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जन्नत की आरज़ू न रही, इंसान को खुदा होते देखा है...

ऐसी दुनिया में जहां सड़क पर तड़पते घायल को देख लोग आगे बढ़ जाते हैं। बेदर्द राहों पर दम तोड़ते विक्षिप्तों के लिए जहां किसी के दिल में कोई जगह नहीं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 20 Oct 2018 09:39 AM (IST)Updated: Sat, 20 Oct 2018 09:39 AM (IST)
जन्नत की आरज़ू न रही, इंसान को खुदा होते देखा है...
जन्नत की आरज़ू न रही, इंसान को खुदा होते देखा है...

जेएनएन, नई दिल्ली। ऐसी दुनिया में जहां सड़क पर तड़पते घायल को देख लोग आगे बढ़ जाते हैं। बेदर्द राहों पर दम तोड़ते विक्षिप्तों के लिए जहां किसी के दिल में कोई जगह नहीं। जहां बेसहारा विक्षिप्त महिलाएं गर्भ का बोझा ढोते दिख जाती हैं। जहां किसी अकेले को घिरते-लुटते-पिटते और कत्ल होते देख भीड़ महज तमाशबीन बनी रहती है। हां, कुछ दिलेर तमाशबीन वीडियो बनाने का साहस जुटा लेते हैं, ताकि तमाशे को साझा कर सकें। जहां कड़ाके की सर्द रातों में सैकड़ों जिंदगियां नीरस फुटपाथों पर नंगे बदन ठिठुरती हैं, दम तोड़ देती हैं। जहां इन्हीं सर्द रातों में स्याह सड़कों पर दमकतीं दौड़तीं नर्म-गर्म कारों में कुछ लोग आइसक्रीम का लुत्फ लेते तफरी पर निकलते हैं, पर उन्हें फुटपाथ नजर नहीं आता। कुछ बेसुध कारें अकसर इन बेबस फुटपाथों पर चढ़ जाया करती हैं...। जहां लाखों लोग भूखे पेट सो रहे होते हैं। ऐसी बेदर्द दुनिया में इंसान को खुदा होते देखा है...।

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इंसान को खुदा होते देखा है...

किसी भूखे को खाना खिलाते देखा है।

जन्नत की आरज़ू न रही मुझे

मैंने गरीब को मुस्कराते देखा है...।

पंचकूला, हरियाणा के रहने वाले बबलीन कौर और रिची शर्मा भूखों का पेट भर रहे हैं। दोनों ने ‘रोटी बैंक पंचकूला’ की शुरुआत की है। शादी-पार्टी और घरों में बचा हुआ खाना उन लोगों तक पहुंचाया जा रहा है, जिन्हें एक वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो पाता। रात 7 से 12 बजे तक शहर की तमाम होटलों, क्लबों और सामुदायिक भवनों से बचा हुआ भोजन एकत्रित किया जाता है और उसी रात गरीबों में बांट दिया जाता है।

बबलीन और रिची दोनों ही प्राइवेट नौकरी करते हैं। पति रिची के वेतन से भूखों के लिए खाना बनता है और पत्नी बबलीन के वेतन से घर चलता है। बबलीन कौर ने बताया कि वह खुद भी अपने घर में रोजाना 25 लोगों के लिए खाना तैयार करती हैं। शाम को दोनों ऑफिस से आने के बाद इस काम में जुट जाते हैं। जब तक बबलीन खाना बनाती हैं, तब तक रिची आसपास के घरों, होटलों और क्लबों से खाना एकत्र करके ले आते हैं। इसके बाद दोनों स्कूटी पर खाना ले जाकर फुटपाथों, बस स्टेंड और सरकारी अस्पताल के बाहर या फिर चंडीगढ़ रेलवे स्टेशन पर जाकर भूखे सो रहे लोगों को खाना खिलाते हैं।

एक इंसान भी काफी है जमाने का दर्द बांटने को

नई जिदंगी की आस में दूर-दूर से आए मरीजों और तीमारदारों के लिए दिल्ली के बड़े अस्पताल और अनुभवी चिकित्सक भगवान से कम नहीं। वहीं इन अस्पतालों के सामने लगते इंद्रजीत कौर के लंगर का भोजन इनके लिए प्रसाद से कम नहीं है। अपनत्व और मानवीय संवेदनाओं की गर्माहट में पका खाना खाकर इंसानियत मानो तृप्त हो उठती है। पूर्वी दिल्ली के प्रीत विहार स्थित मधुबन इलाके में रहने वाली गृहणी इंद्रजीत कौर के निजी प्रयासों से चल रहे इस लंगर के जरिये करीब 100 मरीज व तिमारदार भोजन करते हैं।

इंद्रजीत खुद ही भोजन तैयार करती हैं। सुबह 4 बजे से तैयारी में जुट जाती हैं। बड़े पतीले में दाल और चावल पका लेती हैं और रोटियां बनाती हैं। एक दिन राम मनोहर लोहिया अस्पताल में तो एक दिन जीटीबी कैंसर अस्पताल में लंगर लगाने पहुंच जाती हैं। इंद्रजीत के परिवार का कपड़ों का कारोबार है। अब आसपास रहने वाले 20 से अधिक लोग भी इनकी टीम में जुड़ गए हैं। जो अपने-अपने घरों से रोटियां बनाकर लाते हैं। इस तरह 1500 से अधिक रोटियां तैयार हो जाती हैं।

इंसानियत का सौदा सबसे खरा

बुरहानपुर, मप्र के कुछ युवा रोजाना 250 से ज्यादा गरीबों तक अपनी चलती फिरती लंगर गाड़ी से भोजन पहुंचा रहे हैं। चावल, सब्जी, रोटी और एक मिठाई। रेलवे स्टेशन हो या बस स्टैंड या फिर जिला अस्पताल, जहां भी गरीब जरूरतमंद मिले, उन्हें नानक रोटी देकर उनकी भूख मिटाने की सेवा कर रहा है इन युवाओं का अमृत वेला ट्रस्ट। राम मोहनानी और विक्की टिल्लानी ने बताया कि ट्रस्ट के सभी सदस्य व्यापारी वर्ग से हैं, जो शाम को अपने प्रतिष्ठानों से लौटकर पहले लंगर में सेवा देते हैं उसके बाद ही अपने घर जाते हैं। सभी के सहयोग से यह नेक काम किया जा रहा है।  


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