राफेल सौदाः सरकार ने सील बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपा कीमत का ब्योरा
राफेल विमान सौदे पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में खरीद प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन करते हुए राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की कीमत का ब्योरा सोमवार को सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दिया। इसके अलावा सरकार ने सौदे की निर्णय प्रक्रिया का ब्योरा पक्षकारों को दिया है जिसमें कहा गया है कि राफेल में रक्षा खरीद सौदे की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है। 36 राफेल विमानों को खरीदने का सौदा करने से पहले डिफेंस एक्यूजिशन काउंसिल (डीएसी) की मंजूरी ली गई थी। इतना ही नहीं करार से पहले फ्रांस के साथ सौदेबाजी के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी जिसने करीब एक साल तक सौदे की बातचीत की और खरीद सौदे पर हस्ताक्षर से पहले कैबिनेट कमेटी आन सिक्योरिटी (सीसीए) व काम्पीटेंट फाइनेंशियल अथारिटी (सीएफए) की मंजूरी ली गई थी।
सुप्रीम कोर्ट राफेल सौदे में गड़बडि़यों का आरोप लगाने वाली याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई करेगा। सुप्रीम कोर्ट में दो वकीलों एमएल शर्मा और विनीत ढांडा के अलावा एक गैर सरकारी संस्था ने जनहित याचिकाएं दाखिल कर सौदे पर सवाल उठाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने गत 31 अक्टूबर को सरकार को सील बंद लिफाफे में राफेल की कीमत और उससे मिले फायदे का ब्योरा देने का निर्देश दिया था। साथ ही कहा था कि सौदे की निर्णय प्रक्रिया व इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने की जितनी प्रक्रिया सार्वजनिक की जा सकती हो उसका ब्योरा याचिकाकर्ताओं को दे। सरकार ने आदेश का अनुपालन करते हुए ब्योरा दे दिया है।
बताई सौदे की निर्णय प्रक्रिया
सरकार ने पक्षकारों को दिये गये राफेल सौदे की निर्णय प्रक्रिया के ब्योरे में कहा है कि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने में रक्षा उपकरण खरीदने की डीपीपी 2013 की तय प्रक्रिया का पालन किया गया है। ऐसे सौदों के लिए 2013 की तय प्रक्रिया के सभी जरूरी कदम उठाए गए थे। जैसे कि सर्विस क्वालिटेटिव रिक्वायरमेंट (एसक्यूआर) तैयार करना, डीएसी की मंजूरी प्राप्त करना, तकनीकी आकलन और तकनीकी गुणवत्ता की मंजूरी, कांट्रेक्ट नेगोसिएशन कमेटी (सीएनसी) द्वारा कामर्शियल नेगोसिएशन करना और सीएफए यानी सक्षम अथारिटी से मंजूरी लेना।
सरकार ने बताया है कि डीपीपी की तय प्रक्रिया का पालन करने के बाद मीडियम मल्टी रोल काम्बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) कामर्शियल आंकलन की स्टेज पर पहुंचा। इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट (आईजीए) के जरिये फ्रांस से 36 फ्लाइवे राफेल एयरक्राफ्ट खरीदने का करार करने के लिए डीएसी से 13 मई 2015 को मंजूरी ली गई। डीएसी को मामले की पृष्ठभूमि भी बताई गई थी।
राफेल विमानों की खूबियां भी डीएसी को बताई गईं। फ्रांस से सौदे के करार की बातचीत के लिए इंडियन नेगोसिएशन टीम (आइएनटी) गठित की गई थी इसके मुखिया डिप्टी चीफ आफ एयर स्टाफ(डीसीएएस) थे। इस टीम ने फ्रांस के साथ सौदे की बातचीत मई 2015 में शुरू की और ये बातचीत अप्रैल 2016 तक चली। इस टीम की कुल 74 बैठकें हुईं थीं। आइएनटी ने सौदेबाजी के दौरान कीमत और गुणवत्ता से लेकर सभी पहलुओं का ध्यान रखा था। डीएसी रक्षा खरीद सौदे की सबसे ऊंची अथारिटी है जिसके मुखिया रक्षामंत्री होते हैं और इसमें सभी सर्विस चीफ और रक्षा सचिव आदि शामिल होते हैं।
सरकार ने यह भी कहा है कि इंडियन आफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। यह मूल निर्माता कंपनी का कामर्शियल फैसला होता है।
पूर्व सौदा नहीं हुआ था फाइनल
सरकार ने बताया है कि 2007 में 126 एमएमआरसीए खरीदने के सौदे की बात चली थी जिसमें 18 फ्लाईवे एयर क्राफ्ट आने थे और 108 एचएएल को ओरिजनल इक्यूपमेंट मैन्यूफैक्चरर (ओईएम) की मदद से बनाने थे। प्रक्रिया 2012 तक चलती रही। इसके बाद तीन साल तक मामला 108 विमानों के मुद्दे का हल न निकलने के कारण अटका रहा। ये मामला दासों और एचएएल के बीच कामन अंडरस्टैंडिंग की कमी के कारण फंसा रहा। अंत में 126 एमएमआरसी का प्रस्ताव जून 2015 में वापस (विद्ड्रा) हो गया था।