे हैं। वजह साफ है कि शहरों में रहने लायक, जीवन जीने लायक हालात नहीं रहे। अपनी बुनियादी सुविधाओं के मुकाबले दस-दस गुना आबादी का बोझ ढो रहे ये शहर चरमरा गए हैं। बिजली, पानी, आवागमन, पर्यावरण, खुली जगह और हरियाली...तमाम मानकों पर शहर बदहाल हो चले हैं। आइये जानतें है एक सपनों का शहर कैसा होना चाहिए...
स्मार्ट सिटी योजना में ये मानक
आमतौर पर रोजगार के चलते लोग शहरों का रुख करते हैं। खुशहाल और आरामदायक जीवनयापन के लिए उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले घर और कम लागत की भौतिक एवं पानी, साफ-सफाई, बिजली, स्वच्छ हवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मनोरंजन जैसी सामाजिक बुनियादी सुविधाओं की जरूरत होती है। शहरों में उद्योग भी होते हैं जो लोगों को अर्थव्यवस्था से जोड़ते हैं और रोजगार तथा उत्पादन में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इन तमाम मानकों को देश में प्रस्तावित स्मार्ट सिटी विकसित करने वाली योजना में शामिल किया गया है।
स्मार्ट सिटी के तीन आयाम
1. प्रतिस्पर्धा: इसका मायने शहर की अधिक से अधिक रोजगार सृजन की क्षमता और निवेश व लोगों को आकर्षित करने की क्षमता से है। ऐसे शहर द्वारा मुहैया कराए जाने वाले कम बाधायुक्त कारोबार की दशाएं और गुणवत्तापरक जीवन इसकी प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करती हैं।
2. टिकाऊपन: इसमें सामाजिक, पर्यावरण और वित्तीय परिस्थितियां शामिल होती हैं।
3. गुणवत्तापरक जीवन: इसमें सुरक्षा और संरक्षा, समावेशीपन, मनोरंजन, सुलभ जनसेवाएं, गुणवत्तापरक जीवन और प्रशासन में भागीदारी के मौके शामिल होते हैं।
इन सुविधाओं पर दिया जाए ध्यान
न्यूनतम कचरा उत्पादन: कचरे पर लगाम लगाने को प्रोत्साहित करने की जरूरत होती है। किसी भी संरचना की कीमत इस आधार पर तय होनी चाहिए कि उसकी सेवाएं कितनी सस्ती और कचरे को हतोत्साहित करने वाली हैं। वर्षा जल भंडारण को बढ़ावा देने से कचरे को न्यूनतम करने और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में अहम कामयाबी मिल सकती है। सीवरेज के पानी की रिसाइकिलिंग और स्थानीय एसटीपी आधारित जलापूर्ति प्रणाली से कचरा तो कम होगा ही जल भी संरक्षित किया जा सकेगा।
वित्तीय टिकाऊपन: सभी सेवाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए जिससे गुणवत्ता वाली सुविधाएं देने के दौरान धन बाधा न खड़ी हो।
ऊर्जा कुशलता: ऊर्जा की चिंता स्मार्ट सिटी का अहम अंग है। यातायात प्रणाली, लाइटिंग और अन्य सभी ऊर्जा की जरूरत वाली सुविधाओं में कुशल ऊर्जा इस्तेमाल की प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
मांग प्रबंधन: आपूर्ति को बढ़ाकर मांग को पूरी करने के साथ स्मार्ट सिटी मांग प्रबंधन पर खास जोर देती हैं। इसके लिए बचत को प्रोत्साहित जबकि अत्यधिक खपत को हतोत्साहित किया जाता है।
सूचनाओं की पहुंच में सुधार: शहर से जुड़ी किसी भी सेवा से संबंधित समस्त सूचनाएं, आंकड़े, तथ्य आदि सभी को सुलभ हों। किसी भी विभाग की कोई घोषणा, नियम और कानून-कायदों के जानकारी सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए।
वित्तीय टिकाऊपन: सभी सेवाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए जिससे गुणवत्ता वाली सुविधाएं देने के दौरान धन बाधा न खड़ी हो।
ऊर्जा कुशलता: ऊर्जा की चिंता स्मार्ट सिटी का अहम अंग है। यातायात प्रणाली, लाइटिंग और अन्य सभी ऊर्जा की जरूरत वाली सुविधाओं में कुशल ऊर्जा इस्तेमाल की प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
स्वच्छ तकनीक का इस्तेमाल: विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। लिहाजा स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम बने हुए हैं। स्वच्छ तकनीक से इस प्रवृत्ति को पीछे धकेला जा सकता है।
निजी क्षेत्र की भागीदारी: नवोन्मेष के लिए पीपीपी सरकार को यह सहूलियत देती है कि वह निजी क्षेत्र की क्षमता का इस्तेमाल कर सके।
आइसीटी का इस्तेमाल: आइसीटी का व्यापक इस्तेमाल आवश्यक है क्योंकि इसी से सूचनाओं का आदान प्रदान और तेज संचार संभव है। अधिकांश सेवाएं आइसीटी आश्रित होनी चाहिए। इससे यात्रा करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। लोग घर बैठे सुविधाएं हासिल कर सकेंगे। इससे जाम, प्रदूषण, ऊर्जा इस्तेमाल सब कम होगा।
जन भागीदारी: प्रदर्शन में सुधार के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे हर आदमी प्रत्येक सेवा का मूल्यांकन कर सके।
...तभी हासिल होगा पांच लाख करोड़ डॉलर की इकोनॉमी का लक्ष्य
इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआइयू) की रहने लायक दुनिया के शहरों की रैंकिंग जारी की है। इस सालाना रैंकिंग में दुनिया के 140 शहरों को पांच मानकों (स्थिरता, स्वास्थ्य सेवा, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा और बुनियादी ढ़ाचा ) के आधार पर आंका गया। देश के दो सबसे आधुनिक और बड़े शहरों दिल्ली और मुंबई को इसमें जगह मिली है लेकिन अफसोस ये दोनों शहर क्रमश: 118वें और 119वें पायदान पर हैं। ऐसे में यह हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है कि आजादी के सात दशक बाद भी हम रहने लायक शहर क्यों नहीं बना सके? शनिवार को मुंबई में मेट्रो भवन के उद्घाटन के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने भी कहा है कि हम तभी पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकेंगे जब हमारे शहर 21वीं सदी सरीखे होंगे।
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