वसीयत की संपत्ति पर हिंदू विधवाओं का पूरा अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विधवाओं के संपत्ति पर अधिकार को लेकर एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर हिंदू विधवाओं का भरण-पोषण का पूर्व अधिकार बच ...और पढ़ें

माला दीक्षित, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू विधवाओं के संपत्ति पर अधिकार को लेकर एक अहम फैसला दिया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर हिंदू विधवाओं का भरण-पोषण का पूर्व अधिकार बचा हुआ है, तो चाहे वसीयत में उसे संपत्ति पर सीमित अधिकार क्यों न मिला हो, वह वसीयत में मिली संपत्ति की पूर्ण मालकिन होगी। उस संपत्ति को वह किसी और को दे भी सकती है।
हिंदू विधवाओं के संपत्ति पर अधिकार के बारे में यह महत्वपूर्ण फैसला न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल और सी नागप्पन की पीठ ने सुनाया है। कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 14 (1) को पुन: स्पष्ट करते हुए संपत्ति पर विधवाओं का सीमित हक बताने वाली याचिकाएं खारिज कर दीं। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि भले ही वसीयत में इस बात का जिक्र न हो कि विधवा को संपत्ति में हक उसके भरण-पोषण के लिए दिया जा रहा है, फिर भी अगर उसका भरण-पोषण का हक बनता है, तो वसीयत में संपत्ति पर मिला सीमित अधिकार पूर्ण अधिकार में बदल जाएगा।
कोर्ट ने कहा है कि हिंदू कानून में पत्नी का भरण-पोषण करना पति का निजी दायित्व है। अगर पति की कोई संपत्ति है, तो पत्नी को उस संपत्ति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है। हिन्दू विधवा को मिला भरण-पोषण का अधिकार महज औपचारिकता भर नहीं है। यह स्वीकृति, मेहरबानी या मुफ्त में दिया गया नहीं, बल्कि उनका महत्वपूर्ण अधिकार है। विधवा भरण-पोषण पाने के लिए अदालत जा सकती है। अदालत यदि उसके पक्ष में फैसला सुनाता है, तो वह संपत्ति पर अधिकार प्राप्त कर सकती है। हिन्दू विवाहिता पृथक निवास और भरण-पोषण अधिकार अधिनियम 1946 के जरिये इस अधिकार को विधायी पहचान दी गई है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विधवा का भरण-पोषण का अधिकार पूर्व निर्धारित अधिकार है।
क्या है मामला
आंध्र प्रदेश के वेंकट सुब्बाराव की वसीयत के मामले में अदालत ने यह फैसला सुनाया है। सुब्बाराव की तीन पत्नियां थीं। इनमें सिर्फ दूसरी पत्नी को दो पुत्र और एक पुत्री थी। दो पत्नियों की मृत्यु के बाद वेंकट ने 1920 में अपनी संपत्ति की वसीयत की। वसीयत के समय तीसरी पत्नी वीराघम्मा जीवित थी। उसको कोई संतान नहीं थी। वेंकट ने वीराघम्मा को भी एक घर का हक दिया। वसीयत में कहा कि वह जीवनभर उस घर में रहेगी। वीराघम्मा के बाद संपत्ति छोटे पुत्र पी नरसिम्हा के पास चली जाएगी। वीराघम्मा ने 1971 में वह संपत्ति पेंटापति सुब्बाराव के हक में वसीयत कर दी। यहीं से विवाद शुरू हुआ। जे. पर्धा सारथी ने संपत्ति पर हक के लिए मुकदमा किया। उसका कहना था कि उसने पी. नरसिम्हा से संपत्ति खरीदी है। वीराघम्मा की मृत्यु के बाद नरसिम्हा का संपत्ति पर वापस अधिकार हो गया था। ट्रायल कोर्ट ने सारथी के हक में फैसला दिया और कहा कि वीराघम्मा संपत्ति की पूर्ण मालकिन नहीं हो सकती। उसे वसीयत में सीमित हक मिला है। हाई कोर्ट में अपील हुई। हाई कोर्ट ने फैसला पलट दिया और कहा कि वीराघम्मा संपत्ति की पूर्ण मालकिन है और वह इसकी वसीयत कर सकती है। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट आया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी संपत्ति पर वीराघम्मा के अधिकार पर मुहर लगा दी।

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