जीएम सरसों से ही निकलेगा खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता का रास्ता, विज्ञानियों ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने के प्रयासों के बीच कृषि वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री से जीएम सरसों पर आगे बढ़ने का आग्रह किया है। जीएम सरसों की किस्म डीएमएच-11 को मंजूरी मिली थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला अटका है। वैज्ञानिकों का दावा है कि जीएम सरसों की उपज 28-30% तक बढ़ सकती है जिससे किसानों की आय बढ़ेगी और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता आएगी।

अरविंद शर्मा, जागरण नई दिल्ली। देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें की जा रही हैं। राष्ट्रीय खाद्य तिलहन मिशन के तहत व्यापक रणनीतियां बनाई गईं, मगर अभी भी घरेलू उत्पादन मांग के अनुसार नहीं बढ़ पाया है। नतीजतन हर साल करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये का खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है। दूसरी परेशानी यह है कि जीएम सरसों का मामला सुप्रीम कोर्ट में अटका है। ऐसे में अब कृषि वैज्ञानिकों ने सीधे प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि जीएम सरसों को लेकर कदम आगे बढ़ाए।
जीएम सरसों की किस्म 'धारा सरसों हाइब्रिड-11' (डीएमएच-11) को वर्ष 2022 में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से हरी झंडी मिली थी। इसके बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) को खेतों में परीक्षण करना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में दायर जनहित याचिका के चलते इन परीक्षणों पर रोक लग गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
अदालत ने राष्ट्रीय नीति बनाने के निर्देश दिए
सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ ने 23 जुलाई 2024 को विभाजित निर्णय दिया। एक ने केंद्रीय अनुमोदन को खारिज किया, जबकि दूसरे ने सख्त शर्तों के साथ परीक्षण जारी रखने की अनुमति दी। अदालत ने इस मुद्दे पर राष्ट्रीय नीति बनाने के निर्देश दिए और मामला बड़ी पीठ को सौंप दिया। तब से सुनवाई लंबित है। अब देश के दस शीर्ष कृषि वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर इस रोक को हटाने की मांग की है। इनमें तीन पद्मभूषण और दो पद्मश्री से सम्मानित वैज्ञानिक शामिल हैं।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में डॉ. आरएस परोड़ा, डॉ. जी. पद्मनाभन, प्रो. आरबी सिंह और डॉ. बीएस ढिल्लों जैसे वरिष्ठ नाम शामिल हैं। उनका तर्क है कि जीएम सरसों में जिस तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसे ही कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सफलतापूर्वक अपनाई गई है। अगर भारत में भी इसे मंजूरी मिल जाए तो सरसों की उपज पारंपरिक किस्मों के मुकाबले 28 से 30 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
जीएम सरसों की पैदावार अधिक होने से किसानों की आय में इजाफा होगा
भारत में तिलहन उत्पादन बढ़ाने के तमाम प्रयास हुए, परंतु सरसों जैसी प्रमुख फसल की पैदावार अभी भी जरूरत के मुताबिक नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जीएम सरसों की पैदावार अधिक होने से किसानों की आय में इजाफा होगा और खाद्य तेल उत्पादन में आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सकेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर 2025 की बुवाई का सीजन भी निकल गया तो देश एक और साल खो देगा। उनका दावा है कि जीएम सरसों के सभी जैव-सुरक्षा परीक्षण पूरे किए जा चुके हैं और अब तक किसी नकारात्मक असर की पुष्टि नहीं हुई है। ऐसे में फैसला जल्द होना चाहिए।
अब सबकी निगाहें सरकार और सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले पर टिकी हैं। अगर रोक हट गई तो किसानों के लिए यह वरदान साबित हो सकती है और देश को खाद्य तेल में आत्मनिर्भर बनाने का रास्ता खुल सकता है।
जीएम सरसों क्या है?
धारा सरसों हाइब्रिड-11 को भारतीय किस्म 'वरुणा' और 'अर्ली हीरा-2' के संकरण से विकसित किया गया है। इसमें दो विदेशी जीन शामिल हैं, जो संकर सरसों प्रजातियों के प्रजनन को सक्षम बनाते हैं। यही कारण है कि इसे ज्यादा उपज देने वाली किस्म माना जा रहा है।
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