भारतीय भाषाओं और समावेशी विकास पर केंद्रित गूगल डीपमाइंड: डॉ. मनीष गुप्ता का बड़ा विजन
गूगल डीपमाइंड के इंडिया हेड डॉ. मनीष गुप्ता ने कहा कि एआई मानव सभ्यता के लिए महत्वपूर्ण है। डीपमाइंड का लक्ष्य है कि एआई का लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे। भारत में एआई मॉडल को सभी भाषाओं को समझने में सक्षम बनाने के लिए प्रोजेक्ट वाणी शुरू किया गया है। एआई का उपयोग शिक्षा स्वास्थ्य और कृषि में किया जा सकता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आज दुनिया की सबसे चर्चित टेक्नोलॉजी में से एक है। कई विशेषज्ञ इसे मानव इतिहास को बदल देने वाली शक्ति मानते हैं। इसका असर शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और उद्योग तक फैला है। परंतु बड़ा सवाल यह है कि क्या एआई सिर्फ विकसित देशों और अंग्रेजी बोलने वाले समाज तक सीमित रहेगा या फिर यह भारत जैसे विविध भाषाई और सामाजिक परिदृश्य वाले देश में भी समान रूप से प्रभावी होगा।
इसी संदर्भ में जागरण न्यू मीडिया ने एक खास सीरीज शुरू की है, जिसमें विश्व के प्रमुख वैज्ञानिक और शोधकर्ताओं से बातचीत की जा रही है। इस कड़ी में गूगल डीपमाइंड के वरिष्ठ निदेशक डॉ. मनीष गुप्ता से जागरण न्यू मीडिया के एडिटर इन चीफ राजेश उपाध्याय ने खास बातचीत की।
डॉ. गुप्ता ने इस संवाद में भारत में एआई के भविष्य, चुनौतियों और संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि गूगल डीपमाइंड कैसे प्रोजेक्ट वाणी जैसे अभियानों के माध्यम से भारतीय भाषाओं में एआई की क्षमता को विकसित कर रहा है।
इसके अलावा, कृषि में किसानों को सटीक जानकारी देने से लेकर स्वास्थ्य सेवाओं में मातृ एवं शिशु देखभाल सुधारने तक एआई की अहम भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने युवाओं को संदेश दिया कि एआई को प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि सहयोग की दृष्टि से देखें। साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि एआई के विकास में नैतिकता और जिम्मेदारी को केंद्र में रखना बेहद आवश्यक है।
प्रस्तुत हैं डॉ. मनीष गुप्ता से बातचीत के प्रमख अंश:
गूगल डीपमाइंड का भारत के लिए बड़ा विजन क्या है?
- गूगल डीपमाइंड का लक्ष्य हमेशा से रहा है कि एआई को दुनिया की सबसे बड़ी चुनौतियों के समाधान में लगाया जाए। खासकर भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में हमारी कोशिश है कि टेक्नोलॉजी केवल कुछ लोगों तक सीमित न रहकर सबके लिए काम करे। यही कारण है कि हमने समावेशी टेक्नोलॉजी पर विशेष ध्यान दिया है।
समावेशी टेक्नोलॉजी से आपका क्या आशय है?
- उदाहरण के तौर पर भाषा ले लीजिए। हमने पाया कि अंग्रेजी में एआई मॉडल शानदार प्रदर्शन करते हैं, लेकिन वही सवाल हिंदी या अन्य भारतीय भाषाओं में करने पर गुणवत्ता (क्वालिटी) गिर जाती है। भारत में सौ से अधिक भाषाएं हैं जिनके लाखों बोलने वाले हैं। इसलिए हमने प्रोजेक्ट वाणी शुरू किया, जिसके अंतर्गत हर जिले से लोगों की आवाज रिकॉर्ड कर डाटा इकट्ठा किया जा रहा है। अभी तक 100 से ज्यादा भाषाओं का डाटा संग्रह हो चुका है, जिसे शोधकर्ताओं और स्टार्टअप्स के लिए फ्री उपलब्ध कराया गया है।
एआई का भारत की प्रमुख चुनौतियों (जैसे कृषि और स्वास्थ्य) में क्या योगदान हो सकता है?
- बहुत बड़ा योगदान है। किसानों के लिए हमने मॉडल विकसित किए हैं जो सैटेलाइट तस्वीरों से फसल और खेत की जानकारी निकालकर बीमा कंपनियों और सरकार को बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं। इसी तरह, पब्लिक हेल्थ क्षेत्र में हमने एनजीओ अरमान के साथ काम किया, जहां गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए एआई का उपयोग किया गया है।
ऊर्जा और हार्डवेयर की लागत एआई अपनाने में बड़ी चुनौती है। इस पर डीपमाइंड क्या कर रहा है?
- बड़े एआई मॉडल ऊर्जा की भारी खपत करते हैं। हमारी टीम लगातार इस दिशा में काम कर रही है कि हार्डवेयर और ऊर्जा लागत कम हो, ताकि एक अरब से ज्यादा भारतीयों तक एआई का लाभ पहुंच सके।
भारतीय युवाओं के लिए आपका संदेश क्या है, खासकर वे जो एआई के प्रभाव को लेकर चिंतित हैं?
- युवाओं को एआई को प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि सहयोगी मानना चाहिए। यदि आप अपनी मानवीय क्षमताओं को एआई के साथ जोड़ते हैं, तो यह अत्यंत शक्तिशाली संयोजन साबित होगा। हर छात्र और पेशेवर को एआई की बुनियादी समझ विकसित करनी चाहिए, ताकि वह अपने काम में इसका लाभ उठा सके।
एआई से जुड़े नैतिक सवालों को आप कैसे देखते हैं?
- यह बेहद महत्वपूर्ण पहलू है। एआई को बोल्ड और रिस्पॉन्सिबल तरीके से विकसित करना चाहिए। हमें सुनिश्चित करना है कि मॉडल्स स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में गलत निर्णय न लें, और उनमें किसी प्रकार का लैंगिक, जातीय या धार्मिक पक्षपात न हो। इसी कारण हमने कल्चरल अंडरस्टैंडिंग बेंचमार्क बनाया है, ताकि पक्षपात की पहचान कर उसे सुधारा जा सके।
अगले 3-5 वर्षों में आप भारत में एआई का भविष्य कैसा देखते हैं?
- प्रगति इतनी तेज है कि कभी-कभी जो काम 10 साल बाद होने की उम्मीद थी, वह एक-दो साल में ही हो रहा है। आने वाले समय में एआई संवाद को और प्राकृतिक बनाएगा-वॉइस और कैमरा आधारित इंटरैक्शन सामान्य हो जाएंगे। शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में इसका सबसे बड़ा असर होगा। मैं मानता हूं कि आने वाले साल भारत में एआई को जन-जन की तकनीक बनाने वाले होंगे।

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