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    'राज्यपाल न बनें बाधा', प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में बोले गैर भाजपा शासित राज्य

    Updated: Wed, 03 Sep 2025 10:00 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट में राष्ट्रपति और राज्यपाल की विधेयक पर निर्णय लेने की समयसीमा के मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। राजग शासित राज्यों का कहना है कि संविधान में जानबूझकर समय सीमा नहीं दी गई है। वहीं गैर भाजपा शासित राज्यों का कहना है कि राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक नहीं सकते।

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    प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई।

    जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चर्चा का मुद्दा तो यह है कि अगर संविधान में राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयक पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा नहीं है तो क्या कोर्ट उन्हें समय में बांध सकता है। लेकिन अब यह राज्य का विषय न रहकर राजग और गैर राजग शासित राज्यों के विभाजन का मुद्दा बन गया है।

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    राजग शासित राज्यों ने स्पष्ट कहा था कि संविधान में जानबूझ कर समय सीमा नहीं दी गई थी कि कोर्ट को अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल प्रेसीडेंशियल रिफरेंस पर सुनवाई कर रही है। केंद्र और रिफरेंस का समर्थन करने वाले राज्यों की और से बहस पूरी हो चुकी है और अब रिफरेंस का विरोध करने वाले राज्यों की ओर से पक्ष रखा जा रहा है।

    गैर भाजपा शासित राज्यों ने क्या कहा?

    तमिलनाडु की ओर से विरोध में पक्ष रखा जा चुका है। बुधवार को पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश की ओर से बहस की गई। गैर भाजपा शासित इन राज्यों ने एक सुर में कहा कि राज्यपाल के पास विधेयकों को अनिश्चितकाल तक रोक कर रखने का अधिकार नहीं है। यह भी कहा कि विधेयक पर निर्णय लेने के बारे में राज्यपाल के पास विवेकाधिकार नहीं है।

    वकीलों ने क्या कहा?

    कर्नाटक की ओर से पेश वरिष्ठ वकील गोपाल सुब्रामण्यम ने कहा कि केंद्र की दलीलें अप्रत्यक्ष रूप से संविधान के आधार को निरस्त करने का प्रयास करती हैं, जो कि सरकार का कैबिनेट स्वरूप और विधायिका के प्रति जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि मंत्रिपरिषद के जरिए सरकार का लोकतांत्रिक स्वरूप संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है। राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों पर अंतरनिहित सीमा के सिद्धांत को मान्यता दी गई है।

    बंगाल की ओर से पेश कपिल सिब्बल ने कहा कि संविधान एक जीवंत दस्तावेज है। इसकी उत्पत्ति इतिहास से हुई है लेकिन यह भविष्य के लिए भी है।कोर्ट को इसकी व्याख्या करते समय ऐसे जाल में नहीं फंसना चाहिए जिसमें राज्यपाल संविधान के कामकाज में बाधा बन जाए।

    उन्होंने कहा कि राज्यपाल विधेयकों की विधायी क्षमता की जांच नहीं कर सकते। कोर्ट को न्यायिक समीक्षा का अधिकार है। जब कोर्ट ने सवाल किया कि अगर राज्यपाल को विधेयक केंद्रीय कानून से विरोधाभास वाला लगे तो क्या वे उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित नहीं नहीं रख सकते।

    सिब्बल ने कहा कि यह दुर्लभ मामला है। लेकिन जब कोई विधेयक विधायिका द्वारा पारित किया जाता है तो उसके प्रति संवैधानिकता की धारणा होती है और उसका परीक्षण न्यायालय में किया जाना चाहिए। राज्यपाल विधेयक की विधायी क्षमता नहीं जांच सकता।

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