कश्मीर में मौसम हुआ मेहरबान, जानिए कैसे सेबों की मिठास को गाढ़ा कर देती है चिल्ले कलां की बर्फ
कश्मीर में सालाना 20 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है। करीब सात लाख परिवार सेब उत्पादन और इसके कारोबार से जुड़े हैं।
राज्य ब्यूरो, श्रीनगर। अपने बाग में चक्कर लगा रहा ताहिर अब्बास बार-बार जमीन की नमी का जायजा ले रहा है। साथ ही वह पास खड़े अपने साथी को पेड़ों की छंटाई का काम जल्द पूरा करने के लिए कह रहा है। अपने साथी से वह कहता है, लाला दुआ करो कि पेड़ न टूटे, इस बार न सिर्फ पैदावार अच्छी होगी, सेब पहले से ज्यादा रसीला और मजबूत होगा। सेंटरोज भी खूब रसीला होगा। हालात ठीक रहे तो हम पूरी तरह फायदे में रहेंगे। वर्तमान में कश्मीर में चिल्ले कलां (सबसे ठंडे चालीस दिन) के दौरान अच्छी बर्फबारी हो रही है।
कश्मीर में सालाना 20 लाख मीट्रिक टन सेब पैदा होता है। करीब सात लाख परिवार सेब उत्पादन और इसके कारोबार से जुड़े हैं। कश्मीर घाटी का शायद ही कोई हिस्सा होगा, जहां सेब पैदा न होता हो। उत्तरी कश्मीर में जिला बारामुला के अंतर्गत सोपोर और दक्षिण कश्मीर में शोपियां व कुलगाम सेब उत्पादन में वादी के अन्य जिलों में अग्रणी हैं।
नवंबर-दिसंबर में खूब गिरी बर्फ
श्रीनगर-पुलवामा-शोपियां मार्ग पर स्थित छत्तरगाम में रहने वाले ताहिर का सेब और आलू बुखारा जिसे स्थानीय भाषा में सेंटरोज कहते हैं, का बाग है। ताहिर ने कहा कि इस बार नवंबर-दिसंबर में बर्फ खूब गिरी है। जनवरी में भी हिमपात की उम्मीद है। यह बर्फ हम किसानों और बागवानों के लिए नेमत है। यही बर्फ ज्यादा देर तक पहाड़ों पर जमी रहेगी, जिससे गर्मियों में नदी-नालों में पर्याप्त पानी होगा। जमीन में जितनी नमी होगी, हमारा फल उतना रसीला होगा।
मौसम की मेहरबानी से हिमाचल भी भरेगा जेब
रमेश सिंगटा, शिमला : मौसम की मेहरबानी से सेब इस बार हिमाचल की समृद्धि के रंग भरेगा। इससे प्रदेश के खजाने में बढ़ोतरी होगी। इस बार हुई बर्फबारी से सेब के लिए जरूरी चि¨लग आवर्स पूरे होने के आसार हैं। ऐसा हुआ तो बागवान बाग-बाग हो जाएंगे। हिमाचल में सेब से करीब चार लाख बागवान परिवारों की रोजी-रोटी जुड़ी हुई है। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सेब का करीब चार हजार करोड़ रुपये का अहम योगदान है। चि¨लग आवर्स सेब की गुणवत्ता के लिए आवश्वयक हैं। इसका सीधा संबंध बर्फबारी व बारिश से होता है। हिमाचल में पिछले वर्ष दिसंबर में बर्फबारी हुई व बारिश भी अच्छी हुई थी। इससे सेब की पैदावार अच्छी होने की उम्मीद जताई जा रही है। अगर आगे भी मौसम ऐसे ही मेहरबान रहा तो फ्लाव¨रग भी अच्छी होगी। इससे फल की से¨टग भी उतनी ही बढि़या हो पाएगी।
क्या हैं चिलिंग आवर्स
बागवानी विशेषज्ञों के अनुसार सेब की बढ़िया पैदावार के लिए कड़ाके की सर्दी बेहद जरूरी है। दिसंबर से लेकर मार्च तक के चार महीने में औसतन 1200 चिलिंग आवर्स यानी 1200 सर्द घंटे पूरे हों तो सेब के पौधों से पैदावार बेहतर होती है। सेब के पौधे में फल लगने के लिए सात डिग्री सेल्सियस से कम तापमान बेहद जरूरी है। पौधे नवंबर व दिसंबर में सुप्त अवस्था में होते हैं।
उन्हें इस अवस्था से बाहर आने के लिए सात डिग्री सेल्सियस का तापमान औसतन 1200 घंटे तक चाहिए। ये 1200 घंटे चार माह में पूरे हो जाने चाहिए। यदि चार माह में 1200 चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब के पौधों में फल की सेटिंग बहुत अच्छी होती है। इससे उत्पादन बंपर होता है। जब चिलिंग आवर्स पूरे हो जाएं तो सेब की फ्लावरिंग बेहतर होगी और फल की गुणवत्ता भी अच्छी होती है। यदि मौसम दगा दे जाए और चिलिंग आवर्स पूरे न हों तो पौधों में कहीं फूल अधिक आ जाते हैं और कहीं कम। इससे फलों की सेटिंग प्रभावित हो जाती है।
बागवानी निदेशक डॉ. एमएम शर्मा ने बताया कि बर्फबारी और बारिश के कारण चिलिंग आवर्स पूरे होने की उम्मीद है। एक सीजन में 800 से 1600 घंटे चि¨लग आवर्स की जरूरत होती है। सेब की अलग-अलग किस्मों के लिए चिलिंग आवर्स अलग-अलग होते हैं। सेब की रॉयल किस्म के लिए सबसे अधिक चि¨लग आवर्स चाहिए। मौसम ऐसे ही मेहरबान हुआ तो पैदावार अच्छी होगी।