Power of Attorney: बीमार व्यक्ति की पावर आफ अटार्नी रखने वाले के फैसले को अदालत ने ठहराया सही, जानें- क्या है पूरा मामला
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि बीमार व्यक्ति अगर किसी को पावर आफ अटार्नी का अधिकार देता है तो वह जो भी फैसला लेगा उसे कानूनी रूप से मान्यता मिलेगी। इसी के साथ ही हाई कोर्ट ने पूर्व में निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद किया।

राधाकिशन शर्मा, बिलासपुर। जमीन संबंधी विवाद को लेकर दायर याचिका की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि बीमार व्यक्ति अगर किसी को पावर आफ अटार्नी का अधिकार देता है तो वह जो भी फैसला लेगा, उसे कानूनी रूप से मान्यता मिलेगी। इसी के साथ ही हाई कोर्ट ने पूर्व में निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को रद कर करते हुए प्रकरण को पुन: सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेजने का निर्देश रजिस्ट्रार जनरल को दिया है।
जानें- क्या है पूरा मामला
मामला छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्राम कंडोला का है। हेमराज और हरिहर रिश्ते में सगे भाई हैं। हेमराज ने दो शादियां की थीं। पहली पत्नी की चार बेटियां हैं। दूसरी पत्नी ननकीदाई संतानहीन है। हेमराज और हरिहर की गांव में 4.634 हेक्टेयर पैतृक जमीन है। हेमराज की मौत के बाद परिवारवालों ने इस जमीन का आपस में मौखिक बंटवारा कर लिया। इसमें ननकीदाई का भी हिस्सा है। इस बीच हरिहर लकवाग्रस्त हो गए। इस पर उन्होंने 23 अप्रैल, 2009 को अपने बेटे विजय लाल को पावर आफ अटार्नी का अधिकार दे दिया। इसके बाद विजय लाल पुश्तैनी जमीन की खरीद-बिक्री करने लगा। इस पर ननकीदाई ने आपत्ति जताते हुए निचली अदालत में प्रकरण दर्ज करा दिया। वहां ननकीदाई के पक्ष में फैसला सुनाते हुए पावर आफ अटार्नी को रद कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने क्या कहा
निचली अदालत के आदेश के बाद भी विजय लाल मालिकाना हक नहीं छोड़ रहा था। इस पर ननकीदाई हाई कोर्ट पहुंची। मामले की सुनवाई में जस्टिस एनके व्यास की सिंगल बेंच ने कहा कि जिस समय हरिहर ने विजय लाल को पावर आफ अटार्नी का अधिकार दिया, उस समय याचिकाकर्ता को पक्षकार नहीं बनाया गया था। लिहाजा याचिकाकर्ताद्वारा दायर लिखित बयान कोई मायने नहीं रखता। उसकी आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। हाई कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा दिए गए फैसले को भी रद कर दिया।

कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।