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    मैं दर्द से कराहता हिमाचल प्रदेश हूं... न मरे बच्चों पर रोने का वक्त-न लापता की खोज का समय; घाव इतने कि...

    Updated: Thu, 04 Sep 2025 05:21 PM (IST)

    हिमाचल प्रदेश अभी इस स्थिति में भी नहीं है कि अपने घाव गिन सके... अपने मरे हुए बच्चों पर रो सके या लापता लोगों की खोज छोड़कर बैठ सके। इस बार की आपदा ने 3040 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान किया है लेकिन राज्य सरकार और विपक्ष अभी भी राहत कार्यों के बजाय राजनीति में उलझे हैं। विधानसभा सत्र में आपदा पर चर्चा तो हुई लेकिन...

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    मैं दर्द से कराहता हिमाचल प्रदेश ..अपने मरे और लापता बच्‍चों की खोज में हूं। फोटो-PTI

    नवनीत शर्मा, शिमला। सिर पर चट्टानें झेलता, भूमि के टुकड़ों को पेड़ों समेत बहते हुए देखता, झरनों को नाले, नालों को नदी और नदी को बांध को फांद जाने वाली लहरें बनते देखता हिमाचल प्रदेश अभी इस स्थिति में भी नहीं है कि अपने घाव गिन सके... अपने मरे हुए बच्चों पर रो सके या लापता लोगों की खोज छोड़कर बैठ सके। इसके बावजूद कुछ संवाद हुए जो डायरी का रूप ले गए हैं ...

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    सवाल: कैसे हो हिमाचल प्रदेश?

    जवाब- घाव इतने हैं कि गिने नहीं जाते। अब याद भी नहीं कितनी बार बादल फटा है, कितने लोग लापता हैं, कौन सी सड़क नदी में समा गई, कितने वर्ष पीछे चला गया हूं। ...पर यह सब अचानक तो नहीं हुआ न?

    गैर सरकारी संगठन बताते हैं और देखने में भी आया कि मेरे लोगों ने नदियों के किनारे घर बना लिए। कई होटल ऐसे हैं जिनके नाम रिवर व्यू जैसे हैं.... ब्यास नदी 100 मीटर तक रास्ता बदल गई। विकास की अति हो गई, पेड़ कटे, पौधारोपण इंटरनेट मीडिया की सेल्फी तक रह गया…।

    पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाने वाला मैं देश का पहला राज्य था, पर अब भी कुछ बोतलें मेरी छाती पर प्लास्टिक दलती हैं। पहाड़ खोखले हो चुके हैं, चौड़ी पत्ती वाले पेड़ कम हैं, लोग भी जागरूक नहीं।

    मगर… प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यही सब कारण नहीं हैं, ग्लोबल वार्मिंग और बदलता मौसम ही मुख्य कारण हैं। हिमाचल प्रदेश सरकार ने कहा है कि वह विशेषज्ञों का एक समूह बनाएगी, जिसकी अनुशंसाओं पर कार्य करेंगे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे में तो हिमाचल प्रदेश हवा में लापता हो जाएगा।

    सवाल: विधानसभा के मॉनसून सत्र में क्या हुआ?

    जवाब- 12 दिन का सत्र था। कुछ 59 घंटे कार्यवाही चली, जिनमें आपदा पर ही 33 घंटे चर्चा हुई। पर चर्चा ही हुई क्योंकि वहां चर्चा ही हो सकती थी। कई नियमों के अंतर्गत चर्चा होती है। एक नियम 67 यानी काम रोको प्रस्ताव होता है, जिसमें भाजपा ने चर्चा मांगी।

    प्रस्ताव स्वीकार हुआ, तीन दिन चर्चा हुई, मगर राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी जवाब देने लगे तो भाजपा ने उनका बहिष्कार किया। ऐसा भाजपा विधायक दल ने तय किया था कि नेगी से न सवाल पूछेंगे, न संबोधन चुनेंगे, क्योंकि जगत सिंह नेगी और नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर के बीच वाकयुद्ध बहुत भीषण रूप ले चुका था। यहां आपदा से ऊपर जगत सिंह नेगी हो गए।

    सवाल: दिल्ली जाकर सहायता मांगने की बात भी हुई होगी कुछ?

    जवाब- हुई थी न। पक्ष ने कहा कि वह साथ है। विपक्ष ने कहा वह भी साथ है। फिर कुछ ऐसा हुआ कि 68 विधायक हैं, एक साथ नहीं जा सकते, क्योंकि 68 सीटर बस नहीं होती। सबको अलग-अलग जाना पड़ेगा। इसके बाद सब हंसे भी थे।

    सवाल: पर प्रश्न यह है कि सहायता का क्या हुआ?

    जवाब -क्या होगा! भाजपा कहती है कि बहुत सहायता दी, केंद्र साथ खड़ा है। कांग्रेस का कहना है कि केंद्र ने कुछ नहीं दिया, राष्ट्रीय आपदा तक घोषित नहीं की। मुझे आपदा ग्रस्त राज्य घोषित कर दिया विधानसभा में। इससे क्या होगा। कुछ अधिनियम आदि लागू होंगे।

    वह पहले भी हो ही रहे थे। प्रतीकात्मकता है। सच यह है कि मुझे बीते तीन वर्षों में केंद्र ने 3247.64 करोड़ रुपये दिए हैं। और मेरी, 2025 के जून, जुलाई और अगस्त में ही क्षति 3040 करोड़ हो चुकी है। यह आंकड़ा बढ़ेगा।

    यह माली नुकसान है…... जितनी दहलीज और घर के घर सूने हुए हैं, वह क्षति किस खाते में गिनी जाएगी? ठीक है कि देश में भाजपा और प्रदेश में कांग्रेस की सरकारें हैं...मगर मैं कहां जाऊं?

    सवाल: कहीं ऐसा तो नहीं कि मांगने में ही कमी रह गई ?

    जवाब- मैं कुछ कह नहीं सकता कि राज्य सरकार ने मांग पत्र में क्या लिखा है, कितने अधिकारी दिल्ली गए, क्या मांगा…, कितनी बार मांगा। आपदा की स्थिति गतिशील होती है। अनुपूरक ज्ञापन भी देना पड़ता है। मीडिया में तो मांग दिखती है, यह नहीं जानता कि फाइलों में कब, क्या, कितना और कैसे मांगा गया है। सोचता तो हूं कि प्रधानमंत्री जी का घर हूं, मांगूं या न मांगूं, वह स्वयं ही दे देंगे।

    यह पर्यावरण प्रदूषण करने वाले, अवैध खनन करने वाले… इन पर कार्रवाई हो सकेगी? -सब पर होनी चाहिए पर जब भी खनन करते हुए वाहन पकड़े जाते हैं, उनके नंबर कभी सार्वजनिक नहीं होते। जब आप जुर्माने की राशि बता सकते हैं, कुछ दिन के लिए टिप्पर, पोकलेन, बैकहोलोडर को इंपाउंड कर सकते हैं, नंबर क्यों नहीं बता सकते?

    कुछ तो है न जिसकी पर्दादारी है। कल ही गडकरी जी ब्यास नदी और कुल्लू-मंडी मार्ग के विषय में किसी रील में ज्ञान दे रहे थे कि डीपीआर गलत बनती है। तो क्या गलत डीपीआर पर ही राजमार्ग प्राधिकरण मार्ग बना देता है? मुआवजे से बचने के लिए पहाड़ 90 डिग्री पर काटा जाता है। यह भी लोग ही करते हैं? ऐसा करने वालों पर कार्रवाई कौन करे?

    सवाल: अब क्या रास्ता है?

    जवाब- ग्लोबल वार्मिंग हो या न हो, मौसम राह भूले या नहीं, मुझे हिमाचल ही रहने दें। मैं विकास विरोधी नहीं मगर विकास और विनाश में अंतर होता है, उसे समझने का समय आ चुका है। मेरा ग्रीन बोनस ही दिला दें, कुछ घर बन जाएंगे।

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