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    आवारा कुत्तों पर सरकार का बड़ा फैसला, लापरवाही करने वाले राज्यों पर लिया जाएगा ये एक्शन

    By ARVIND SHARMAEdited By: Swaraj Srivastava
    Updated: Mon, 13 Oct 2025 11:30 PM (IST)

    आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और रेबीज के खतरे पर सरकार सख्त हो गई है। पशुपालन विभाग ने राज्यों को 2025 तक कार्ययोजना सौंपने का निर्देश दिया है, जिसमें कुत्तों की संख्या, बंध्याकरण और टीकाकरण का ब्यौरा होगा। केंद्र का लक्ष्य 2030 तक रेबीज मुक्त भारत बनाना है। लापरवाही करने वाले राज्यों को फंडिंग नहीं मिलेगी। सरकार ने स्थानीय निकायों को जिम्मेदारी लेने और डिजिटल निगरानी प्रणाली विकसित करने के लिए कहा है।

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    जिस राज्य का काम संतोषजनक नहीं होगा, उन्हें फंड नहीं दिया जाएगा (फाइल फोटो)

    अरविंद शर्मा, जागरण, नई दिल्ली। आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या और रेबीज के खतरे पर सरकार ने सख्त रुख अपनाया है। पशुपालन और डेयरी विभाग ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से दो-टूक कहा है कि वे 31 अक्टूबर 2025 तक अपने-अपने क्षेत्रों की कार्ययोजना मंत्रालय को सौंपें। रिपोर्ट में आवारा कुत्तों की संख्या, बंध्याकरण यानी एनिमल बर्थ कंट्रोल कार्यक्रम की प्रगति और रेबीज टीकाकरण की अद्यतन स्थिति का पूरा ब्यौरा देना होगा।

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    केंद्र का लक्ष्य 2030 तक रेबिज मुक्त भारत बनाने का है। यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि 2025-26 की योजनाओं के लिए मिलने वाली फंडिंग को इस रिपोर्ट से जोड़ा जाएगा। जिन राज्यों की कार्ययोजना स्पष्ट और क्रियान्वित करने योग्य होगी, उन्हें ही प्राथमिकता के आधार पर आर्थिक सहायता दी जाएगी। जिनका काम संतोषजनक नहीं होगा, उन्हें फंड नहीं दिया जाएगा।

    आवारा कुत्ते के हमले बढ़े

    केंद्र सरकार का यह निर्देश ऐसे समय में आया है जब उत्तर प्रदेश, ओडिशा, बिहार एवं बंगाल जैसे राज्यों के कई शहरों में आवारा कुत्तों के हमलों के मामले बढ़े हैं और रेबीज का खतरा चिंता का विषय है। मंत्रालय ने आवारा कुत्तों की अनियंत्रित वृद्धि के लिए स्थानीय निकायों को जिम्मेवार ठहराते हुए कहा है कि इसके लिए अभी तक कई राज्य केवल गैर-सरकारी संगठनों या पशु-प्रेमी समूहों पर निर्भर रहे हैं, जबकि यह पूरी तरह स्थानीय निकायों की वैधानिक जिम्मेदारी है।

    सरकार ने स्पष्ट किया है कि देश को पांच वर्षों में कुत्तों के काटने से इंसानों में रेबीज होने के खतरे को जीरो स्तर पर लाना है। इसके लिए नीतिगत कदम उठाने की जिम्मेदारी राज्यों एवं स्थानीय निकायों की होगी। मंत्रालय का मानना है कि 70 प्रतिशत कुत्तों का नियमित टीकाकरण एवं बंध्याकरण सुनिश्चित हो जाने पर रेबीज संक्रमण के मामलों में 90 प्रतिशत तक की कमी लाई जा सकती है।

    नए निर्देश किए गए जारी

    नए निर्देश के तहत निगमों एवं पंचायतों को अपने अधिकार क्षेत्रों में कुत्तों की गणना कराने, टीकाकरण की रिपोर्ट तैयार करने और बंध्याकरण केंद्रों की क्षमता बढ़ाने की योजना बनानी होगी। केंद्र का मानना है कि कुत्तों को केवल पकड़कर या हटाकर समस्या खत्म नहीं होगी, बल्कि उन्हें नसबंदी और टीकाकरण के बाद उसी क्षेत्र में छोड़ा जाना जरूरी है, ताकि उनका प्राकृतिक संतुलन बना रहे।

    राज्यों को डिजिटल निगरानी प्रणाली विकसित करने के लिए कहा गया है, ताकि टीकाकरण एवं बधियाकरण का ब्योरा अपलोड हो। इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और पता चल सकेगा कि किस क्षेत्र में कितने कुत्तों का उपचार हुआ और कौन-से क्षेत्र पीछे हैं। यह डेटा नीति निर्माण में अहम भूमिका निभाएगा। आदेश के साथ मंत्रालय ने राज्यों को एक मानक प्रारूप भी भेजा है, जिसमें कार्ययोजना के सभी प्रमुख बिंदु जैसे फंडिंग स्त्रोत, स्थानीय भागीदारी, निगरानी तंत्र और पशु-कल्याण संगठनों की भूमिका स्पष्ट करने को कहा गया है।

    यह भी साफ किया गया है कि समय सीमा में ढील नहीं दी जाएगी। यह डेडलाइन राज्यों के लिए न सिर्फ परीक्षा होगी, बल्कि फंडिंग एवं प्राथमिकता तय करने का पैमाना भी। नीतिगत दृष्टि से यह आदेश न सिर्फ आवारा कुत्तों के प्रबंधन का ढांचा बदल सकता है, बल्कि शहरी स्वास्थ्य और पशु-कल्याण दोनों क्षेत्रों में संतुलन भी स्थापित कर सकता है।