नोटबंदी के बाद होम लोन समेत कई कर्जों की दरें होंगी कम!
सरकार चाहती है कि अब सस्ते फंड का फायदा बैंक कर्ज लेने वाले ग्राहकों को दे ताकि नोट बंदी से अर्थव्यवस्था में आई मंदी के बादल को तेजी से दूर किया जा सके।

नई दिल्ली, (जागरण ब्यूरो)। अपनी ही नकदी निकालने के लिए बैंकों व एटीएम के सामने लाइन में लगे आम जनता के घाव पर सरकार सस्ते कर्ज का मरहम लगाने पर विचार कर रही है। पिछले दो वर्षो से कर्ज को सस्ता करने में काफी आनाकानी करने वाले बैंकों की अब नहीं सुनी जाएगी।
नोट बंदी के बाद 12 दिनों के भीतर ही सभी बैंकों की जमा राशियों में कई गुणा की बढ़ोतरी हो चुकी है। सरकार चाहती है कि अब सस्ते फंड का फायदा बैंक कर्ज लेने वाले ग्राहकों को दे ताकि नोट बंदी से अर्थव्यवस्था में आई मंदी के बादल को तेजी से दूर किया जा सके। सरकारी बैंकों को साफ तौर पर कह दिया गया है कि होम लोन समेत तमाम कर्ज की दरों को सस्ता करने को वरीयता देना होगी।
वित्त मंत्रालय के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि फंड की लागत ज्यादा होने के आधार पर कर्ज को सस्ता करने से बैंक अभी तक बचते रहे हैं। लेकिन अब उनका यह बहाना नहीं चलेगा। नोट बंदी के बाद बैंकों के पास 5.11 लाख करोड़ रुपये की राशि जमा हुई है जिस पर बैंकों को अधिकतम सिर्फ चार फीसद का ब्याज देना होगा। इस पर बैंकों की लागत अगर तीन फीसद भी जोड़ दिया जाए तो साफ है कि मौजूदा कर्ज की दरें (औसतन 9.50 फीसद) काफी ज्यादा है। बैंकिंग का मोटा हिसाब किताब बताता है कि कर्ज की दरों को घटाने की काफी गुंजाइश है।
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कर्ज की दरों को सस्ता करने की सरकार या आरबीआइ के अनुरोध को अभी तक बैंक ताक पर रखते रहे हैं। आरबीआइ के आंकड़े बताते हैं कि जनवरी, 2015 से अक्टूबर, 2017 के बीच रेपो रेट (ब्याज दरों को तय करने का आधार) में 1.75 फीसद की कटौती की गई है लेकिन इस दौरान कर्ज की दरों में बैंकों ने सिर्फ 0.60 फीसद कटौती का फायदा ही ग्राहकों को दिया है। इस पर वित्त मंत्रालय व आरबीआइ अलग-अलग मौकों पर अपनी नाराजगी जता चुके हैं।
वित्त मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सिर्फ सस्ती दरों पर फंड मिलने की वजह से ही नहीं बल्कि जिस तेजी से कर आधार में बढ़ोतरी होगी वह भी भारत में सस्ते कर्ज का माहौल बनाने में काफी मददगार साबित होने वाला है। उम्मीद इस बात की है कि इस बार कर्जे की दरें लंबे समय तक कम रहेंगी। अच्छी बात यह है कि जनता को इसके लिए ज्यादा समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। अगले महीने के पहले हफ्ते में ही मौद्रिक नीति तय करने वाली समिति वार्षिक मौद्रिक नीति की समीक्षा करेगी।
बताते चले कि भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में कर्ज की दरों को पूर्व राजग सरकार के कार्यकाल की दरों के स्तर पर ले जाने का वादा किया गया था। कर्ज की दरों को कम किये बगैर राजग सरकार अपनी महत्वाकांक्षी 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को भी परवान चढ़ाने में दिक्कत महसूस कर रही है। वैसे देश के प्रमुख बैंकों ने पिछले एक हफ्ते में अपनी सावधि जमा दरों में कटौती कर इस बात के संकेत दिए हैं कि वह भी सस्ता कर्ज देने को तैयार हैं।

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