GST और लेबर कोड के बाद सरकार ले सकती है एक और बड़ा फैसला, उद्यमियों को मिलेगी बड़ी राहत
केंद्र सरकार उद्यमियों को लाइसेंस राज से मुक्ति दिलाने के लिए कदम उठा सकती है। राजीव गौबा समिति की रिपोर्ट में लाइसेंस, परमिट और पुराने नियमों को बदलने की सिफारिश की गई है। जनविश्वास संशोधन विधेयक के द्वारा छोटे उद्योगों से जुड़े कानूनों में संशोधन किया जाएगा, जिससे कारोबारियों को बेहतर माहौल मिलेगा और दंडात्मक प्रावधानों में बदलाव किए जाएंगे।

GST और लेबर कोड के बाद सरकार ले सकती है एक और बड़ा फैसला। फाइल फोटो
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने और लेबर कोड को लागू करने के बाद केंद्र सरकार देश में कार्यरत सभी तरह के उद्यमियों को लाइसेंस राज से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक की सबसे महत्वपूर्ण कदम आने वाले दिनों में उठाया जा सकता है।
यह कदम नीति आयोग के सदस्य और पूर्व कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर उठाए जाएंगे। समिति ने हाल ही में अपनी बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट सौंप दी है। जिसमें सैकड़ों लाइसेंस, परमिट, एनओसी और पुराने विनियमन व्यवस्था को बदलने की बात कही गई है।
लाइसेंस राज से उद्यमियों को मुक्ति
अधिकारियों का कहना है कि यह रिपोर्ट में देश में छोटे और मध्यम आकार के उद्यमियों के लिए खास तौर पर वरदान साबित हो सकती है। 'जनविश्वास सिद्धांत' को रिपोर्ट को मूल आधार बनाया गया है और इसमें कहा गया है कि, 'जो काम साफ तौर पर प्रतिबंधित नहीं है उसके लिए कोई पूर्व अनुमति जरूरी नहीं होगी।'
असलियत में केंद्र सरकार दूसरे स्तर पर भी देश में कारोबार करने के माहौल में बड़े सुधार (ईज ऑफ डूइंग बिजनेस) के लिए काम कर रही है। इस क्रम में प्रस्तावित जन विश्वास संशोधन विधेयक को पारित कराना भी सरकार के एजेंडे में है।
जनविश्वास सिद्धांत पर आधारित रिपोर्ट
इस विधेयक पर विचार करने के लिए गठित संसदीय समिति की 26 नवंबर, 2025 को बैठक हुई और इसके सदस्यों ने कहा है कि आगामी शीतकालीन सत्र में उनकी रिपोर्ट सदन पटल पर रख दी जाएगी। यह विधेयक छोटे व मध्यम आकार के उद्योगों से जुड़े मौजूदा कानूनों में आवश्यक संशोधन करके कारोबारियों के लिए बेहतर माहौल उपलब्ध कराया जाएगा।
सरकारी सूत्रों का कहना है कि, 'जहां गौबा समिति की कई सिफारिशों को भी जनविश्वास संशोधन विधेयक पर गठित संसदीय समिति की रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा। मसलन हाल ही में संसदीय समिति ने टैक्सटाइल समिति एक्ट-1963, केंद्रीय सिल्क बोर्ड एक्ट-1948, हैंडलूम एक्ट-1985, एमएसएमई एक्ट-2006 में दंडात्मक प्रावधानों को बदल कर उन्हें मौजूदा कारोबारी माहौल के मुताबिक बनानये जाने पर विचार किया है। इन सभी कानूनों में कई तरह के दंडात्मक प्रावधान है जिन्हें बदले जाने की मांग हो रही है। गौबा समिति की कुछ सिफारिशें भी इसी तरह की हैं।'
कारोबार में सुधार के लिए विधेयक
माना जा रहा है कि गौबा समिति ने राष्ट्रीय सुरक्षा, जनस्वास्थ्य, पर्यावरण, गंभीर सार्वजनिक हित या मानव जीवन को खतरा जैसे मामलों में भी लाइसेंस परमिट जारी करने के पक्ष में है। इसके अलावा अन्य सभी गतिविधियां, खास तौर पर कारोबार या व्यवसाय से जुड़ी गतिविधियों के लिए लाइसेंस लेने की बाध्यता को समाप्त करने की बात कही गई है।
इसी तरह से अधिकांश उद्यमियों के लिए बार-बार पंजीयन कराने या उद्योग से जुड़ी किसी अन्य गितिविधि के लिए निश्चित अंतराल पर परमिट लेने की व्यवस्था भी खत्म करने की बात कही गई है। राष्ट्र हित से जुड़े संवेदनशील मामलों को इससे अलग रखा गया है। कई मामलों में स्वयं घोषणा को लागू करने की बात कही गई है।
इसके लिए किसी सरकारी विभाग में जा कर मंजूरी लेने की बाध्यता समाप्त करने की सिफारिश है। जहां परीक्षण या जांच-पड़ताल की जरूरत होगी वहां सीधे सरकारी एजेंसियों की जगह थर्ड पार्टी एजेंसियों की मदद ली जाएगी।

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