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    इस IAS ने पिता के साथ किया कुली का भी काम, DM बनकर जीता लोगों का दिल; बाहुबली ने लोगों को भड़काकर कराई थी हत्या

    By Babli KumariEdited By: Babli Kumari
    Updated: Wed, 26 Apr 2023 05:56 PM (IST)

    जी.कृष्णैया एक ऐसे डीएम रहे जिनकी पहली पोस्टिंग बिहार हुई थी और यही उनकी आखिर भी रही। सहायक कलेक्टर से लेकर डीएम तक का सफर उन्होंने बिहार में तय किया। वह बिहार कैडर में 1985 बैच के IAS अधिकारी थे। वे बेहद साफ-सुथरी छवि वाले एक ईमानदार अफसर थे।

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    1985 बैच के आईएएस जी कृष्णैया (जागरण ग्राफिक्स)

    नई दिल्ली, जागरण डेस्क। पूरे विश्‍व में यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन एग्जाम (UPSC Exam) को सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। वहीं भारत में भी इसे सबसे कठिन और प्रतिष्ठित परीक्षा माना जाता है। उम्‍मीदवार इसी एग्जाम को पास करने के बाद ही आईएएस (IAS) जैसे प्रतिष्ठित पद पर पोस्‍ट होते हैं।

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    यह परीक्षा और भी कठिन तब हो जाता है जब आप एक निम्न-मध्यम परिवार से आते हैं। दिवंगत जी. कृष्णैया भी उन्हीं में से एक हैं। जी. कृष्णैया मूलत: तेलंगाना के महबूबनगर के रहने वाले थे। जिनका बचपन संघर्षों में बीता लेकिन पढ़ने की रुचि उन्हें उस मुकाम तक लेकर आई जहां का सपना उन्होंने देखा था। 

    जी कृष्णैया (8 फरवरी 1957 - 5 दिसंबर 1994) 1985 बैच के एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी थे, जिन्हें बिहार के मुजफ्फरपुर में राजनेता आनंद मोहन सिंह के नेतृत्व वाली भीड़ ने मार डाला था। आईएएस अधिकारी के प्रशिक्षण के बाद कृष्णैया नालंदा जिले में सहायक कलेक्टर के पद पर पदस्थ हुए थे। वहां से उन्हें एसडीएम बनाकर हजारीबाग, फिर डीएम बनाकर बेतिया और फिर गोपालगंज भेजा गया। 1994 में मृत्यु के समय, वह महज 37 वर्ष के थे और तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद यादव के गृह जिले गोपालगंज के जिलाधिकारी (डीएम) के रूप में कार्यरत थे। 

    दलित परिवार में जन्मे जी कृष्णैया

    आंध्र प्रदेश के महबूबनगर गांव में जी कृष्णैया का जन्म एक दलित परिवार में हुआ था। कृष्णैया के पिता कुली का काम करते थे और कृष्णैया ने भी कुली का काम किया था। जी कृष्णैया एक ऐसे गरीब परिवार से थे जिनके पास खेती करने के लिए जमीन नहीं थी। 

    परिवार बेहद ही साधारण था। लेकिन पढ़ने की ललक और असहाय लोगों के लिए कुछ करने की ललक ऐसी थी कि देश की सबसे कठिन प्रतियोगिता क्लियर कर ली और आईएएस बन गए। कहते हैं आईएएस बनने से पहले कृष्णैया ने पत्रकारिता की पढ़ाई की और क्लर्क की नौकरी करने लगे। कुछ दिनों बाद वो लेक्चरर भी बने। चाहे पत्रकारिता पढ़ने की बात हो या फिर लेक्चरर या फिर आईएएस उन्होंने हमेशा ही एक ऐसे फील्ड को चुना जिससे वो लोगों की सेवा कर सकें।

    1985 बैच के थे IAS जी कृष्णैया

    1985 बैच के आईएएस जी कृष्णैया को बिहार का पश्चिमी चंपारण आज भी नहीं भूलता है। बिहार में तब लालू राज था। कानून-व्यवस्था कैसी थी ये बताने की जरूरत नहीं। लेकिन कृष्णैया ने विपरीत परिस्थितयों में भी लोगों की भलाई के लिए काम किया। जिस जिले में भी डीएम बनकर गए वहां के गरीब और शोषित लोगों के हीरो होते गए। हर दिन लोगों से मिलकर वो गरीबों की समस्या को जानते थे। उनके साथी उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद करते हैं जो हमेशा गरीबों की समस्याओं को सुलझाने में लगे रहते थे।

    पश्चिमी चंपारण में भूमि सुधार के क्षेत्र में उन्होंने अद्भुत काम किया था। हालांकि इसमें उनको कई भू- माफियाओं से भी कई बार लोहा लेना पड़ा था। जब उनकी हत्या की खबर बेतिया पहुंची तो जिले के पत्रकार, वकील, और छात्रों का हुजूम सड़कों पर उतरकर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दे रहा था। आंध्र प्रदेश के छोटे से गांव के रहने वाले कृष्णैया ने अपने गांव के लिए भी बहुत कुछ किया। वहां के डीएम को रिक्वेस्ट करते हुए कहा था कि एक ओवरब्रिज मेरे गांव तक बना दीजिए। 

    जी कृष्णैया की 37 साल की उम्र में कर दी गई थी हत्या

    जी कृष्णैया की 37 साल की उम्र में हत्या कर दी गई थी। तब उनकी पत्नी 30 साल की थी और दोनों बेटियां 5 और 7 साल की थीं।  गोपालगंज मुख्यमंत्री लालू यादव का गृहजिला था। सो कई तरह के प्रेशर और पैरवी आते रहते थे। लेकिन कृष्णैया अपने धुन में काम करते रहे। 

    2007 में पटना जिला अदालत ने उनकी हत्या के लिए छह राजनेताओं को दोषी ठहराया। दोषी ठहराए गए नेताओं में आनंद मोहन सिंह और उनकी पत्नी लवली आनंद (दोनों पूर्व सांसद), मुन्ना शुक्ला के नाम से जाने जाने वाले विजय कुमार शुक्ला (विधायक), अखलाक अहमद और अरुण कुमार (दोनों पूर्व विधायक), हरेंद्र कुमार (वरिष्ठ जदयू नेता) और एसएस ठाकुर शामिल हैं। कृष्णैया की हत्या के आरोपियों में से एक आनंद मोहन को 26 अन्य लोगों के साथ बिहार सरकार के आदेश पर रिहा किया जा रहा है।