अब नहीं सहेंगे, बराबरी का हक लेकर रहेंगे
देश की नारी अपने हक को लेकर जागरुक हुई हैं जिसमें अदालत और सरकार ने उसका बखूबी साथ दिया है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। 'दो राह, समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो, सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'। कवि दिनकर की ये पंक्तियां महिलाओं के अधिकार सम्पन्न होने और आगे बढ़ने के संदर्भ में बहुत सामयिक लगती है। देश की नारी अपने हक को लेकर जागरुक हुई हैं जिसमें अदालत और सरकार ने उसका बखूबी साथ दिया है। महिलाओं ने घर से बाहर तक बराबरी हासिल की है फिर वो चाहें मंदिर और मजार में प्रवेश हो या फिर तीन तलाक। जिस रफ्तार से महिला अधिकारों पर मुहर लग रही है उसमें उम्मीद है कि संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने वाला लंबे समय से अटका महिला आरक्षण बिल भी 2018 में पास हो जाएगा।
मौजूदा सरकार महिलाओं के प्रति संवेदनशील है। उसकी हर योजना में महिला प्राथमिकता पर है फिर वो चाहें उद्योगों के लिए ऋण देना हो या स्कूलों में शौचालय बनाना अथवा हज करने का अधिकार। पहली बार अकेली महिला का ध्यान रखा गया है। पासपोर्ट नियमों में बदलाव हुआ है। अब पासपोर्ट में न तो पति का नाम जरूरी है और न ही पिता का। पति की मृत्यु के बाद महिला की स्थिति अक्सर कमजोर हो जाती है, ऐसी महिलाओं के हित सुरक्षित रखने के लिए मृत्यु प्रमाणपत्र में जीवन साथी का नाम देना अनिवार्य किया गया है इससे पति की मृत्यु के बाद पत्नी को कानूनी हक मिलना आसान होगा।
कानून में हुए ये छोटे-छोटे बदलाव महत्वपूर्ण हैं। इसमें महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की सजगता भी खास रही है जिसने योजनाएं बनाना और लागू करने के अलावा उनकी जानकारी लोगों तक पहुंचाने का काम किया। अगर महिलाएं शी बाक्स में शिकायत कर सकती है तो नारी पोर्टल पर जाकर योजनाओं की जानकारी पा सकती हैं।
पहली बार किसी सरकार ने मुस्लिम महिलाओं की ओर ध्यान दिया है। आजादी के 70 साल बाद मुस्लिम महिलाओं को बगैर महरम (पुरुष संरक्षक) के हज पर जाने का हक मिला है। उधर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जब तीन तलाक नहीं रुका तो इसे रोकने के लिए कानून आ रहा है। उम्मीद है कि जेल का भय व्यक्ति में खौफ पैदा करेगा और तीन तलाक रुकेगा।
देश की रक्षा और विदेशी कूटनीति महिलाओं के हाथ होना ये दर्शाता है कि सरकार और देश को उनकी काबिलियत पर भरोसा है। महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए संसद और विधानसभाओं में उनकी भागेदारी बढ़ाना जरूरी है। अभी लोकसभा में महिलाओं की संख्या 12 और विधानसभाओं में 9 फीसद है। यहां महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने वाला बिल लंबे समय से अटका है। महिलाओं के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता देख कर उम्मीद की जा रही है कि 2018 में महिला आरक्षण बिल कानून का रूप ले लेगा। हालांकि पंचायत स्तर पर ये आरक्षण लागू है लेकिन महिला सरपंच पुरुषों के वर्चस्व और जानकारी के अभाव में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाती। सरकार महिला सरपंचों को प्रशिक्षित कर रही है इससे जमीनी स्तर पर महिलाओं में राजनैतिक बदलाव आएगा।
गरीबी दूर करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों का काम करना जरूरी है। महिलाओं और देश की हालत सुधारने के लिए रोजगार में उनकी भागेदारी बढ़ानी होगी। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट है कि भारत में महिलाओं की काम में भागेदारी समान स्थिति वाले देशों से भी खराब है। वैसे इसे सुधारने के प्रयास हो रहे हैं।
महिलाएं मानव तस्करी की ज्यादा शिकार होती हैं। इस पर अंकुश लगाने के लिए सख्त एंटी ट्रैफिकिंग कानून लाया जा रहा है। सोलह वर्षो बाद राष्ट्रीय महिला नीति संशोधित हो रही है नयी नीति कल्याण के बजाए अधिकार की भावना पर आधारित है।
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