SC: सुप्रीम कोर्ट की दो टूक, कहा- हाई कोर्ट स्वत: संज्ञान लेकर सजा नहीं बढ़ा सकते
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पीड़ित शिकायतकर्ता या राज्य की तरफ से अपील दायर नहीं किए जाने पर हाई कोर्ट स्वत संज्ञान पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करके न तो सजा बढ़ा सकते हैं और न ही किसी अन्य आरोप में आरोपित को दोषी ठहरा सकते हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह निर्णय नागराजन की ओर से दाखिल अपील पर सुनाया है।

पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह स्पष्ट किया कि पीड़ित, शिकायतकर्ता या राज्य की तरफ से अपील दायर नहीं किए जाने पर हाई कोर्ट स्वत: संज्ञान पुनरीक्षण शक्तियों का प्रयोग करके न तो सजा बढ़ा सकते हैं और न ही किसी अन्य आरोप में आरोपित को दोषी ठहरा सकते हैं।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह निर्णय नागराजन की ओर से दाखिल अपील पर सुनाया है।
मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के एक आदेश पर सुनाया यह निर्णय
नागराजन ने मद्रास हाई कोर्ट की मदुरै बेंच के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में दोषी ठहराया गया था और पांच वर्ष की कठोर सजा सुनाई गई थी। उसे महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और घर में घुसने के आरोपों में भी दोषी ठहराया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने उसे आत्महत्या के आरोप में बरी कर दिया था। जबकि महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और घर में घुसने के आरोपों में दोषी ठहराया था।
नागराजन ने हाई कोर्ट में यह अपील की थी
इसके बाद नागराजन ने हाई कोर्ट में अपील की, जिसने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखा, लेकिन स्वत: संज्ञान लेते हुए आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए आपीसी की धारा 306 के तहत उसे दोषी ठहराने की कार्यवाही शुरू की और उसे दोषी ठहराया। जबकि राज्य, पीडि़त या शिकायतकर्ता की ओर से आपीसी की धारा 306 के तहत सजा बढ़ाने या बरी करने के लिए कोई अपील दायर नहीं की गई थी।
महिला ने अपने बच्चे के साथ आत्महत्या कर ली थी
नागराजन ने 29 नवंबर, 2021 के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला 11 जुलाई 2003 का है, जब वह पड़ोसी में रहने वाली महिला के घर में घुस गया था। इसके अगले दिन महिला ने अपने बच्चे के साथ आत्महत्या कर ली थी।
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