गुजरात में शुरू होगी आदिवासी समुदाय की जीनोम सीक्वेंसिंग, इस समस्या का पता लगाया जाएगा
गुजरात ने आदिवासी लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती को 'जनजातीय गौरव वर्ष' के रूप में मनाने का संकल्प किया है। भगवान बिरसा मुंडा आदिवासी समाज की अस्मिता और आत्मसम्मान के प्रतीक हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस की पहल शुरू की है।

गुजरात आदिवासी समुदाय के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट शुरू करने वाला पहला राज्य (सांकेतिक तस्वीर)
राज्य ब्यूरो, गांधीनगर। गुजरात ने आदिवासी लोक नायक भगवान बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती को 'जनजातीय गौरव वर्ष' के रूप में मनाने का संकल्प किया है। भगवान बिरसा मुंडा आदिवासी समाज की अस्मिता और आत्मसम्मान के प्रतीक हैं। उनके सम्मान में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस की पहल शुरू की है।
पीएम मोदी का मानना है कि आदिवासी समुदाय समृद्ध होगा तो भारत भी समृद्ध होगा। उनके इस दृष्टिकोण को गुजरात सरकार आगे बढ़ा रही है। इसी कड़ी में गुजरात देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जिसने आदिवासी समुदायों के लिए बड़े पैमाने पर जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट शुरू किया है।
गुजरात बायोटेक्नोलाजी रिसर्च सेंटर (जीबीआरसी) के नेतृत्व में यह प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों के आनुवंशिक खाके (जेनेटिक ब्लूप्रिंट) का अध्ययन कर रोग के परीक्षण, उपचार और स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करेगा।
जीनोम इंडिया पहल के तहत कार्यरत जीनोम सीक्वेंसिंग प्रोजेक्ट यह समझने का प्रयास करता है कि आखिर क्यों आदिवासी समुदायों में आनुवंशिक विकृतियां बढ़ रही हैं, जो अक्सर अंतर्विवाह (अपने ही समूह में विवाह) और सीमित आनुवंशिक विविधता के कारण होते हैं।
यह प्रोजेक्ट आदिवासी समुदायों के लिए बेहतर स्वास्थ्य संबंधी योजनाएं बनाने में भी मदद करेगा। शरीर की कोशिकाओं के अंदर मौजूद आनुवंशिक सामग्री को जीनोम कहा जाता है। कोशिका के अंदर जीन का सटीक स्थान और उसकी रचना को समझने के लिए जीनोम सीक्वेंसिंग की जाती है। यह जीनोम में होने वाले परिवर्तन के बारे में बताता है।
गुजरात की आदिवासी आबादी लंबे समय से थैलेसीमिया और सिकल सेल जैसी आनुवंशिक बीमारियों से जूझ रही है। कुछ आनुवंशिक बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनके बारे में आखिरी स्टेज तक पता नहीं चल पाता।
इससे उपचार और अधिक जटिल हो जाता है। जीनोम सीक्वें¨सग की मदद से वैज्ञानिक म्यूटेशन (परिवर्तनों) का पता लगा सकते हैं। कम लागत वाले डायग्नोस्टिक पैनल बना सकते हैं और आइवीएफ प्रक्रियाओं के दौरान प्रसवपूर्व या फिर भ्रूण-स्तरीय परीक्षण भी कर सकते हैं।

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