Wheat Export: सरकार का गेहूं निर्यात को रोकने का सही निर्णय, जानें एक्सपर्ट के विचार
Wheat Export केंद्र सरकार द्वारा विश्व व्यापार संगठन से खाद्यान्न निर्यात प्रतिबंधों में ढील देने का अनुरोध करने के दो माह के भीतर ही गेहूं निर्यात (Wheat Export) पर प्रतिबंध लगाने का सरकार का निर्णय बिल्कुल सकारात्मक है।

शिवेश प्रताप। भारत सरकार ने 16 मई को गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और 17 मई को विश्व बाजार में गेहूं 14 वर्षो के रिकार्ड उच्च स्तर लगभग 36.62 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया। इस बात की गंभीरता को ऐसे समझा जा सकता है कि वर्ष 2008 में जब ऐसा लग रहा था कि दुनिया की बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं धड़ाम हो जाएंगी, तब भी गेहूं इतने रिकार्ड ऊंचाई पर नहीं पहुंचा था।
निर्यात प्रतिबंध का निर्णय इसलिए भी चौंकाने वाला है, क्योंकि बीते माह ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से कहा था कि यदि विश्व व्यापार संगठन अनुमति दे तो भारत अपने निर्यात से खाद्यान्न की वैश्विक मांग को पूरा कर सकता है। यह स्वयं में एक ऐतिहासिक वक्तव्य था, क्योंकि भारत अपनी व्यापक जनसंख्या का पेट भरने के साथ ही आज दूसरों के संकट मोचक की भूमिका में भी आ चुका है। परंतु दो माह के भीतर ही विश्व व्यापार संगठन से अनुमति मांगने और गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के निहितार्थ को गहराई से समझा जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि विश्व व्यापार संगठन वैश्विक व्यापार में सभी देशों के लिए समान अवसर एवं ईमानदार व्यापार सुनिश्चित करने वाली संस्था है। ऐसे में यह संगठन कृषि निर्यात में सभी देशों को समान अवसर प्रदान करने के लिए ऐसे देशों के खाद्यान्न निर्यात पर नियंत्रण करता है जो अपने किसानों को सब्सिडी या आर्थिक सहयोग प्रदान करते हैं। जैसे भारत के किसानों को सब्सिडी मिलने के कारण कम लागत में यहां के किसान का उत्पादन किसी अन्य गैर सब्सिडी प्राप्त देश के किसान से अधिक होगा। ऐसे में अधिक उत्पादन से भारत विश्व में ऐसे मूल्य पर अनाज बेच सकता है जिस पर एक गरीब देश के किसान की लागत भी न निकले। जैसे अमेरिका के किसानों को उनकी सरकार कृषि यंत्रों पर सब्सिडी देती है, इसलिए उनके यहां अनाज भारत से कम लागत पर उत्पादित होता है। विश्व व्यापार संगठन भारत, अमेरिका या अन्य यूरोपीय देशों पर इसी सब्सिडी के कारण प्रतिबंध लगाता है।
रूस-यूक्रेन संघर्ष से एक तरफ भू-राजनीतिक उथल-पुथल जारी है तो दूसरी ओर खाद्यान्न का वैश्विक संकट भी पैदा हो गया है। इस संकट की भयावहता को ऐसे समझा जा सकता है कि गेहूं की वैश्विक मांग को पूरा करने में अकेले रूस व यूक्रेन का योगदान संयुक्त रूप से 25 प्रतिशत है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, गेहूं की बढ़ती कीमतों से अफ्रीका और एशिया के बहुत सारे गरीब देशों में भोजन का गंभीर संकट पैदा हो सकता है जो वहां शांतिपूर्ण परिवेश के लिए खतरा बन सकता है।
विश्व में व्याप्त खाद्य संकट के बीच अच्छा अवसर देखते हुए भारत की कृषि को एक अच्छा बाजार प्रदान करने की दृष्टि से ही प्रधानमंत्री ने अमेरिका और विश्व व्यापार संगठन को इस बात के लिए आश्वस्त किया कि भारत दुनिया का पेट भर सकता है। इसके पीछे सरकार की मंशा विश्व व्यापार के प्रतिबंधों को हटाकर भारत के किसानों को उनके अनाज का अच्छा मूल्य दिलाना था।
मालूम हो कि बीते वर्ष भारत का कृषि निर्यात 50 अरब डालर को पार कर चुका है और यह हमारा उच्चतम रिकार्ड है जो विश्व व्यापार संगठन का नियंत्रण हटने के बाद 100 अरब डालर के पार भी जा सकता है। ऐसे में देश की सरकार प्रसंशा की पात्र है जिसने अंतरराष्ट्रीय बाजारों को लाभ के लिए साधने के क्रम में सजगता के उच्चतम मानक अपनाते हुए वैश्विक वाहवाही लूटने के बजाय सबसे पहले अपने देश की खाद्यान्न सुरक्षा को सुनिश्चित करना सही समझा, क्योंकि वर्ष 2004-05 में मनमोहन सिंह सरकार ने उत्साहित होकर इतना गेहूं विश्व बाजार में निर्यात कर दिया कि वर्ष के अंत तक देश में खाद्यान्न संकट की स्थिति में गेहूं आयात करने की नौबत आ गई। वर्तमान मोदी सरकार देश के विकेंद्रीकृत भंडारण एवं वितरण की स्थितियों को भली भांति समझते हुए सबसे पहले देश का हित सुनिश्चित कर रही है।
मई में पंजाब में अपने 135 लाख टन गेहूं की खरीदी के लक्ष्य के विपरीत 100 लाख टन खरीदी का लक्ष्य ही पूरा होता दिख रहा है। एफसीआइ यानी फूड कारपोरेशन आफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले पांच वर्षो के दौरान अनाज भंडारण का स्तर फिलहाल सबसे कम है। केंद्र सरकार को 2.5 करोड़ टन गेहूं अपने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के लिए तथा एक करोड़ टन गेहूं प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के लिए चाहिए। उपरोक्त तात्कालिक कारणों और उनके निवारण हेतु सरकार द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया है, ताकि बाजार में गेहूं की कीमतें नियंत्रित रहें।
उल्लेखनीय है कि देश अभी अभी कोरोना महामारी जनित समस्याओं से बाहर निकला ही है। वहीं वैश्विक आर्थिक सुस्ती की आशंकाओं को भी इन्कार नहीं किया जा सकता। कुल मिलाकर दो महीने के बदलते घटनाक्रम में सरकार के भारतीय कृषि उत्पादों को वैश्विक बाजारों में ले जाने की प्रतिबद्धता, सही समय पर सही मंच के द्वारा विश्व व्यापार संगठन पर प्रतिबंधों में ढील देने के दबाव और मई में उत्पादन और बाजारों की संवेदनशीलता में किसी भी प्रकार का जोखिम न लेते हुए निर्यात पर प्रतिबंध लगाना, यह साबित करता है कि मोदी सरकार देश के नागरिकों की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के संदर्भ में बदलते हुए परिदृश्य में निर्णय की तीव्रता के श्रेष्ठ प्रयास कर रही है।
[आपूर्ति श्रृंखला प्रबंध सलाहकार]
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