नदियां ले गईं घर-धन-पशुधन और पुल, एक्सपर्ट की चेतावनी- नहीं चेते तो आएगी और बड़ी तबाही
हिमालय की नदियों ने अपनी शक्ति का अहसास कराया है। वर्षा के दबाव ने नदियों को गुस्सैल बना दिया है। बाढ़ लाना नदियों का स्वभाव है। जब नदियां पूर्ण वेग से बहती हैं तो पानी का फैलाव करती हैं। नदी किनारे अतिक्रमण के कारण नदी का बहाव क्षेत्र सिकुड़ गया है।

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। हिमालय की नदियों ने पुनः अपनी ताकत का अहसास पूरे देश को कराया है। नदियों के रौद्ररूप में सब कुछ बहता दिखा है। नदियों का ऐसा उफान शायद ही नई पीढ़ी ने पहले देखा होगा। संपूर्ण हिमालय के संभरण क्षेत्र अर्थात उत्तराखंड, हिमाचल तथा जम्मू कश्मीर में वर्षा के दबाव ने वर्षों से सीमित प्रवाह के साथ बहती रही नदियों के प्रवाह को मानों गुस्सैल बना दिया है। घनी बारिश के बल-बूते नदियों ने अपने प्रचंड़ रूप को पा लिया और फिर जो भी उनकी जद में आया, बह गया।
फिर वह चाहे किसी का घरौंदा हो, पुल हों, सराय या फिर विश्राम गृह। पंजाब में तो भयंकर तबाही हुई है। पहाड़ी क्षेत्रों में करीब-करीब सभी धार्मिक यात्राओं में इस जल प्रलय से जन और धन दोनों की हानि हुई है। फसलें चौपट हो चुकी हैं। पर्यटन स्थलों के आशियाने नदी के सैलाब में विलीन हो गए हैं तथा सड़कें जगह-जगह से कट चुकी हैं।
वर्तमान में नदियों के विकराल रूप से पूरा देश सहमा हुआ है। मौसम परिवर्तन के प्रभाव से कम समय में अधिक वर्षा का चलन प्रतिवर्ष बढ़ रहा है। अब पहले जैसा चौमासा या झड़ नहीं लगता है। पहले जब वर्षा होती थी तो कुछ दूरी पर मौजूद तालाब, जौहड़ व झीलों में बरसात का पानी एकत्र होता था। जब वे भर जाते थे तो पानी गांव से बाहर नालों और नदियों में जाता था।
विगत पांच दशकों में गांवों से लेकर कस्बों व शहरों तक बड़ी संख्या में तालाबों व झीलों को समाप्त कर दिया गया है। अब जो भी पानी बरसता है सीधे नदियों की ओर बहता है। इससे भूजल भी रिचार्ज नहीं हो पाता है। कम समय में अधिक वर्षा की कुछ घटनाओं को अगर छोड़ दें और ईमानदारी से आंकलन करें तो पाएंगे कि नदियों के उफान में कुछ भी असामान्य नहीं है।
बाढ़ लाना नदियों का स्वभाव है। जब नदियां अपने पूर्ण वेग से बहती हैं तो वे अपने पानी का फैलाव संपूर्ण संभरण क्षेत्र में करती हैं, जोकि नदियों का अपना घर है। नदी की धारा के दोनों ओर का यह वही क्षेत्र होता है जोकि नदियों को जीवन देता है।
इसका दायरा नदी के अनुसार, सौ मीटर से लेकर दस किलोमीटर तक हो सकता है। इसी संभरण क्षेत्र से मैदानी क्षेत्रों की मिट्टी उपजाऊ बनती है, जिससे सम्पूर्ण जैव-विविधता का पोषण होता है। जहां आम जनमानस के मन में यह सवाल कौंध रहा है कि आखिर नदियां इतनी झल्लाई हुई क्यों हैं जबकि नदियों की प्रकृति को जानने वाले इस बात से हैरान हैं कि बाढ़ पर इतना हल्ला क्यों है, क्या पहले कभी बाढ़ नहीं आई है? क्या पहले कभी इतनी वर्षा नहीं हुई है?
अगर हम इस सवाल का जवाब खुले मन से नहीं तलाशेंगे तो भविष्य में परेशानियां अधिक बढ़ेंगी। जरा सोचिए कि जब बांध और बैराज पर खतरे के निशान बनाए गए होंगे तो क्या तब भी उनमें उतनी ही गाद भरी होगी जितनी आज है? अगर यमुना की ही बात करें तो क्या दिल्ली में यमुना के तल से लगातार गाद की सफाई की जाती है?
यह बड़ा सवाल है, क्योंकि गाद के कारण यमुना का तल ऊपर उठ चुका है। वहीं, नदी किनारे अतिक्रमण के कारण नदी का बहाव क्षेत्र सिकुड़ चुका है। नदी के संभरण क्षेत्र में अट्टालिकाएं बना दी गई हैं। अब जब नदी का तल ऊंचा हो चुका है, किनारों को संकरा कर दिया गया है तथा उसके संभरण क्षेत्र को कब्जा लिया गया है तो आखिर ऐसे में बरसात का पानी जब नदी में आएगा तो न चाहते हुए भी खतरे के निशान को आसानी से छू लेगा और बंधनों को तोड़ता हुआ अपनी हदों में पहुंच ही जाएगा।
इसी प्रकार पहाड़ों में जो तबाही देखने को मिल रही है उसका सबसे बड़ा कारण भी नदियों में किया गया अतिक्रमण ही है। अगर नदी के रास्ते में कोई होटल या घर न बनाया गया हो तो नदी कितनी ही तूफानी रफ्तार से बहे उससे नुकसान होगा ही नहीं। जब हम नदी के घर में ही अपना कब्जा जमा लेंगे तो नदी तो उसे छुड़ाने अवश्य आएगी और बार-बार आएगी।
हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि नदी की स्मृति बहुत तेज होती है। नदी कभी अपने मार्ग को नहीं भूलती है। वह जहां सौ वर्ष पहले बहती थी, अपने निश्चित अंतराल के अंतर से वहां अवश्य लौटेगी। सिंधु, गंगा और ब्रहमपुत्र हिमालय क्षेत्र की तीन प्रमुख नदियां हैं।
हिमालय सर्वाधिक युवा पहाड़ है जिसको अभी पूरी तरह से स्थिर होने में हजारों वर्ष लगेगा। हिमालय क्षेत्र में आबादी का दबाव और बेतरतीब विकास उसके परिपक्व होने की प्रक्रिया में बाधा बन रहा है। हिमालय की यह प्रक्रिया तब तक चलेगी, जब तक हिमालय की नदियां अपनी घाटियों को गहरा नहीं कर लेंगी। इस प्रक्रिया में हिमालय क्षेत्र की सभी नदियां हिमालय पहाड़ को परिपक्व बनने में सहयोग कर रही हैं।
हिमालय से बहने वाली नदियों में बड़ी मात्रा में लकड़ी का बहकर आना, निश्चित ही वहां की जा रही अप्राकृतिक गतिविधियों की ओर इशारा करता है। उच्चतम न्यायालय ने भी इसका संज्ञान लिया है। पेड़ पहाड़ों को स्थिर रखने में महती भूमिका निभाते हैं लेकिन अगर उन पर बड़ी मात्रा में आरा चलाया जाएगा तो आखिर कैसे हिमालय की मजबूती बनेगी और कैसे मिट्टी का कटान रुकेगा?
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(भारतीय नदी परिषद के अध्यक्ष रमन कांत रिवरमैन से बातचीत)
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