DATA STORY : कोरोना लॉकडाउन के पहले और बाद में इस तरह बदला दिल्ली के ट्रैफिक का मिजाज
लॉकडाउन के दौरान जहां वाहनों की गति 46 किलोमीटर प्रति घंटा थी वह अब घटकर 29 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई है। लॉकडाउन के पहले वाहनों की औसत गति 24 किलोमीटर प्रति घंटा थी। कहा जा सकता है लॉकडाउन और उससे पहले के मुकाबले में स्थिति अब बदतर हुई है।
नई दिल्ली, जेएनएन। दिल्ली में लॉकडाउन के बाद ट्रैफिक की स्थिति फिर बिगड़ने लगी है। इसका सीधा असर वाहनों की गति पर पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान जहां वाहनों की गति 46 किलोमीटर प्रति घंटा थी, वह अब घटकर 29 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई है। लॉकडाउन के पहले वाहनों की औसत गति 24 किलोमीटर प्रति घंटा थी। ऐसे में यह कहा जा सकता है लॉकडाउन और उससे पहले के मुकाबले में स्थिति अब बदतर हुई है। यह खुलासा सेंटर फॉर साइंस एंड इंवायरनमेंट की रिपोर्ट में हुआ है।
रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन में वाहनों की पीक आवर में स्पीड 44 किलोमीटर प्रति घंटा थी। लॉकडाउन के बाद पीकऑवर में यह गति घटकर 27 किलोमीटर प्रति घंटा रह गई, जबकि लॉकडाउन के पहले यह 23 किलोमीटर प्रति घंटा थी।
यह अध्ययन एमजी रोड, एनएच-44, सरदार पटेल मार्ग, आउटर रिंग रोड, डॉ. केबी हेडगेवार मार्ग, श्री अरबिंदो मार्ग, एनएच-9, एमबी रोड, जीटी करनाल रोड, लाल बहादुर शास्त्री मार्ग, द्वारका मार्ग व नजफगढ़ मार्ग पर किया गया। रिपोर्ट में सामने आया कि लॉकडाउन के दौरान ट्रांजिट स्टेशन पर आवागमन में 87 फीसद की कमी आई। ग्रॉसरी स्टोर और फॉर्मेसी की दुकानों में जाने में 70 प्रतिशत की कमी हुई। लॉकडाउन के बाद नवंबर आते-आते ग्रॉसरी और फॉर्मेसी की दुकानों में गतिविधियां सामान्य हो गईं। इस दौरान प्री-लॉकडाउन की तुलना में सिर्फ 15 फीसद की कमी आई।
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक बदलाव चार बजे के बाद आया। यह समय लॉकडाउन और लॉकडाउन के बाद भी सबसे अधिक बदलाव वाला था। दोपहर चार बजे लॉकडाउन के दौरान ट्रैफिक में 116 फीसद स्पीड की बढ़ोतरी हुई। लॉकडाउन के बाद इस गति में 42 फीसद की कमी आई।
यह रिपोर्ट खरीदारी, खेलकूद, पार्क, दवा लेना, कार्यस्थल व आवास के संदर्भ में गूगल मोबिलिटी रिपोर्ट डाटा की मदद से तैयार की गई है। इस रिपोर्ट में ट्रैफिक की गति का भी विश्लेषण किया गया है।
यह थी वजह
लॉकडाउन के बाद दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की मांग और आपूर्ति में संतुलन नहीं था। यही नहीं कोरोना की वजह से फिजिकल डिस्टैंसिंग का पालन करने की वजह से भी मांग और आपूर्ति में समन्वय स्थापित करने में दिक्कत आ रही थी। वहीं फिजिकल डिस्टैंसिंग के कारण लोगों ने अपने वाहन को तरजीह अधिक दी। हालिया मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, लॉकडाउन से पहले मेट्रो की राइडरशिप 55 से 60 लाख थी, जो बाद में घटकर करीब 10 लाख रह गई। इसके अलावा, डीटीसी बसों में मार्च के बाद सफर करने वालों की तादाद में 59 प्रतिशत की कमी आई है।
ट्रैफिक बढ़ने से यह घटा
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रैफिक बढ़ने से दिल्ली अपने स्वच्छ हवा के लक्ष्य को नहीं पा सकेगी। दिल्ली मास्टर प्लान 2020-21 के अनुसार, 80 फीसद पब्लिक ट्रांसपोर्ट राइडरशिप का लक्ष्य था, जो कि 2020 में हासिल नहीं हुआ। आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली को करीब दस से पंद्रह हजार बसों की जरूरत है, पर आपदा के दौरान फ्लीट में लगातार कमी सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वायरनमेंट की रिपोर्ट में यह सिफारिश की गई है कि केंद्र और राज्य सरकार बस ट्रांसपोर्ट सिस्टम को सुधारने के लिए बेल आउट पैकेज दे। वहीं, दिल्ली की परिवहन व्यवस्था और पार्किंग व्यवस्था को अधिक चाक-चौबंद करने की आवश्यकता है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक (रिसर्च और एडवोकेसी) अनुमिता रॉय चौधरी ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन, टहलने और साइक्लिंग के विकल्पों में बदलाव तथा पार्किंग प्रबंधन क्षेत्र योजना को शहर भर में लागू करने जैसे वाहनों की संख्या में कमी लाने से जुड़े उपाय व्यापक स्तर पर लागू करने की खासी गुंजाइश है और अधिसूचित पार्किंग नियम अभी तक सीमित व अपर्याप्त रहे हैं। दिल्ली में हुए अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि शहर के कुल प्रदूषण में वाहन लगभग 40 प्रतिशत योगदान करते हैं।