किसान आंदोलन में बिछड़ने के 72 वर्ष बाद कैसे मिले पति-पत्नी, जानिए ये दर्दनाक कहानी
केरल का एक विवाहित जोड़ा पूरे 72 साल बाद मिला है। शादी के समय शारदा केवल 13 साल की थीं जबकि नारायणन महज 17 साल के थे।
कन्नूर, [प्रेट्र]। केरल का एक विवाहित जोड़ा पूरे 72 साल बाद मिला है। 93 वर्षीय ईके नारायणन नाम्बियार को वर्ष 1946 में केरल के गांव कवुम्बई के किसान आंदोलन में जेल जाने के चलते पत्नी शारदा (अब 89 वर्षीय) से बिछड़ना पड़ा था। शादी के समय शारदा केवल 13 साल की थीं जबकि नारायणन महज 17 साल के थे।
मुलाकात हुई तो भर आईं आंखें
72 साल बाद केरल के पारासिनिकादवू में शारदा के बेटे भार्गवन के घर पर नारायणन से शारदा की मुलाकात हुई। इस मुलाकात में दोनों की ही आंखें भरी हुई थीं और हजारों अनकही बातों के बावजूद दोनों ही एकदम चुप बैठे थे। भावनाओं के आवेग के बीच नारायणन अपनी पहली पत्नी शारदा के पास चुपचाप बैठे रहे।
पत्नी ने कहा, मैं किसी से नाराज नहीं
शारदा ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा कि उनके मन में किसी के प्रति कोई गुस्सा नहीं है। मैं किसी से नाराज नहीं हूं। तब सिर झुकाए बैठी शारदा से नारायणन ने पूछा कि वह कुछ कह क्यों नहीं रही? वह चुपचाप क्यों है?
शादी के दस महीने बाद हो गए थे भूमिगत
शारदा से शादी के महज दस महीने बाद नारायणन और उनके पिता थालियान रमन नाम्बियार भूमिगत हो गए थे। थालियान रमन नाम्बियार ने ही कवुम्बई गांव के इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इन दोनों को दो महीने बाद ही ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया और भूमि संघर्ष के इस मामले में जेल में डाल दिया। इसके चलते रमन और नारायण को ढूंढते मालाबार की विशेष पुलिस घर तक आ पहुंची थी। इसके बाद नन्हीं दुल्हन को उसके पिता के घर भेज दिया गया। नारायणन के भतीजे मधु कुमार ने बताया कि उसके बाद उस घर को तहस-नहस करके आग के हवाले कर दिया गया।
पति को हुई थी आठ साल की कैद
नारायणन को आठ साल की कैद हुई थी। उन्होंने अपनी सजा कन्नूर, विय्यूर और सलेम की जेलों में काटी। इस दौरान सलेम की जेल में 11 फरवरी 1950 को नारायणन के पिता थालियान रमन नाम्बियार की गोली मार कर हत्या कर दी गई। इस ऐतिहासिक संघर्ष के जीवित पुरोधा नारायणन को भी 22 गोलियां लगी थीं। बताया जाता है कि उस हमले की तीन गोलियां अब भी उनके शरीर में ही हैं जिन्हें निकाला नहीं जा सका था।
दोनों की कर दी गई अलग-अलग शादी
कुछ साल बाद युवा शारदा के परिवार ने उनकी किसी और से शादी कराने का फैसला किया। 1957 में जेल से रिहा होने के बाद नारायणन ने भी दूसरी शादी कर ली। कई सालों के बाद अचानक शारदा का बेटा और आर्गेनिक खेती करने वाला भागर्वन नारायणन के रिश्तेदारों के बीच जा पहुंचा। उन लोगों ने जब अपने परिवार का इतिहास सुना तो शारदा और नारायणन को फिर से मिलाने का फैसला किया। अब विधुर हो चुके नारायणन अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ शारदा से दशकों बाद मिलने के लिए भार्गवन के घर पर पहुंचे। शारदा भी तीस साल पहले ही विधवा हो गईं थीं। उनके छह बच्चे हुए जिनमें से अब सिर्फ चार जीवित हैं।
पहले मिलने से कर दिया इन्कार, फिर हुई राजी
भार्गवन ने बताया कि पहले तो उनकी मां ने नारायणन से मिलने और बात करने से इन्कार कर दिया। लेकिन काफी आग्रह के बाद वह मिलने के लिए राजी हो गईं। भार्गवन ने बताया कि मुलाकात के समय दोनों ही बेहद भावुक हो गए थे। भार्गवन के परिवार ने 'सादया' (शानदार भोज) की व्यवस्था की थी। इस दौरान दोनों परिवारों ने आगे भी एक-दूसरे से संपर्क बनाए रखने का वादा किया।
पोती ने लिखा उपन्यास
नारायणन की पोती शांता कवुम्बई ने कवुम्बई के संघर्ष पर एक उपन्यास 'दिसंबर 30' लिखा था। दरअसल, 1946 दिसंबर में कवुम्बई गांव के लोगों ने अपने जिले में पूनम खेती की मांग रखी थी। यह फसल बदल कर खेती करने का तरीका है। लेकिन इसके खिलाफ जबरदस्त कार्रवाई पुलिस बल ने की थी। पुलिस बल के दस्ते की कार्रवाई में पांच किसान मारे गए थे।
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