छत्तीसगढ़ के हरिहर वैष्णव ने बस्तर के लोक साहित्य को संजोने में लगा दिया जीवन
बस्तर में कई साहित्यकार हुए जिन्होंने बस्तरिया साहित्य की समृद्ध विरासत को संजोने में अपना जीवन खपाया। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है हरहिर वैष्णव का
अनिल मिश्रा, जगदलपुर। बस्तर का लोक साहित्य बेहद सशक्त और समृद्ध रहा पर यह सब सदियों तक स्रुति परंपरा में ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होता रहा। बदलते जमाने के साथ काफी कुछ विलुप्त भी हो गया। बस्तर में कई साहित्यकार हुए जिन्होंने बस्तरिया साहित्य की समृद्ध विरासत को संजोने में अपना जीवन खपाया। इन्हीं में से एक प्रमुख नाम है हरहिर वैष्णव का।
हरिहर ने जनजातियों में प्रचलित कहानियों, गीतों को लिपिबद्ध किया
हरिहर बस्तर के लोक साहित्यकार हैं। उन्होंने जनजातियों में प्रचलित कहानियों, गीतों को लिपिबद्ध किया। हिंदी के साथ ही बस्तर की स्थानीय बोलियों, हल्बी, भतरी में भी उनकी कलम खूब चली है।
हरिहर वैष्णव की 24 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं
हरिहर वैष्णव की अब तक 24 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनके साहित्य में बस्तर की विशिष्ट प्रतिभाओं को भी जगह मिली है। वन विभाग में लेखाकार रहे हरिहर का साहित्य के प्रति ऐसा अनुराग था कि इसके लिए उन्होंने रिटायरमेंट से चार साल पहले ही नौकरी छोड़ दी।
वह जीवन भर बस्तर पर शोध करते रहे
वह जीवन भर बस्तर पर शोध करते रहे। आदिवासियों की जिंदगी, उनकी परंपराएं उनके साहित्य के मूल में हैं। उनकी साहित्य साधना आज भी अनवरत जारी है। बस्तर के साहित्य और संस्कृति पर लिखे उनके आलेख प्रमाणिक और अंतिम माने जाते हैं।
बस्तर के लोक साहित्य के संकलन का जुनून किशोरावस्था से ही था
हरिहर वैष्णव का जन्म 19 जनवरी 1955 को हुआ था। बस्तर के लोक साहित्य के संकलन का जुनून उनमें किशोरावस्था से ही था। वह तभी से बस्तर का साहित्य रचने लगे थे। हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी ज्वाइन की पर उनका मन साहित्य में ही लगा रहा। वह निरंतर बस्तर पर शोध करते रहे, उसे लिपिबद्ध करते रहे।
कवि हरिहर ने साहित्य की हर विधा में हाथ आजमाया और यश अर्जित किया
मुख्य रूप से कवि हरिहर ने साहित्य की हर विधा में हाथ आजमाया और खूब यश अर्जित किया। बस्तर के परंपरागत लोक संगीत पर उनका काम अभूतपूर्व है। जनजातीय समाज में सदियों से गाए जा रहे गीतों को संकलित करने, उनका अनुवाद करने में उन्होंने जीवन खपा दिया।
हरिहर की प्रमुख कृतियां
बस्तर का महाकाव्य है लक्ष्मी जगार। यह कई दिनों तक गाया जाने वाला साहित्य है जो श्रुति परंपरा में ही रहा। हरिहर ने लक्ष्मी जगार महाकाव्य को पुस्तक का रूप दिया। उनकी प्रमुख कृतियों में कहानी संग्रह मोहभंग, बस्तर का लोक साहित्य, बस्तर के तीज त्यौहार, राजा और बेल कन्या, बस्तर की गीत कथाएं, बस्तर का लोक महाकाव्य धनुकुल आदि हैं। उन्होंने हल्बी की साहित्यिक पत्रिका घूमर, लघु पत्रिका ककसाड़ और प्रस्तुति का संपादन भी किया।
पुरस्कार और सम्मान
हरिहर वैष्णव को कई पुरस्कार और सम्मान मिले। 2009 में उन्हें छत्तीसगढ़ हिंदी साहित्य परिषद का उमेश शर्मा सम्मान मिला। इसी साल उन्हें दुष्यंत कुमार स्मारक संग्रहालय का आंचलिक साहित्यकार सम्मान मिला। 2015 में छत्तीसगढ़ राज्य अलंकरण पंडित सुंदरलाल शर्मा साहित्य सम्मान मिला। 2015 में ही वेरियर एल्विन प्रतिष्ठा अलंकरण और साहित्य अकादमी के भाषा सम्मान से भी उन्हें नवाजा गया।