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कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट में कहा- हिजाब पर फैसले का होगा संवैधानिक नैतिकता व व्यक्तिगत गरिमा पर असर

हिजाब मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पूर्ण पीठ के समक्ष राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी ने कहा कि जब हम कोई चीज थोपते हैं तो पसंद की पोशाक की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है।

By Neel RajputEdited By: Published: Tue, 22 Feb 2022 06:40 PM (IST)Updated: Tue, 22 Feb 2022 06:40 PM (IST)
कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट में कहा- हिजाब पर फैसले का होगा संवैधानिक नैतिकता व व्यक्तिगत गरिमा पर असर
अदालत जल्द सुना सकती है फैसला, सभी पक्षों से इस हफ्ते तक बहस खत्म करने को कहा

बेंगलुरु, आइएएनएस। कर्नाटक सरकार ने मंगलवार को हाई कोर्ट से कहा कि हिजाब पर फैसले का संवैधानिक नैतिकता और व्यक्तिगत गरिमा पर असर पड़ेगा। सरकार ने कहा कि महिलाओं को किसी भी एक विशेष ड्रेस कोड के अधीन नहीं किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले पर जल्द फैसला सुनाना चाहता है और सभी पक्षों से इस हफ्ते तक अपनी बहस पूरी करने को कहा। हिजाब मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायाधीश रितुराज अवस्थी, जस्टिस कृष्ण एस. दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की पूर्ण पीठ के समक्ष राज्य के महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी ने कहा कि जब हम कोई चीज थोपते हैं तो पसंद की पोशाक की स्वतंत्रता खत्म हो जाती है। महिला उस (थोपे गए) पोशाक को पहनने के लिए बाध्य होगी। वह अनिवार्य हो जाता है।

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नवादगी ने आगे कहा कि महिलाओं को किसी प्रकार के ड्रेस कोड के अधीन नहीं किया जा सकता है। एक धर्म विशेष की प्रत्येक महिला का हिजाब पहनने की न्यायिक घोषणा, क्या यह गरिमा का उल्लंघन नहीं होगा? नवादगी ने कहा कि हिजाब पहनने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(ए) के अंतर्गत आता है न कि अनुच्छेद 25 के तहत। अगर कोई हिजाब पहनना चाहता है, तो संस्थागत अनुशासन के अधीन कोई प्रतिबंध नहीं है। परंतु, अनुच्छेद 19 (1)(ए) के अधिकार अनुच्छेद 19(2) के तहत सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता के अधीन हैं। वर्तमान मामले में ड्रेस का नियम संस्थागत प्रतिबंध के अधीन है और यह न केवल स्कूलों में बल्कि अस्पतालों, सैन्य प्रतिष्ठानों और अन्य में भी संस्थागत अनुशासन के अधीन है।

उन्होंने कहा, 'हम हिजाब पर प्रतिबंध नहीं लगाने का प्रस्ताव करते हैं, इसे महिला की पसंद पर छोड़ दिया जाना चाहिए। निजता के अधिकार को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। संस्थागत अनुशासन सर्वोपरि है। बहुल समाज में महिलाओं की गरिमा को भी ध्यान में रखना चाहिए।' इसके साथ ही उन्होंने फिल्म हमराज के गीत 'न मुह छिपा के जियो, ना सर झुका के जियो, गमों का दौर भी आए तो मुस्करा के जियो' को कोट करते हुए अपनी बहस को खत्म किया। इससे पहले, मंगलवार को सुनवाई शुरू होने पर मुख्य न्यायाधीश अवस्थी ने कहा कि पीठ इस मामले में जल्द फैसला सुनाना चाहती है। इसलिए पीठ चाहती है कि सभी पक्ष इस हफ्ते के अंत तक अपनी बहस पूरी कर लें और इसके लिए जरूरी है कि वे संक्षिप्त में अपनी दलीलें रखें।


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